Ganga River: पिघल रहे गंगोत्री के ग्लेशियर..धीमी पड़ जाएगी गंगा की धारा, रिसर्च ने चौंकाया
Gangotri Glacier: गंगोत्री का ग्लेशियर 30 किलोमीटर लंबा है. 143 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल. 0.5 से 2.5 किलोमीटर की चौड़ाई. इसके एक छोर पर 3950 फीट की ऊंचाई पर गौमुख है. जहां से भागीरथी नदी निकलती है. बाद में जाकर देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा नदी बनाती है.
Water of Holi River Ganga: भारत की महान सभ्यता के सबसे चमकीले और सबसे चमत्कारिक हिस्से में गंगा नदी का नाम भी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. लेकिन अब गंगा का अस्तित्व धीरे-धीरे खतरे में पड़ रहा है. एक तरफ जहां गंगा नदी का पानी दूषित होता जा रहा है तो वहीं गंगोत्री के ग्लेशियर जितनी तेजी से पिघल रहे हैं वे आने वाले समय में गंगा के पानी क और भी ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं. इस संबंध में एक स्टडी सामने आई है जो काफी चौंकाने वाली है.
बढ़ता तापमान, कम बर्फबारी और ज्यादा बारिश!
दरअसल, देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के साइंटिस्ट डॉ. राकेश भाम्बरी की स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाला हिस्सा 1700 मीटर यानी पौने दो किलोमीटर पिघल चुका है. इसकी वजह बढ़ता तापमान, कम बर्फबारी और ज्यादा बारिश है.
चतुरंगी ग्लेशियर की सीमा सिकुड़ गई
असल में गंगोत्री के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, गंगोत्री गंगा के जल का मुख्य स्रोत है जिसके सहायक ग्लेशियरों के पिघलने का असर गंगा नदी के प्रवाह पर पड़ सकता है. शोध में बताया गया है कि करीब 27 वर्षों में चतुरंगी नामक ग्लेशियर की सीमा करीब 1172 मीटर से अधिक सिकुड़ गई है. इस कारण चतुरंगी ग्लेशियर के कुल क्षेत्र में 0.626 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है और 0.139 घन किलोमीटर बर्फ कम हो गई है.
ग्लेशियर के पिघलने के पीछे कई वजहें
एक रिपोर्ट के मुताबिक गंगोत्री ग्लेशियर करीब 30 किलोमीटर लंबा है. पिछले 87 सालों में यह 1700 मीटर पिघल चुका है. यह पिघलाव तेज हैं. लेकिन कब तक पिघल जाएगा. यह बता पाना मुश्किल है. क्योंकि किसी भी ग्लेशियर के पिघलने के पीछे कई वजहें हो सकती है. जैसे- जलवायु परिवर्तन, कम बर्फबारी, बढ़ता तापमान, लगातार बारिश आदि.
गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की का दर एक साल में 19.54 मीटर है. इस हिसाब से गंगोत्री ग्लेशियर 1535 से लेकर 1500 साल में पिघल जाएगा. लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं हो सकता. क्योंकि यह नहीं पता है कि कब कितनी बर्फबारी हो जाए. कब कितनी बारिश हो जाए. कब कितना तापमान बढ़ जाए. वहीं पिछले अध्ययनों के मुताबिक गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने के बारे में पता चला है, लेकिन उसके पिघलने की दर चतुरंगी ग्लेशियर से काफी कम है. छोटे आकार और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होने के कारण चतुरंगी ग्लेशियर के सिकुड़ने की दर गंगोत्री ग्लेशियर की तुलना में अधिक है.
कैसे बनते हैं ग्लेशियर:
ग्लेशियर (Glacier) को हिंदी में हिमनद (River of Ice) कहते हैं. यानी बर्फ की नदी, जिसका पानी ठंड के कारण जम जाता है. हिमनद में बहाव नहीं होता. अमूमन हिमनद जब टूटते हैं तो स्थिति काफी विकराल होती है. क्योंकि बर्फ पिघलकर पानी बनता है और उस क्षेत्र की नदियों में समाता है. इससे नदी का जलस्तर अचानक काफी ज्यादा बढ़ जाता है. ग्लेशियर दो प्रकार के होते हैं, अल्पाइन ग्लेशियर या घाटी (Valley), ग्लेशियर का पहाड़ (Mountain). ग्लेशियर वहां बनते हैं जहां काफी ठंड होती है.
बर्फ हर साल जमा होती रहती है. मौसम बदलने पर यह बर्फ पिघलती है जो नदियों में पानी का मुख्य स्त्रोत होता है. ठंड में बर्फबारी होने पर पहले से जमीं बर्फ दबने लगती है. उसका घनत्व (Dnesity) काफी बढ़ जाता है. हल्के क्रिस्टल (Crystal) ठोस (Solid) बर्फ के गोले यानी ग्लेशियर में बदलने लगते हैं. नई बर्फबारी होने से ग्लेशियर नीचे दबाने लगते हैं. और कठोर हो जाते हैं, घनत्व काफी बढ़ जाता है. इसे फर्न (Firn) कहते हैं. इस प्रक्रिया में ठोस बर्फ की बहुत विशाल मात्रा जमा हो जाती है. बर्फबारी के कारण पड़ने वाले दबाव से फर्न बिना अधिक तापमान के ही पिघलने लगती है और बहने लगती है.
फिलहाल अब चिंता की बात यह है कि जलवायु परिवर्तन और अन्य तमाम वजहों के चलते दुनियाभर के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. इसी कड़ी में गंगोत्री का भी ग्लेशियर संकट में है. गंगोत्री उत्तराखंड के हिमालय का सबसे बड़ा ग्लेशियर है. 30 किलोमीटर लंबा. 143 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल. 0.5 से 2.5 किलोमीटर की चौड़ाई. इसके एक छोर पर 3950 फीट की ऊंचाई पर गौमुख है. जहां से भागीरथी नदी निकलती है. बाद में जाकर देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा नदी बनाती है.