नई दिल्लीः एसटी आरक्षित खरगोन लोकसभा सीट मध्य प्रदेश के प्रदेश की उन लोकसभा सीटों में से एक है, जो आज भी विकास की राह ताक रहा है. हमेशा ही इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला रहा है. ऐसे में कभी जीत भाजपा तो कभी कांग्रेस के हाथ लगती रही है. 1962 में अस्तित्व में आया खरगोन मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है, जो प्राकृतिक रूप से संपन्न और भरापूरा है. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक यहां पर 17,03,271 है, जिनमें से 8,66,897 पुरुष और 8,36,375 महिला मतदाताएं हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

2014 के राजनीतिक समीकरण
2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर BJP के सुभाष पटेल ने बड़े अंतर से जीत दर्ज कराई. इस चुनाव में एक ओर जहां सुभाष पटेल को 6,49,354 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस प्रत्याशी रमेश पटेल 3,91,475 वोट ही अपने नाम कर सके. बता दें इससे पहले 2009 में भी इस सीट पर BJP प्रत्याशी को ही जीत मिली थी.



खरगोन का राजनीतिक इतिहास
खरगोन संसदीय क्षेत्र में पहली बार 1962 में आम चुनाव हुए, जिसमें भारतीय जनसंघ ने जीत हासिल की. इसके बाद 1967 में हुए चुनाव में यहां कांग्रेस ने तो 1971 में फिर भारतीय जनसंघ ने जीत दर्ज कराई. वहीं 1980 और 1984 में यहां कांग्रेस का ही बोलबाला रहा, जिसके बाद 1989 में इस खरगोन में भाजपा प्रत्याशी रामेश्वर पाटीदार ने बड़ी जीत दर्ज कराई. रामेश्वर पाटीदार लगातार 1998 तक इस सीट से सांसद चुने गए, लेकिन 1999 के चुनाव में कांग्रेस के ताराचंद पटेल ने बाजी मारी. 1999 के बाद फिर 2004 में इस सीट पर भाजपा, 2007 में कांग्रेस, 2009 और 2014 में भाजपा ने इस सीट को अपने नाम किया.


सांसद का रिपोर्ट कार्ड
बात की जाए अगर खरगोन लोकसभा क्षेत्र से सांसद सुभाष पटेल के प्रदर्शन की तो अपने पिछले 5 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने 8 डिबेट में हिस्सा लिया. कार्यक्षेत्र के विकास के लिए सुभाष पटेल को 22.50 करोड़ रुपये आवंटित हुए, जिसमें से उन्होंने 87 फीसदी फंड खर्च कर दिया, जबकि 13 फीसदी फंड बिना खर्च किए रह गया.