नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की श्रीरामपुर लोकसभा सीट का इतिहास एकाधिकार रहा है, तो गलत नहीं होगा. यह एक ऐसी संसदीय सीट है जिस पर पहले 1952 में सीपीआई का उम्मीदवार सांसद चुना गया. एक बार सीपीएम को सफलता मिलने के बाद वो हर चुनावों में अपनी कहानी लिखती रही और लंबे वक्त सीपीएम ने सत्ता पर कब्जा जमाए रखा.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

1952 में जब पहली बार चुनाव हुआ तो सीपीआई के तुषार कांत चट्टोपाध्याय ने जीत हासिल की. हालांकि 1957 में यह बाजी पलट गई और इंडियन नेशनल कांग्रेस के जितेंद्र नाथ लहरी सांसद चुनकर सत्ता में आए. 2009 में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने सीपीएम को हराकर सीट अपने नाम कर ली. 2014 में भी यहां से तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ही यहां से सांसद हैं.


श्रीरामपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल सात विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें जगतबल्लवपुर, डोमजूर, उत्तरपारा, सेरामपुर, चांपदानी, चण्डीतला और जंगीपाड़ा शामिल हैं. इस बार यहां पर बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला देखा जा रहा है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2014 के चुनावों से सबक लेने के बाद बीजेपी ने पश्चिम बंगाल लोकसभा सीट पर अपनी धाक जमाने के कई सारे पैतरे आजमाएं हैं. हालांकि वो कितने कामयाब हुए इसका पता तो 25 मई को ही चलेगा.