नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव में बिहार का अररिया सीट पिछले दो चुनावों (आम चुनाव और उपचुनाव) से आरजेडी के खाते में रहा है. या यूं कहें कि तस्लीमुद्दीन परिवार का यहां दबदबा रहा है. मोहम्मद तस्लीमुद्दीन ने साल 2014 में मोदी लहर के बावजूद इस सीट पर जीत हासिल की थी. जबकि उनके बाद 2018 के उपचुनाव में उनके बेटे सरफराज आलम अपनी विरासत बचाने में कामयाब रहे थे. इसलिए इस बार सरफराज पर फिर से विरासत बचाने का दारमदार है.


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मोहम्मीद तस्लीमुद्दीन के परिवार का अररिया लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों पर काफी समय से दबदबा रहा है. जिसका फायदा आरजेडी समेत सरफराज आलम को मिला है. वहीं, प्रदीप सिंह जिन्हें मोदी लहर में तस्लीमुद्दीन से बड़ी हार मिली थी. लेकिन उपचुनाव में उस हार का बदला वह सरफराज आलम से नहीं ले पाए थे.



प्रदीप सिंह पर फिर जताया बीजेपी ने भरोसा
उपचुनाव में सरफराज आलम से उनकी हार का अंतर कम होने की वजह से इस बार उन्हें फिर से मौका दिया है. बीजेपी ने प्रदीप सिंह पर फिर से भरोसा जताया है. बता दें कि प्रदीप सिंह साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाई थी. लेकिन इसके बाद से उन्हें लगातार आमचुनाव और उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.


मोहम्मद तस्लीमुद्दीन

तस्लीमुद्दीन परिवार का राजनीतिक इतिहास
अररिया में होने वाले चुनावों में मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के परिवार का दबदबा रहा है. तस्लीमुद्दीन परिवार के बल पर यहां आरजेडी और जेडीयू दोनों ने जीत हासिल की है. इसलिए यहां जीत राजनीतिक पार्टियों की नहीं बल्कि तस्लीमुद्दीन परिवार के उम्मीदवार की होती है. इस परिवार के लोग आरजेडी और जेडीयू दोनों से टिकट हासिल कर चुके हैं.


जेडीयू में थे सरफराज आलम
सरफराज आलम पहले अररिया के जोकिहाट विधानसभा से जेडीयू की टिकट पर विधायक बने थे. लेकिन तस्लीमुद्दीन आरजेडी के टिकट से अररिया लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी. वहीं, 2018 में सरफराज आलम ने जेडीयू से नाता तोड़ आरजेडी में शामिल हो गए और अररिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई थी. लेकिन इस बार वह अपनी विरासत को बचाने के लिए उतरे हैं.


2009 में प्रदीप सिंह को मिली थी जीत
बीजेपी नेता प्रदीप सिंह ने पार्टी को 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत दिलाई थी. लेकिन 2014 में तस्लीमुद्दीन से उन्हें बुरी हार मिली थी. जिसमें वह करीब 1 लाख से अधिक वोट से हार गए थे. वहीं, उपचुनाव में सरफराज आलम से उन्हें फिर हार मिली, लेकिन इस बार वह करीब 60 हजार वोटों से हारे थे. अब 2019 के चुनाव में माना जा रहा है कि वह इस हार को अब जीत में बदल सकते हैं.


बहरहाल, प्रदीप सिंह कि राह तस्लीमुद्दीन परिवार के सामने आसान नहीं हैं. सरफारज आलम उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं. लेकिन सरफराज पर भी इस बात का दारमदार है कि क्या वह अपनी विरासत को बचा सकते हैं या नहीं. बता दें कि 20 अप्रैल को फारबिसगंज में पीएम मोदी खुद रैली करने वाले हैं. और अररिया में तीसरे चरण (23 अप्रैल) को मतदान किया जाएगा.