दशहरे का पर्व पूरे भारत में अच्छाई की बुराई पर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जहां श्रीराम के हाथों रावण के वध की याद में हर साल रावण का पुतला जलाया जाता है. लेकिन उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा के पास स्थित बिसरख गांव में दशहरा की परंपरा कुछ अलग ही है. यहां रावण का पुतला जलाना तो दूर, रावण की पूजा की जाती है. इस गांव में दशहरे के दिन न रामलीला होती है और न रावण दहन.


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बिसरख गांव के लोग मानते हैं कि यही वह पवित्र भूमि है, जहां रावण का जन्म हुआ था. बिसरख को रावण की जन्मस्थली माना जाता है और इसी कारण यहां रावण का सम्मान किया जाता है. इस गांव के लोग रावण को एक विद्वान ब्राह्मण और शिव भक्त के रूप में देखते हैं और उनका मानना है कि रावण का पुतला जलाना उनके लिए अनुचित और अन्यायपूर्ण है.


गांव में स्थित एक प्राचीन मंदिर में रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा द्वारा स्थापित एक अष्टकोणीय शिवलिंग है, जिसे लेकर मान्यता है कि रावण और उनके भाई कुबेर ने इस शिवलिंग की पूजा की थी. मंदिर के महंत बताते हैं कि रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या करते हुए इस शिवलिंग पर अपना सिर अर्पित किया था, जिसके बाद उन्हें भगवान शिव से 10 सिर का वरदान मिला.


यहां के लोग क्यों नहीं जलाते रावण?
गांव के लोग एक पुराने किस्से का जिक्र करते हैं, जब कई साल पहले एक व्यक्ति ने रावण का पुतला जलाने की कोशिश की थी. ऐसा करने के बाद उसका जीवन संकट में आ गया और उसका घर खंडहर में तब्दील हो गया. इसी घटना के बाद से गांव में रावण का पुतला जलाना पूरी तरह वर्जित है.


क्या बोलते हैं यहां के लोग?
बिसरख के निवासियों का विश्वास है कि रावण यहां का एक पवित्र आत्मा हैं और उनका सम्मान करना उनके लिए आवश्यक है. यहां के लोग रावण बाबा को पूजते हैं और मन्नतें मांगते हैं, जिनके पूरा होने की कहानियां भी गांव में आम हैं. दशहरे के दिन जब पूरे देश में रावण का दहन किया जाता है, तब बिसरख में रावण की पूजा की जाती है और उनकी विद्वत्ता का सम्मान किया जाता है.