Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति के दिन क्यों खाया जाता है दही-चूड़ा? जानिए इस परंपरा का शुभ अर्थ
मकर संक्रांति को देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे पोंगल, लोहड़ी, गुजराती नव वर्ष इत्यादि. मकर संक्रांति के उत्सव का एक अनिवार्य हिस्सा होता है मीठा-मीठा दही-चूड़ा का प्रसाद.
Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है, जो बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. मकर संक्रांति को नए साल का आगमन भी माना जाता है. इसलिए, इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और नए कार्यों की शुरुआत करते हैं. इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं, मिठाई बांटते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं.
इस पर्व को देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे पोंगल, लोहड़ी, गुजराती नव वर्ष इत्यादि. मकर संक्रांति के उत्सव का एक अनिवार्य हिस्सा होता है मीठा-मीठा दही-चूड़ा का प्रसाद. यह स्वादिष्ट और हल्का-फुल्का भोजन न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि इसके पीछे कई शुभ अर्थ और ऐतिहासिक कारण भी छिपे होते हैं.
मकर संक्रांति प्राचीन काल से ही किसानों के लिए फसल कटाई के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. खलिहानों में अनाज के ढेर लगे होते हैं और खुशहाली का माहौल होता है. दही-चूड़ा में उपयोग किया जाने वाला 'चूड़ा' पके हुए धान को पीसकर बनाया जाता है, जो ताजा फसल की खुशबू और स्वाद को समेटे होता है. वहीं दही ठंडक और शुद्धता का प्रतीक है. इस प्रकार, दही-चूड़ा इस त्योहार पर कृषि संस्कृति और फसल कटाई की खुशियों का प्रतीक बन जाता है.
पोषण का संतुलन
दही-चूड़ा का मिश्रण पोषण का एक बैलेंस कॉम्बिनेशन है. दही में प्रोटीन, कैल्शियम और अच्छे बैक्टीरिया होते हैं, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं. वहीं, चूड़ा (फ्लैटेड राइस) कार्बोहाइड्रेट और फाइबर का अच्छा सोर्स है, जो शरीर को एनर्जी प्रदान करता है. मकर संक्रांति सर्दियों के अंत और फसल कटाई के मौसम का प्रतीक है. इस दौरान शरीर को हल्की और पौष्टिक खुराक की जरूरत होती है, जो दही-चूड़ा बखूबी पूरा करता है.
शुभ संकेत
दही-चूड़ा के सफेद रंग को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. यह नए साल की शुरुआत का शुभ संकेत है और आने वाले समय में शुभता, समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद माना जाता है. दही की मिठास जीवन में सुखद अनुभवों और खुशियों का प्रतीक है, जबकि चूड़े का कुरमुरापन जीवन में उतार-चढ़ाव की याद दिलाता है, जिससे हर कोई गुजरता है.
ऐतिहासिक महत्व
दही-चूड़ा के खाने का रिवाज प्राचीन काल से चला आ रहा है. कृषि समाज में फसल कटाई के बाद दही का उपयोग भोजन को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता था. वहीं, कटे हुए चावल को लंबे समय तक स्टोर करना आसान होता था. इसलिए, ये दोनों चीजें एक साथ मिलकर संतुलित और पौष्टिक भोजन का विकल्प बनती थीं.
दही-चूड़ा की अलग-अलग वैरायटी
हालांकि दही-चूड़ा का आधार एक ही है, इसे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से बनाया जाता है. उत्तर प्रदेश में, इसमें गुड़ और मेवा मिलाया जाता है, जबकि बिहार में इसे मूंगफली और नारियल के साथ परोसा जाता है. दक्षिण भारत में, इसे पोंगल के रूप में जाना जाता है और इसमें विभिन्न प्रकार के मसालों और सब्जियों का उपयोग किया जाता है.