DNA: एक इस्तीफे से कितने निशाने साध लिए केजरीवाल ने? क्या अब पहले से ज्यादा हो जाएंगे `खूंखार`
Arvind Kejriwal Resignation: अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा दे चुके हैं. कहा जा रहा है कि ऐसा करके उन्होंने एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं.
Zee News DNA Arvind Kejriwal Resignation: अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और साथ ही आतिशी को अपना उत्तराधिकारी भी चुन लिया. ये दूसरी बार है जब केजरीवाल ने CM की कुर्सी से इस्तीफा दिया है और और ये तीसरी बार है, जब सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री चुनी गईं है. एक खास बात ये भी है कि वर्तमान में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद आतिशी देश में दूसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी.
आतिशी को सीएम बनाना रणनीति या नासमझी
लेकिन अब सवाल ये है कि ये केजरीवाल का इस्तीफा और आतिशी का मुख्यमंत्री बनना रणनीति है या नासमझी है ? उससे भी बड़ा सवाल ये है कि केजरीवाल के इस्तीफे से बीजेपी को इतनी टेंशन क्यों हो रही है?आज हमने केजरीवाल के इस्तीफे का बीजेपी के एंगल से विश्लेषण किया है.
केजरीवाल ने इस्तीफा क्या दिया..बीजेपी का पूरा प्लान ही चौपट हो गया. जो बीजेपी वाले दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर रहे थे. अब जल्द चुनाव की डिमांड कर रहे हैं. केजरीवाल ने इस्तीफा क्या दिया...वक्त बदल दिया. जज्बात बदल दिये. दिल्ली की पूरी पॉलिटिक्स ही बदल दी. बीजेपी के लिए रहस्य बन गया है कि इस्तीफा देना...केजरीवाल का कदम है या चाल.
केजरीवाल के दांव से बीजेपी की राजनीति हुई पंक्चर
अब कदम कह लीजिये या चाल. केजरीवाल ने इस्तीफा देकर बीजेपी की पूरी पॉलिटिक्स को ही पंचर कर दिया. शराब घोटाले के जरिये केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचाना. केजरीवाल पर CM पद से इस्तीफा देने का प्रेशर बनाना. केजरीवाल को CM की कुर्सी का लालची बताना. सीएम पद से इस्तीफा देकर केजरीवाल ने बीजेपी की पूरी प्लानिंग पर ही पलीता लगा दिया है.
बीजेपी को लगा था कि जब केजरीवाल ने जेल में रहते हुए इस्तीफा नही दिया तो जेल से बाहर आकर क्या ही देंगे. लेकिन केजरीवाल ने बीजेपी को हैरान-परेशान कर दिया क्योंकि 2014 में भी जब बीजेपी को लगा था कि केजरीवाल CM पद से इस्तीफा नहीं देंगे..तब भी केजरीवाल ने ऐसा ही दांव चला था.
टेंशन में क्यों आ गए हैं बीजेपी नेता
वर्ष 2014 में केजरीवाल ने CM पद से इस्तीफा दिया और उसके बाद हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी 70 में से 67 सीटें जीत गई थी. अब दूसरी बार केजरीवाल ने इस्तीफा दिया है तो बीजेपी को टेंशन होना बनता है. बीजेपी नेताओं के रियेक्शन्स बता रहे हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कहें तो कहें क्या.
वैसे बीजेपी का झल्लाना भी कोई गलत नहीं है...चुनाव से पांच महीने पहले जब पूरी स्ट्रैटजी ही जीरो हो जाए. तो ऐसा होना Natural है. बीजेपी कह रही है कि आतिशी को केजरीवाल ने मजबूरी के चलते मुख्यमंत्री बनाया है. लेकिन आम आदमी पार्टी कह रही है कि आतिशी को मुख्यमंत्री बनाना..केजरीवाल का दूसरा मास्टर स्ट्रोक है. लेकिन क्या वाकई ऐसा है? आखिर केजरीवाल ने क्या सोचकर आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया है ?इसके पीछे केजरीवाल का माइंडगेम डिकोड करने वाली ये रिपोर्ट आपको जरूर पढ़नी चाहिए.
पहले से ही तय था आतिशी का नाम
ये तो उसी दिन तय हो गया था..जब जेल से केजरीवाल ने स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने के लिए आतिशी का नाम रिकमेंड किया था. मुख्यमंत्री पद के लिए आतिशी ही केजरीवाल की पहली और आखिरी पसंद थी. इसकी वजह भी थी और पॉलिटिक्स तो थी ही.
आतिशी पर भ्रष्टाचार के आरोप भी नहीं हैं. केजरीवाल और सिसोदिया दोनों की विश्वासपात्र भी हैं. अन्ना आंदोलन के समय से ही केजरीवाल और संगठन के साथ जुड़ी हैं. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की स्थिति को सुधारने में अहम भूमिका निभाई है और महिला होने के नाते दिल्ली की जनता में एक अलग संदेश भी जाएगा.
अब ज्यादा खूंखार हो जाएंगे केजरीवाल
केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जब जेल में थे तो अगर किसी ने सरकार और संगठन की जिम्मेदारी बखूबी निभाई तो वो आतिशी ही थीं. केजरीवाल और सिसोदिया की गैरमौजूदगी में वो आम आदमी पार्टी का प्रमुख चेहरा बन चुकी थीं.
AAP के लिए आतिशी को CM बनाना केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक है या नहीं. ये तो वक्त बताएगा. लेकिन अब ये तो सही है कि केजरीवाल दिमाग चलाएंगे और आतिशी पेन चलाएंगी. जो फैसला केजरीवाल लेंगे, आतिशी वो ही फैसला सुनाएंगी.
ये बात तो खुद आतिशी भी जानती हैं और बीजेपी तो जानती ही है.
दिल्ली बीजेपी के पास केजरीवाल की टक्कर का नेता नहीं
भाजपा में उनके मुकाबिल दिल्ली में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. इससे पहले इसलिए भाजपा ने दिल्ली में मनोज तिवारी को उतारा, उससे पहले किरण बेदी पर दांव लगाया. लेकिन वह सब दांव बेकार गए. केजरीवाल इसी का फायदा उठाना चाहते हैं. वह इस्तीफा देकर यह दिखाना चाहते हैं कि उनके लिए मुख्यमंत्री पद कोई बड़ी बात नहीं है. वह दिल्ली की जनता के लिए कोई भी कुर्बानी दे सकते हैं.”
आगे वह कहते हैं कि इसके अलावा केजरीवाल के इस्तीफा देकर आतिशी को लाने की एक और बड़ी वजह यह है कि केजरीवाल को लगता है कि आतिशी के पास कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. जैसे झारखंड में चंपई सोरेन की रही, या बिहार में जीतन राम मांझी की रही. केजरीवाल को यह लगता है कि वह आतिशी को जैसे चाहें "दाएं-बाएं" कर सकते हैं. वह यह मान कर चल रहे हैं कि ऐसे में उन्हें यह सहानुभूति मिलेगी. भाजपा उनके खिलाफ जानबूझकर वातावरण बना रही है. केजरीवाल ने यही सोचकर ऐसा माहौल बनाया है. भारत में "बेचारा" का ठप्पा लगे व्यक्ति को अक्सर फायदा मिल जाता है, इसलिए वह उस "बेचारा" के फ्रेम में खुद को फिट करने की कोशिश कर रहे हैं.
अब हरियाणा चुनाव पर फोकस करेंगे केजरीवाल
अब आतिशी चाहे दिल्ली की सीएम रहें..या डमी सीएम...इस्तीफा देने के बाद केजरीवाल फुल टाइम हरियाणा चुनाव पर फोकस करेंगे...ये बात भी बीजेपी जान रही है और मान भी रही है. अब जनता भरोसा करेगी या नहीं...ये तो बाद की बात है...फिलहाल तो केजरीवाल ने जो दांव चलने थे..चल दिए..इसका फायदा होगा या नुकसान..ये तो पहले हरियाणा और उसके बाद दिल्ली के चुनावी रिजल्ट ही बताएंगे.
अब दिल्ली को अपनी नई मुख्यमंत्री भी मिल गई है और अरविंद केजरीवाल को हरियाणा चुनाव में फुल टाइम प्रचार का भरपूर वक्त भी मिल गया है...ये सिर्फ बीजेपी के लिए ही नहीं बल्कि खुद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए भी चुनौती देने वाला साबित हो सकता है...कैसे..आपको बताते हैं...
लोगों से सहानुभूति मिलने का चांस
अगर हरियाणा चुनाव में AAP का प्रदर्शन खराब रहता है तो दिल्ली में केजरीवाल की छवि कमजोर पड़ने का खतरा है. दिल्ली चुनाव में अभी 5 महीने का वक्त है. चुनाव में देरी से सहानुभूति का फैक्टर बेअसर हो सकता है. चाहे अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आतिशी हों लेकिन रिजल्ट देने की जिम्मेदारी केजरीवाल पर ही आएगी. इसलिए केजरीवाल का इस्तीफा..वो दोधारी तलवार है..जिसके सिर्फ फायदे ही नहीं..नुकसान होने के भी चांस हैं.