Why Purple Day Celebrated On 26th March: मिर्गी की समस्या आजकल आम हो चुकी है, ये एक क्रोनिक नॉन क्यूनिकेबल डिजीज है, जिसमें हर उम्र के लोगों के ब्रेन पर असर पड़ता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक दुनियाभर में तकरीबन 5 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित है. मिर्गी के तकरीबन 80 फीसदी मरीज लो इनकम और मिडिल इनकम वाले देशों में मौजूद है. यही वजह है कि इसको लेकर जागरूकता बेहद जरूरी है.


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क्यों मनाया जाता है 'पर्पल डे'
मिर्गी यानी एपिलेप्सी (Epilepsy) को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 26 मार्च को पर्पल डे (Purple Day) मनाया जाता है. इस दिन लोग पर्पल कलर के कपड़े पहनकर मिर्गी को लेकर अवेयरनेस फैलाते हैं. ये रंग लैवेंडर से प्रेरित है जो अकेलापन को भी रिप्रेजेंट करता है. इसकी शुरुआत साल 2008 में 9 साल की बच्ची कैसिडी मेगन (Cassidy Megan) ने की थी, जो खुद इस बीमारी का सामना कर रही थीं. उनकी कोशिश थी कि इस डिजीज को लेकर बड़े कदम उठाए जाएं.


जागरूकता है जरूरी
मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है जो ब्रेन को नुकसान पहुंचाती है और दौरे का कारण बनती है. यह दुनिया भर में सबसे आम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स में से एक है, जो किसी भी उम्र या जेंडर के लोगों को प्रभावित कर सकता है. ये एक मिथ है कि मिर्गी मेंटर या साइकैट्रिक डिसऑर्डर है. यही वजह है कि मरीज के परिवार वाले इस परेशानी का इलाज करने के बजाए इसे छिपाने की कोशिश करती. साथ ही मिर्गी को लेकर गलत धारना रोगियों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.
 



मिर्गी का इलाज कैसे होता है?
हालांकि मिर्गी का कोई त्वरित इलाज नहीं है, लेकिन इसे मेडिकेशन, सर्जरी और अलटरनेटिव ट्रीटमेंट के जरिए इसे मैनेज किया जाता है. भारत में कई संगठन हैं जो मिर्गी के लिए जागरूकता और काम कर रहे हैं. 'इंडियन एपिलेप्सी एसोसिएशन' एक राष्ट्रीय संगठन है जो मिर्गी से पीड़ित लोगों की मदद करता है. इसके अलावा, भारत सरकार ने 1983 में राष्ट्रीय मिर्गी नियंत्रण कार्यक्रम (National Epilepsy Control Program) की शुरुआत की जिसमें जरूरतमंद रोगियों को मुफ्त एंटीपीलेप्टिक दवाएं उपलब्ध कराई जाने लगी.


 




क्या कैनाबिस की मदद से मिर्गी का हो सकता है इलाज?
कई रिसर्च में पाया गया है कि मेडिकल कैनाबिस या इसके डेरिवेटिव्स की मदद से मिर्गी से पीड़ित रोगियों को फायदा पहुंचाया जा सकता है. 'हेम्पस्ट्रीट' की वाइस प्रेसिडेंट, डॉ. पूजा कोहली के मुताबिक कैनाबिस में कैनाबिनॉइड्स पाया जाता है, जैसे जैसे डेल्टा-9-टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (टीएचसी) और कैनबिडिओल (सीबीडी), जिनमें नर्वस सिस्टम और ब्रेन को प्रभावित करने की क्षमता होती है. CBD को GPR55 रिसेप्टर के साथ इंटरैक्ट करते दिखाया गया है, जो मिर्गी की प्रगति और विकास में शामिल होता है. सीबीडी इस रिसेप्टर से जुड़कर मिर्गी के रोगियों में दौरे की गंभीरता को कम करता है. दूसरी तरफ, THC का मिर्गी के साथ ज्यादा जटिल संबंध है. जबकि टीएचसी को मिर्गी के एनिमल मॉडल वाले दौरे को कम करने वाले प्रभाव दिखाया गया है, कुछ स्थितियों में इसके प्रोकोनवल्सेंट प्रभाव भी हो सकते हैं. मिर्गी के अलावा मेडिकल कैनाबिस दर्द दूर करने, एंग्जायटी, पार्किंसंस और अल्जाइमर डिजीज में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. इसे अपनाने से पहले चिकित्सीय सलाह जरूर लें. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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