बूढ़ा शरीर, जवानी का जोश: 93 साल के रिचर्ड मॉर्गन का सफर हैरान कर देगा
अगर आप सोचते हैं कि बुढ़ापे में सिर्फ कमजोरी और बीमारियां ही आती हैं, तो रिचर्ड मॉर्गन से मिलिए. 93 साल की उम्र में ये आयरिश व्यक्ति चार बार इंडोर रोइंग के विश्व चैंपियन बन चुके हैं.
अगर आप सोचते हैं कि बुढ़ापे में सिर्फ कमजोरी और बीमारियां ही आती हैं, तो रिचर्ड मॉर्गन से मिलिए. 93 साल की उम्र में ये आयरिश व्यक्ति चार बार इंडोर रोइंग के विश्व चैंपियन बन चुके हैं. उनकी दिल की शक्ति, मांसपेशियां और फेफड़े किसी 30-40 साल के युवा को मात करते हैं और अब ये एक नए शोध का विषय भी बन गए हैं जो उनकी रोजमर्रा की जिंदगी, खानपान और शारीरिक बनावट का अध्ययन कर रहा है.
इस रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि रिचर्ड बुढ़ापे की सबसे अच्छी मिसाल हैं. वो 90 साल के ऐसे बुजुर्ग हैं जिनके अंदर किसी अधेड़ की शारीरिक क्षमता छिपी है. बेकरी चलाने और बैटरी बनाने वाले इस शख्स के एक समय घुटने भी अकड़ते हैं, लेकिन 70 साल की उम्र के बाद उन्होंने नियमित व्यायाम शुरू किया. भले ही उनकी फिटनेस जर्नी देर से शुरू हुई, लेकिन अब तक वो दुनिया का 10 चक्कर रोइंग मशीन पर लगा चुके हैं और चार विश्व चैंपियनशिप जीत चुके हैं.
बुढ़ापे में भी एक्टिव रहने का फायदा
नीदरलैंड्स के मास्ट्रिच यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बास वैन हूरेन कहते हैं कि अगर हमें बुढ़ापे को समझना है तो हमें बहुत एक्टिव बुजुर्गों को देखना होगा. बुढ़ापे के जीव विज्ञान के बारे में कई सवाल अभी भी अनसुलझे हैं, जैसे मांसपेशियों के कमजोर पड़ने और उम्र बढ़ने के साथ धीमा पड़ने की प्रक्रिया क्या नेचुरल है या व्यायाम की कमी की वजह से होती है. वो कहते हैं कि अगर कुछ लोग अपने सुनहरे सालों में भी मजबूत और फिट रह सकते हैं, तो इसका मतलब ये है कि हममें से बाकी लोग भी ऐसा कर सकते हैं.
इस अध्ययन के लिए एक बड़ी वजह ये भी थी कि शोधकर्ता लोरकैन डेली के दादा खुद रिचर्ड मॉर्गन हैं. रिचर्ड का 2022 में लाइटवेट 90-94 आयु वर्ग में विश्व चैंपियन बनना ही उन्हें खास बनाता है. खास बात ये है कि रिचर्ड ने किसी खेल या व्यायाम को 73 साल की उम्र से पहले शुरू नहीं किया था. रिटायर होने के बाद थोड़ा खालीपन महसूस होने पर वो अपने पोते के साथ रोइंग प्रैक्टिस में गए थे. वहां कोच ने उन्हें मशीन पर हाथ आजमाने को कहा और वहां से सफर शुरू हुआ.
शानदार प्रदर्शन
92 साल की उम्र में शोधकर्ताओं ने उन्हें आयरलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ लिमरिक में फिजियोलॉजी लैब में बुलाया. उनकी लंबाई, वजन, शरीर के अनुपात को मापा गया और उनके खानपान के बारे में भी विस्तार से जानकारी ली गई. साथ ही उनके मेटाबॉलिज्म, दिल और फेफड़ों की कार्यप्रणाली की जांच की गई. फिर उन्हें रोइंग मशीन पर 2,000 मीटर का रेस लगाने के लिए कहा और उनकी हार्ट रेट, मांसपेशियों और फेफड़ों की निगरानी की.
शोध का रिजल्ट
शोधकर्ताओं के लिए यह एक कभी न भूलने वाला अनुभव था. मॉर्गन का शरीर 80% मांसपेशियों और सिर्फ 15% फैट से बना था, जो कि एक दशकों छोटे व्यक्ति के लिए भी हेल्दी माना जाता है. रेस के दौरान उनका हार्ट रेट 153 बीट्स प्रति मिनट तक पहुंच गई, जो उनकी उम्र के लिए अपेक्षित अधिकतम हार्ट रेट से काफी अधिक है.
इस अध्ययन से पता चलता है कि बुढ़ापे में भी नियमित व्यायाम से दिल, मांसपेशियों और फेफड़ों को मजबूत बनाया जा सकता है और जवान जैसा फिट रहना संभव है. मॉर्गन की कहानी हमें यह सीख देती है कि उम्र सिर्फ एक नंबर है और कभी भी देर नहीं होती अपनी सेहत का ख्याल रखना शुरू करने के लिए. तो अगली बार जब आपको लगे कि बुढ़ापे में कुछ नहीं कर सकते, तो रिचर्ड मॉर्गन की कहानी याद रखिए और अपनी फिटनेस के लिए आज ही पहला कदम उठाएं.