नई दिल्लीः कर्नाटक में अप्रैल में होने जा रहे चुनावों के मद्देनजर सियासी पारा चढ़ता जा रहा है. वैसे इस राज्‍य की सियासत में लिंगायत और वोक्‍कालिगा समुदाय का दबदबा रहा है. दरअसल वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर कन्नड़भाषी क्षेत्रों को मिलाकर कर्नाटक राज्य की स्थापना की गई. इससे पहले इस राज्य के कई हिस्से बॉम्बे प्रेसिडेंसी और हैदराबाद के निजाम के अधीन थे. पूर्ववर्ती मैसूर राज भी वर्तमान कर्नाटक राज्य का हिस्सा था. लेकिन एक भाषा के आधार पर समानता के बावजूद यह राज्य शुरुआत से ही जातीय और सांप्रदायिक रूप से बंटा हुआ है. राज्य में लिंगायत और वोक्कालिगा दो प्रमुख जातियां हैं जिनका राजनीतिक प्रभाव है.


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भाजपा के बीएस येदियुरप्पा को लिंगायत समुदाय का तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जनता दल (सेक्‍युलर) के एचडी कुमारस्वामी को वोक्कालिगा समुदाय का नेता माना जाता है. राज्य में इन दोनों जातियों की आबादी क्रमश 17 और 12 फीसदी मानी जाती है. राज्य में करीब 17 फीसदी अल्पसंख्यक भी हैं जिसमें 13 फीसदी मुसलमान और चार फीसदी ईसाई हैं. अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग की तादाद काफी अधिक है. ये पूरी आबादी का 32 प्रतिशत हैं.


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जातीय समीकरण
राज्य की राजनीति में लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों जातियों का दबदबा है. सामाजिक रूप से लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं. सत्तर के दशक तक लिंगायत दूसरी खेतिहर जाति वोक्कालिगा लोगों के साथ सत्ता में बंटवारा करते रहे थे. वोक्कालिगा, दक्षिणी कर्नाटक की एक प्रभावशाली जाति है. कांग्रेस के देवराज उर्स ने लिंगायत और वोक्कालिगा लोगों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ दिया. अन्य पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और दलितों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर देवराज उर्स 1972 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने.


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अस्सी के दशक की शुरुआत में लिंगायतों ने रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया. जब लोगों को लगा कि जनता दल राज्य को स्थायी सरकार देने में नाकाम हो रही है तो लिंगायतों ने अपनी राजनीतिक वफादारी वीरेंद्र पाटिल की तरफ़ कर ली. पाटिल 1989 में कांग्रेस को सत्ता में लेकर आए. लेकिन वीरेंद्र पाटिल को राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और इसके बाद लिंगायतों ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया. रामकृष्ण हेगड़े लिंगायतों के एक बार फिर से चहेते नेता बन गए.


जातिगत आधार के अलावा क्षेत्रवाद ने भी कर्नाटक के चुनावों में बड़ी भूमिका निभाई है. 1956 में राज्य का पुनर्गठन हुआ और कई इलाकों को भाषा के आधार पर कर्नाटक से जोड़ा गया जो पहले बॉम्बे प्रेसिडेंसी और हैदराबाद के निजाम के अधीन रहे थे. इन इलाकों को मुंबई-कर्नाटक और हैदराबाद-कर्नाटक के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा मैसूर का इलाका भी है. राज्य के दक्षिण का इलाका पश्चिमी घाट का इलाका है. मंगलौर और उडुपी के इस तटवर्तीय इलाके में भाजपा का दबदबा माना जाता रहा है.