लाइक्स, कमेंट्स और फॉलोअर्स का जाल: सोशल मीडिया किस तरह मेंटल हेल्थ को कर रही खराब?
डिप्रेशन, चिंता और नींद की समस्याएं युवाओं में तेजी से बढ़ रही हैं. सोशल मीडिया पर दूसरों की परफेक्ट लगने वाली जिंदगी देखकर जलन और हीनभावना पैदा होना आम बात है.
डिजिटल क्रांति ने हमारे जीवन को गति और सुविधा तो दी है, मगर इसके साथ ही मेंटल हेल्थ से जुड़ी चुनौतियां भी बढ़ी हैं. लगातार स्क्रीन टाइम, सोशल मीडिया का दबाव, सूचनाओं का ओवरलोड और साइबरबुलिंग जैसी समस्याएं मानसिक संतुलन को बिगाड़ रही हैं.
मनोचिकित्सकों के अनुसार, डिप्रेशन, चिंता और नींद की समस्याएं युवाओं में तेजी से बढ़ रही हैं. सोशल मीडिया पर दूसरों की परफेक्ट लगने वाली जिंदगी देखकर जलन और हीनभावना पैदा होना आम बात है. साथ ही, लगातार सूचनाओं की बाढ़ दिमाग को थका देती है और FOMO (फियर ऑफ मिसिंग आउट) का डर भी मानसिक परेशानियों को जन्म देता है.
समाधान क्या?
डिजिटल डिटॉक्स
समय-समय पर स्मार्टफोन और इंटरनेट से दूरी बनाना जरूरी है. प्रकृति में समय बिताना, किताबें पढ़ना या शौक पूरा करना दिमाग को आराम देता है.
पॉजिटिव ऑनलाइन कम्युनिटी
ऑनलाइन पॉजिटिव और प्रेरणादायक चीजों को फॉलो करें. ऐसे लोगों से जुड़ें जो आपकी रुचि रखते हों और पॉजिटिव माहौल बनाते हों.
वास्तविक जीवन के रिश्तों को मजबूत करें
परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं. अपने इमोशन को शेयर करें और उनका सपोर्ट लें.
फिजिकल एक्टिविटी
नियमित व्यायाम तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने में मदद करता है. योग या ध्यान जैसी शांत चित्त की साधनाएं भी फायदेमंद हैं.
पर्याप्त नींद
हर रात 7-8 घंटे की नींद जरूरी है. नींद पूरी न होने से चिंता और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है.
सरकार और समाज की भूमिका
मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकार और समाज की भी अहम भूमिका है. स्कूलों और कॉलेजों में मेंटल हेल्थ काउंसलिंग सर्विसेज की जा सकती हैं. मानसिक बीमारी के इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की जरूरत है. साथ ही, साइबरबुलिंग रोकने के लिए सख्त कानून बनाने और उनका कड़ाई से पालन करवाने की भी आवश्यकता है