Zee News Exclusive Interview with Sudhanshu Trivedi: अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. जैसे-जैसे प्राण प्रतिष्ठा की तारीख नजदीक आ रही है, पूरे देश का माहौल आस्था से सराबोर होता जा रहा है. प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए हालांकि देशभर से केवल 8 हजार खास लोगों को बुलाया गया है लेकिन लोगों के रेले अभी से अयोध्या की ओर चलने शुरू हो गए हैं. सभी के अधरों पर इस वक्त एक ही नाम गूंज रहा है और वह जय सिया राम. 


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कांग्रेस ने काट ली समारोह से कन्नी 


वहीं कांग्रेस अपनी तुष्टिकरण वाली राजनीति का मोह इस बार भी नहीं छोड़ पाई है और उसने इस समारोह को बीजेपी- आरएसएस का प्रोग्राम बताकर कन्नी काट ली है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह प्रोग्राम वाकई बीजेपी का राजनीतिक कार्यक्रम है या फिर यह समारोह देश के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुनरुत्थान का प्रतीक है. इस मुद्दे पर जी न्यूज एंकर दीपक चौरसिया ने बीजेपी सांसद और प्रखर विचारक सुधांशु त्रिवेदी से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू लिया.


क्या प्राण प्रतिष्ठा आरएसएस का कार्यक्रम?


क्या रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह बीजेपी-आरएसएस का कार्यक्रम है, इस सवाल पर सुधांशु चतुर्वेदी ने कहा, जो भगवान राम के कार्यक्रम में भी राजनीति ढूंढने लगे, उनके लिए कहा ही क्या जाए. जाकी रही भावना जैसी, वाकी मूरत रही वैसी. इससे उनका मनोभाव झलकता है. 


'गांधी का नाम लगाए लेकिन हैं नेहरू के खानदानी'


सुधाशु चतुर्वेदी ने कहा, 'भारत की राजनीति के तो आधार ही भगवान राम हैं. महात्मा गांधी ने खुद राम राज्य का उद्घोष किया था. मगर अफसोस ये गांधी की कांग्रेस नहीं, नेहरू की कांग्रेस है. ये नाम तो गांधी का लगाए हैं लेकिन हैं तो नेहरू के खानदानी. नेहरू ने 1949 में अयोध्या के जिला अधिकारी को पत्र लिखकर विवादित ढांचे से मूर्तियां हटाने को कहा था.'


'भगवान राम की शरण जाने से कौन रोक रहे'


क्या भगवान राम ही बीजेपी को सत्ता तक लेकर आए हैं. इस सवाल के जवाब में बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, 'आप शुद्ध अंतकरण से राम को भजिए तो सही. जब आप उन्हें सच्चे मन से उनका स्मरण करेंगे तो सब कुछ आपको मिलेगा. अगर कांग्रेसी भी भगवान राम की शरण में आएंगे तो वे भी सब कुछ पा सकते हैं. उन्हें ऐसा करने से कौन रोक रहा है.' 


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'राहुल गांधी की पार्टी के नेता खुद शक कर रहे'


बीजेपी राहुल गांधी की समझ पर शक क्यों करती है. इस सवाल पर सुधांशु ने कहा, 'हम उनकी समझ पर शक नहीं करते. उनकी पार्टी के दर्जनों नेता उनकी समझ पर शक करते हुए पार्टी छोड़ देते हैं. लोकसभा चुनाव में हार के बाद वे अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी देते हैं और फिर अघोषित रूप से पार्टी का नेतृत्व भी करते रहते हैं.'