Mahadev Govind Ranade Birth Anniversary: परतंत्र भारत की स्वतंत्रता के लिए कितने ही लोगों ने अपना बलिदान दिया है. कई तरह से लोगों ने अपना योगदान दिया है. समाज सुधार के काम भी किए हैं. ऐसे ही समाज सुधारकों में एक नाम महादेव गोविंद रानाडे का नाम भी शामिल है. उन्हें 'जस्टिस रानाडे' के नाम से भी जाना जाता है.


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धैर्यवान और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी गोविंद रानाडे का आज, 18 जनवरी को जन्मदिन है. ऐसे में आज हम उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं पर बात करेंगे. अगर आप कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं तो आपके लिए समाज सुधारक गोविंद रानाडे के बारे में जानना जरूरी है. 


जन्म और शिक्षा-दीक्षा
जस्टिस रानाडे का जन्म 18 जनवरी 1842 को महाराष्ट्र के नाशिक जिले में हुआ था. हालांकि, उनका बचपन कोल्हापुर में बीता. रानाडे की प्रारंभिक शिक्षा कोल्हापुर के ही एक मराठी स्कूल से हुई और बाद में उन्होंने इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढ़ाई पूरी की. इसके बाद 14 साल की उम्र में वे बंबई चले गए, जहां उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज से हायर एजुकेशन कंप्लीट किया. आपको बता दें कि गोविंद बंबई यूनिवर्सिटी के फर्स्ट बैच के स्टूडेंट थे. साल 1962 में उन्होंने बीए और इसके बाद एलएलबी की डिग्री फर्स्ट डिवीजन में हासिल की थी. 


विवाह
उनकी पहली पत्नि मृत्यु के बाद रानाडे ने परिवार की इच्छा के चलते रमाबाई नामक लड़की से विवाह किया. विवाह के बाद उन्होंने अपनी पत्नि को भी शिक्षित किया. हालांकि, उनके समाज सुधारक मित्र चाहते थे कि वे एक विधवा से विवाह करें. 


बॉम्बे हाई कोर्ट के जज रहे
रानाडे ने भारतीय भाषाओं को बंबई यूनिवर्सिटी के सिलेबस में शामिल किया. उनकी योग्यता के कारण उन्हें बॉम्बे स्मॉल कॉज कोर्ट में प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया था. साल 1893 तक वह बॉम्बे हाई कोर्ट के जज नियुक्त किए गए थे.


भारतीय इतिहास के प्रति सताती थी ये चिंता 
गोविंद रानाडे को एलफिंस्टन कॉलेज में इतिहास के ट्रेनर के तौर पर नियुक्त किया गया था, जिसके कारण उनमें भारतीय इतिहास खासतौर पर मराठा इतिहास में विशेष रुचि विकसित हुई. इसी के चलते उन्होंने साल 1900 में 'राइज़ ऑफ़ मराठा पावर' नामक पुस्तक लिखी थी. इतिहास में विशेषज्ञता के चलते वे हमेशा इस बात तो लेकर चिंतित रहते थे कि हम भारतीयों में इतिहास के प्रति जरूरी संवेदनशीलता की बहुत कमी है. 


शिक्षा से प्रभावित थे समाज सुधार के प्रयास
रानाडे का झुकाव हिंदू धर्म के आध्यात्मिक पक्ष की ओर ज्यादा था. वे कर्म-कांडों और मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते थे. वे धर्म से लेकर शिक्षा तक, भारतीयों में प्रगतिशील सुधार देखना चाहते थे. वे रूढ़िवादी परंपराओं और मान्यताओं के घोर विरोधी थे. उन्होंने शादी धूमधाम से करने, बाल विवाह, विधवा मुंडन, ट्रांस-समुद्री यात्रा पर जाति प्रतिबंध जैसी बहुत सी बुराइयों का जमकर विरोध किया. गोविंद ने विधवा पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा पर विशेष कार्य करते हुए महाराष्ट्र कन्या शिक्षा समाज की स्थापना की थी. 


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