आज रामनवमी है. आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म हुआ था. श्रीराम को हिंदुओं का भगवान कहा जाता है, लेकिन क्या वाकई राम सिर्फ हिंदुओं के हैं? क्या राम इस देश के संस्कृति पुरुष नहीं हैं?  क्या राम कथा जीवन जीने की आचार संहिता नहीं है. आपमें से बहुत से लोगों को हमारी ये बातें आध्यात्मिक या किताबी लग रही होंगी. लेकिन आज हम आपको ये बताएंगे कि आज के दौर में श्रीराम कितने प्रासंगिक हैं? आज हम राम की खोज करेंगे और आज की भाषा में कहें तो आज हम आपके लिए श्रीराम को Decode करेंगे. हम एक बात और साफ कर दें कि हम आपको राम की जीवनी या कथा नहीं सुनाने जा रहे हैं, बल्कि हम आपको ये बताएंगे भगवान राम का जीवन दर्शन आज कितना मायने रखता है? और श्रीराम से हम क्या सीख सकते हैं? हमारे इस विश्लेषण को धर्म के चश्मे से कतई न देखें, क्योंकि राम किसी धर्म के नहीं बल्कि इस देश के संस्कृति पुरुष हैं. हमने वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस के कई प्रसंगों को आज के आधुनिक दौर के Lens से देखा है. और उससे जो बातें निकलकर सामने आई हैं. वो हम आपके साथ शेयर करना चाहते हैं


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

राम एक आदर्श पुत्र हैं, वो अपनी मां और पिता के आदेश पर 14 वर्षों के लिए वनवास पर चले गए थे. लेकिन आज के दौर में हमें अक्सर बेटों द्वारा माता-पिता को घर से बाहर निकालने की ख़बरें मिलती हैं, जिनसे मन व्यथित होता है और फिर राम याद आते हैं. आदर्श पुत्र के साथ ही राम एक आदर्श भाई भी हैं. युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हुए तो राम की आंखों में आंसू आ गये थे. जब तक हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर नहीं आए. राम, लक्ष्मण के पास ही बैठे रहे. लेकिन आज भाई भाई का दुश्मन है. परिवार टूट रहे हैं. भाईयों के बीच ऐसे आदर्श रिश्ते आज बहुत कम देखने को मिलते हैं.


राम एक आदर्श पति भी हैं, वो सीता के लिए रावण का वध करते हैं. और एक पति के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हैं. राम को वनवास का दुख नहीं होता. और जब उन्हें अपना राज-पाट वापस मिलता है, तो उनमें किसी तरह का अहंकार नहीं दिखाई देता. आज श्री राम के नाम पर राजनीति तो बहुत होती है, लेकिन कोई नेता राम के आचरण से कुछ नहीं सीखता. आज के दौर में सत्ता के लिए सभी मर्यादाएं दांव पर लगा दी जाती हैं. लेकिन श्रीराम को सत्ता का लोभ कभी नहीं रहा. किसी के राज्य पर कब्ज़ा करना या उसे हड़पना उनका उद्देश्य कभी नहीं रहा. वो चाहते तो लंका पर कब्ज़ा कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. बल्कि रावण का वध करके विभीषण को लंका का राजा बनाया और खुद अयोध्या लौट गए. 


ऐसा ही उन्होंने सुग्रीव के साथ भी किया. सुग्रीव के बड़े भाई बालि का वध करके उन्होंने सुग्रीव को राजा बनाया. इसका एक अर्थ ये भी है कि उन्होंने स्थानीय लोगों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए. सत्ता का नियंत्रण लोकल नेताओं को दिया. वैसे तो श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, लेकिन उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि उन्होंने बालि को धोखे से मारा था. किष्किंधा के राजा बालि को ये वरदान प्राप्त था, कि युद्ध के दौरान जो भी दुश्मन, बालि के सामने आएगा, उसकी शक्ति आधी हो जाएगी. इसलिए राम ने बालि को छुपकर मारा था. इसके लिए कई बार कुछ विद्वान उनकी आलोचना भी करते हैं लेकिन नोट करने वाली बात ये है कि श्री राम ने धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अपनी ये आलोचना भी स्वीकार कर ली. आज के दौर में इस गुण की बहुत कमी है. सच की राह पर चलना आज बहुत कठिन है.


वैसे तो श्रीराम को सौम्य, शालीन, धीर-गंभीर, वीर और त्यागी कहा जाता है लेकिन जब ज़रूरत पड़ती है तो वो अपना क्रोध भी दिखाते हैं. लंका जाने के लिए समुद्र में मार्ग बनाने के लिए श्रीराम ने समुद्र से तीन दिनों तक विनती की और ये कहा कि उनकी सेना को समुद्र पार करने दिया जाए. लेकिन जब समुद्र नहीं माना तो राम ने शस्त्र उठाकर समुद्र को सुखाने की धमकी दी. और इसके बाद समुद्र डरकर मान गया. राम बहुत अच्छे Organiser भी थे, जब वनवास पर गए तो सिर्फ तीन लोग थे, श्रीराम, सीता और लक्ष्मण, लेकिन जब सीता हरण के बाद लंका पर आक्रमण किया, तो उनके साथ लाखों की सेना थी, जिसमें वानर, रीछ और दूसरे कई जानवर शामिल थे. सुग्रीव के साथ साथ रावण का छोटा भाई विभीषण भी उनके साथ काम कर रहा था.
 
ये राम के कूटनीतिक गुण है. जिनकी कोई तुलना नहीं की जा सकती. आज के दौर में पूरा देश VIP कल्चर से परेशान है. अपने आपको VIP समझने वालों को भी श्रीराम के आचरण से सीखना चाहिए. श्रीराम ने हमेशा अपने से कमज़ोर लोगों को अपनी बराबरी पर बिठाया. उन्हें सहर्ष स्वीकार किया. केवट के साथ उनका व्यवहार और सुग्रीव के साथ उनकी मित्रता इसका प्रमाण है. तब लाल बत्तियों वाली गाड़ियां तो नहीं होती थीं. लेकिन अगर होती तो राम उन पर ज़रूर प्रतिबंध लगवा देते.


श्रीराम के लिए छूआ-छूत, अमीर गरीब, ऊंच-नीच जैसा कोई भेदभाव नहीं था. शबरी के जूठे बेरों को प्रेम से खाना, केवट को गले लगाना, वानर और भालुओं को प्रेम और स्नेह देकर उन्हें अपना बनाना कोई राम से सीखे. लेकिन आज के दौर में हमारे देश में दलितों या पिछड़ों के कल्याण के लिए सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी होती है. राम जैसी इच्छाशक्ति और आचरण देखने को नहीं मिलता.


यही वजह है कि राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. आज हमने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन को आधुनिक नज़र से देखने की कोशिश की है. हमने ये समझने की कोशिश की है कि भारत के संस्कृति पुरुष कहे जाने वाले राम, आज भी कितने प्रासंगिक हैं. हमने श्री राम से जुड़ी हर निशानी को आज और गहराई से देखने की कोशिश की है. हमें उम्मीद है कि श्री राम के दर्शन और श्री राम की खोज करने वाला ये सफर आपको नई ऊर्जा और नया नज़रिया देगा.