Depression Research: कई साल से दुनिया को अवसाद यानी डिप्रेशन की एक परिभाषा पढ़ाई जा रही है कि दिमाग मे मौजूद (Serotonin) केमिकल का जब Imbalance होता है. यानी serotonin केमिकल जब दिमाग मे तय मात्रा से कम या ज्यादा होता है. तब व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है. 60 के दशक में यह परिभाषा दुनिया के सामने रखी गयी थी और आज 90 के दशक में  इसी परिभाषा के आधार पर Anti-Depression दवाओं ने बाजार में कब्जा कर लिया है. आज दुनिया भर के  मार्केट में Anti Depressant दवाओं की भरमार है और अवसाद से शिकार व्यक्ति को डॉक्टर ठीक होने के लिए Anti Depressant दवा देते हैं. जिसका काम दिमाग मे serotonin के लेवल को maintain करना है, लेकिन ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों की विश्व प्रसिद्ध जर्नल नेचर में छपी स्टडी के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अवसाद का शिकार दिमाग मे serotonin के लेवल के कम ज्यादा होने से नहीं होता है और अवसादग्रस्त व्यक्ति को दी जाने वाली Anti Depressant दवाएं उसे फायदा नहीं बल्कि नुकसान पहुंचाती हैं. 


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डॉ सुनील शर्मा, डीन, ISIC, वसंत कुंज, शिखा मुखर्जी, Musical Therapist
विशेषज्ञों के मुताबिक आज के दौर में मानसिक रोग एक गंभीर समस्या बन चुका है  और अगर कोई व्यक्ति इससे प्रभावित होता है. तो सबसे पहले उसे अपने बीच एक स्वस्थ वातावरण बनाना चाहिए, जिससे वो अवसाद से दूर हो सकें, यह स्वस्थ वातावरण म्यूजिक, डांस, एक दूसरे से बातचीत किसी के भी आधार पर बनाया जा सकता है.


 डॉ शक्ति गोयल, निदेशक, स्पाइन क्लिनिक, नोएडा
आज के दौर में जब भारत के 4 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक रोग से परेशान हैं. तो ऐसे में ये मानसिक अन्य रोगों के लिए भी जिम्मेदार होते जा रहे हैं. डॉक्टरों के मुताबिक उनके पास आज अगर कोई व्यक्ति रीढ़ की हड्डी में झुकाव, POSTURE में खराबी की शिकायत ले कर आ रहा है. तो उसकी जड़ मानसिक रोग से  जुड़ी है क्योंकि इसने व्यक्ति की दिनचर्या को बिगाड़ दिया है. इसी वजह से डॉक्टर आज मरीजों को अवसाद और मानसिक बीमारियों से दूर करने के लिए Mental Welness प्रोग्राम चला रहे हैं.


डॉ हेमिका अग्रवाल, मानसिक रोग विशेषज्ञ
आज के समय में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ दवा कम्पनियों का मुनाफा भी तेजी से बढ़ रहा है. आज विश्व के 26 करोड़ से ज्यादा लोग अवसाद का शिकार हैं और 2030 तक यह संख्या 30 करोड़ के पार हो सकती है. यह अनुमानित किया गया है. ऐसा ही अनुमान anti depressant की बाजार बढ़ने का है. वर्ष 2020 में 1500 करोड़ डॉलर की अवसादरोधी दवाओं के बाजार का 2030 तक 2100 करोड़ डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है. ऐसे में विशेषज्ञों की माने तो अभी जरूरत है ऐसी रिसर्च की जो फार्मा फंडेड न हो बल्कि लोगों के हितों के लिए हो... ताकि लोग और डॉक्टर अवसाद के सही कारणों और सही दवाओं के बारे में जान पाए.


गलत वजह को बनाया आधार 
वर्ष 1969 में अवसाद पर आई SEROTONIN HYPOTHESIS सिर्फ एक अंदाज़ा ही रह गया है. क्योंकि जीवित व्यक्ति के दिमाग में मौजूद केमिकल को पक्के तौर पर मापना असम्भव है. जिस कारण DEPRESSION SEROTONIN के IMBALNACE की वजह से ही होता है यह लैब में सिद्ध नहीं हो पाया है और ना ही यह थ्योरी बन पाई है, लेकिन हां इस एक HYPOTHESIS ने दवा कम्पनियों को अरबो रुपये का मुनाफा करवाया है. 


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