तपेदिक (टीबी) जैसी जानलेवा बीमारी का असर गरीब तबके पर सबसे ज्यादा पड़ता है. इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज, मुंबई और साउथ एशिया इंफैंट फीडिंग नेटवर्क के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अध्ययन किया है, जिसमें यह खुलासा हुआ है कि अमीरों के मुकाबले गरीबों में टीबी का खतरा 18% ज्यादा है. यह अध्ययन बीएमसी इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित हुआ है.


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अध्ययन में पाया गया कि कच्चे और आधे पक्के घरों में रहने वाले लोगों में टीबी का खतरा पक्के घरों में रहने वालों की तुलना में कहीं अधिक है. इसके अलावा जिन घरों में अलग रसोई नहीं है और खाना बनाने के लिए अशुद्ध ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है, वहां भी टीबी के मामले अधिक हैं. भीड़भाड़ वाले घरों में रहने वाले लोगों के लिए भी यह बीमारी एक बड़ा खतरा बनी हुई है.


गरीबों पर ज्यादा बोझ
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के चौथे और पांचवें दौर (2015-16 और 2019-21) के आंकड़ों के आधार पर किए गए इस विश्लेषण में यह भी बताया गया कि गरीब तबके में टीबी का प्रसार कुल मामलों का 18.5% है. वहीं, 6-17 साल की आयु के बच्चों और किशोरों वाले घरों में टीबी के प्रसार में कमी देखी गई है. पहले यह 1.7% था, जो अब घटकर 1.2% हो गया है.


भारत में टीबी का सबसे बड़ा बोझ
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 2022 में टीबी के कारण दुनिया भर में 13 लाख लोगों की मौत हुई. दुनिया के लगभग 26% टीबी के मामले भारत में पाए गए. भारत में 0 से 14 वर्ष की आयु के 3.33 लाख बच्चे टीबी से प्रभावित हैं. यह बीमारी बच्चों और किशोरों पर गंभीर असर डालती है.


सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार जरूरी
शोधकर्ताओं ने कहा कि टीबी के प्रसार को रोकने के लिए सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करना बेहद जरूरी है. बेहतर आवास, स्वच्छ ईंधन और स्वच्छता सुविधाओं तक लोगों की पहुंच बढ़ाने से इस बीमारी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. जिन इलाकों में इन सुविधाओं की उपलब्धता है, वहां टीबी के मामलों में कमी देखी गई है.


Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.