सिंगल एंट्रेंस टेस्ट के फायदे और नुकसान
आईआईटी समेत सभी इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए एकल प्रवेश परीक्षा (सिंगल टेस्ट) को लेकर सरकार और आईआईटी संस्थानों के बीच बीते कुछ माह से छिड़ा घमासान हालांकि अब थम तो जरूर गया है, लेकिन यह कई सवालों को जन्म भी दे रहा है।
बिमल कुमार
आईआईटी समेत सभी इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए एकल प्रवेश परीक्षा (सिंगल टेस्ट) को लेकर सरकार और आईआईटी संस्थानों के बीच बीते कुछ माह से छिड़ा घमासान हालांकि अब थम तो जरूर गया है, लेकिन यह कई सवालों को जन्म भी दे रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रतिभाशाली छात्रों की तादाद इन शीर्ष संस्थानों में फिर से बढ़ेगी। विगत कुछ वर्षों में कोचिंग से तैयारी करके छात्र आईआईटी में पहुंच तो जरूर रहे हैं, लेकिन प्रतिभाशाली छात्रों की वहां कमी है। इन्हीं स्थितियों को देखकर इन्फोसिस के संस्थापाक नारायणमूर्ति भी कुछ महीने पहले यह कहने को विवश हो गए थे कि आईआईटी जैसे शीर्ष संस्थानों से अब कम प्रतिभाशाली छात्र निकल रहे हैं। संस्थान से पढ़कर निकले कई छात्रों का स्तर काफी निम्न है। जबकि पहले तो इन संस्थानों के अधिकांश छात्रों ने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता का नया कीर्तिमान रचा और रच रहे हैं।
गौर हो कि देश भर में इस समय 14 आईआईटी हैं और औसतन कुल दस हजार सीटें हैं। इन विवादों के बीच इंजीनियरिंग में प्रवेश तैयारियों में जुटे लाखों छात्र ऊहापोह की स्थिति में फंस गए थे कि किस टेस्ट के लिए तैयारी करें। कुछ शिक्षाविद भी सिंगल टेस्ट के पक्ष में हैं और उनका मानना है कि प्रवेश परीक्षा आसाना हो ताकि छात्र तनावमुक्त रह सकें। इनका मानना है कि आज अच्छी नौकरी करने वाले इंजीनियर तो तैयार हो रहे हैं, मगर वैज्ञानिक तैयार नहीं हो रहे हैं। पिछले कुछ सालों में इंजीनियरिंग में अच्छी रिसर्च नहीं हो रही। जिसका काफी दूरगामी असर होगा।
बीते दिनों मानव संशाधन विकास मंत्री की गैरहाजिरी में आईआईटी काउंसिल ने कुछ संशोधनों के साथ आईआईटी सिंगल एंट्रेंस टेस्ट को मंजूरी दे दी। अब टेस्ट का संशोधित स्वरूप पहले से थोड़ा कठिन हो सकता है। इसमें आईआईटी फेकल्टी फेडरेशन की अधिकांश मांगें मानी गई हैं। काउंसिल ने इस टेस्ट को 2013 से लागू करने पर सहमति जता दी है और नए प्रारूप के अनुसार मेन एवं एडवांस टेस्ट अब एक ही दिन नहीं होंगे। इन दोनों टेस्टों के बीच एक महीने का अंतराल होगा।
प्रारूप ऐसा बना है कि मेन टेस्ट पास करने वाले डेढ़ लाख बच्चे ही एडवांस टेस्ट में बैठ सकेंगे। आईआईटी ही अब एडवांस टेस्ट को पूरी तरह आयोजित करेगी। इसकी मेरिट के आधार पर ही इन शीर्ष संस्थानों में प्रवेश दिया जाएगा। इससे पहले सरकार के साझा प्रवेश परीक्षा के प्रस्ताव को आईआईटी दिल्ली और आईआईटी कानपुर ने खारिज कर दिया था। विवाद कुछ इस तरह गहराया कि आईआईटी की साख पर ही खतरा मंडराने लगा। खैर किसी तरह से आईआईटी सीनेट और फेडरेशन की रजामंदी के बाद इस पर सहमति बनी।
अब यह तय हो गया कि 2013 से आईआईटी में दाखिला एडवांस परीक्षा में प्राप्त रैंक के आधार पर होगा और साथ ही चयनित छात्र को अपने बोर्डों के शीर्ष 20 फीसदी छात्रों में जगह बनाए रखना भी होगा अन्यथा उनके समक्ष मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।
सिंगल टेस्ट के फायदे हैं तो नुकसान भी हैं। फायदा यह कि अब छात्र-छात्राओं पर एक से अधिक परीक्षाओं का बोझ कम होगा। बोर्ड की पढ़ाई की अहमियत पहले के मुकाबले बढ़ेगी। इस समय इंजीनियरिंग की लगभग तीन दर्जन परीक्षाएं होती हैं। सिंगल टेस्ट पर सहमति के बाद बस एक परीक्षा ही देनी होगी। छात्रों को इन परीक्षाओं पर औसतन 3000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। पर अब एक हजार रुपये से भी कम खर्च होंगे। इसके अलावा, विभिन्न शहरों में जाकर परीक्षा देने के मद में आने वाले खर्च जैसे ठहरने, खाने-पीने, यात्राएं आदि के मद में जो अतिरिक्त खर्च करने पड़ते थे, अब एक ही जगह के खर्च पर सबकुछ निपट जाएगा। विभिन्न परीक्षाओं को लेकर छात्रों को जो मानसिक तनाव झेलना पड़ता था, उससे भी अब इन्हें राहत मिलेगी। अलग-अलग समय पर होने वाली परीक्षाओं की तैयारियों पर जो खर्च होते थे, उसमें भी अब बचत होगी। इस समय ज्यादातर बच्चे एक से ज्यादा परीक्षा देते हैं, जिससे उनके वक्त और पैसे दोनों बर्बाद होते हैं। एक ही टेस्ट होने से वक्त और पैसे दोनों की बचत होगी। साथ ही कोचिंग में भी कमी आएगी। अभी प्रतियोगिता इतना ज्यादा है कि कोचिंग लेना मजबूरी बन चुका है। छात्रों को अब सभी विषयों में पारंगत करने की जरूरत है, तभी उनका ज्ञान पूरा होगा। इसका फायदा यह भी होगा कि सामान्य बच्चों को भी तराशकर अच्छा इंजीनियर बनाया जा सकेगा।
वहीं, इसके कुछ नुकसान भी सामने आ सकते हैं। मसलन,कोचिंग की प्रथा पर लगाम पूरी तरह नहीं लग पाएगी। इसका सबसे बड़ा कारण यह होगा कि एडवांस टेस्ट आईआईटी तैयार करेगी जोकि कोर्स से बाहर का होगा। वहीं सभी राज्य इस टेस्ट में शामिल नहीं हो रहे हैं, इसलिए कैपिटेशन फीस पर भी पूरी तरह रोक नहीं लग पाएगी। एक और सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि बोर्ड परीक्षा में कम अंक लाने वाले छात्र पीछे रह जाएंगे। पर्सेन्टाइल का जो पैमाना तय किया गया है, उसके अनुसार कम अंक मिलने वाले बोर्ड के बच्चों को बेहतर मौके मिलेंगे क्योंकि यह व्यवस्था हर साल के रिजल्ट व परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या पर निर्भर करेगी। वहीं, सीबीएसई बोर्ड के बच्चे पुरानी प्रणाली के हिसाब से थोड़ा कम स्थान पा सकते हैं। सिंगल टेस्ट का जो प्रारूप तैयार किया गया है, उसमें बोर्ड के अंकों को चालीस फीसदी की वेटेज दी गई है। सरकार का यह मानना है कि यह कदम कोचिंग के कारोबार को हतोत्साहित करेगा। साथ ही इससे ग्रामीण पृष्ठभूमि के योग्य छात्रों को आईआईटी में पहुंचने का मौका मिलेगा।
पहले इस टेस्ट को र्आईआईटी काउंसिल ने तो मंजूरी प्रदान की लेकिन बाद में र्आईआईटी कानपुर की सीनेट ने विरोध करते हुए नया अध्यादेश जारी कर दिया था। और अपना अलग टेस्ट आयोजित करवाने पर अड़ गया था। र्आईआईटी कानपुर समेत सभी संस्थानों की एक राय यह थी कि इस टेस्ट को 2014 से लागू किया जाए, ताकि छात्रों को तैयारी का मौका मिल सके। गौर हो कि र्आईआईटी की स्थापना एक अधिनियम के जरिये हुई है, जो आईआईटी एक्ट 1961 है। इसमें सीनेट, आईआईटी बोर्ड और आईआईटी काउंसिल के अधिकारों का जिक्र है, लेकिन कुछ बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने सिमरन जैन केस में केंद्र सरकार को सलाह दी थी कि मेडिकल में प्रवेश के लिए दर्जनों प्रवेश परीक्षाएं क्यों होते हैं। एक टेस्ट के सवाल पर सरकार ने हामी भरी थी और उस दिन के बाद से इस दिशा में पहल शुरू कर दी थी। मेडिकल में प्रवेश के लिए अगले साल से अब एक टेस्ट हो रहा है। इसी की तर्ज पर इंजीनियरिंग में भी एक टेस्ट पर सहमति बनी। हाल के वर्षों में कोचिंग का बोलबाला बढ़ा है। आलम यह है कि आईआईटी में चुने जाने वाले 95 फीसदी छात्र कोचिंग से निकले होते हैं। इनमें ग्रामीण छात्रों की सफलता दर तकरीबन नगन्य होती है। ऐसे में सरकार का इरादा यह था कि इन टेस्टों में योग्य ग्रामीण छात्रों को पर्याप्त मौका मिल सके। लेकिन टेस्ट के तैयार प्रारूप पर आईआईटी संस्थानों के संकाय सदस्यों को भारी आपत्ति थी, जिस पर गतिरोध लंबा खिंच गया। सरकार इस मूड में कतई नहीं थी कि ये गतिरोध और बढ़े।
सरकार इस टेस्ट प्रारूप को लागू करवाने की जल्दबाजी में इसलिए थी कि यदि 2013 में सिंगल एंट्रेंस टेस्ट लागू नहीं होता तो फिर इसके लटकने के आसार बढ़ जाते क्योंकि 2014 चुनावी वर्ष है, जिसमें इसे लागू करना मुश्किल होता। बहरहाल, अब जबकि सिंगल टेस्ट पर सहमति बन चुकी है, इन शीर्ष संस्थानों के फेकल्टी को चाहिए कि वे छात्रों को ऐसी शिक्षा मुहैया करवाएं जिससे कि शोध और वैज्ञानिकी के क्षेत्र में और ऊंचा मुकाम हासिल हो सके तथा देश का नाम और रौशन हो।