Mughal History: मुगलों ने भारत पर लंबे वक्त तक राज किया. इस दौरान न जाने कितने फरमानों का जनता को पालन करना पड़ा. कभी ज्यादा टैक्स देना पड़ा तो कभी कत्लेआम झेलना पड़ा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुगल काल में तलाक को लेकर क्या नियम थे. अगर इतिहास के पन्ने पलटें तो मुगल काल में मुसलमानों में तलाक के मामले नाममात्र ही आते थे. 


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1595 में अकबर के आलोचक और समकालीन इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूनी ने कहा, " स्वीकार किए गए रिवाजों में तलाक सबसे बुरा चलन है. इसका उपयोग ही मानवता के खिलाफ है. हालांकि यह अच्छी बात है कि भारतीय मुसलमानों को इससे नफरत है. अगर कोई उनको तलाकशुदा कह दे तो वह मरने-मारने पर उतारू हो जाएंगे.''


मजलिस-ए-जहांगीर के मुताबिक, 20 जून 1611 को बादशाह जहांगीर ने यह ऐलान किया था कि बीवी की जानकारी के बिना शौहर का तलाक की घोषणा करना अवैध है. इसकी इजाजत काजी ने भी दी थी.


उस दौर में पत्नी की तरफ से तलाक या 'खुला' का चलन था. साल 1628 में एक दस्तावेज में एक पुरुष का जिक्र है, जिसने निकाह खत्म करने के लिए राजी होने के लिए पत्नी से 70 महमूदिस (42 रुपये) लिए थे.  


एक अन्य मामला 8 जून 1614 को आया था, जब एक पत्नी अपने शौहर को सूरत के काजी के सामने ले गई. उसने पति से कबूल करवाया कि अगर उसने दोबारा ताड़ी या शराब पी तो वह उससे तलाक ले लेगी. 


निकाहनामे के नियम क्या थे?


ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय निकाहनामों में चार नियमों का जिक्र होता था. ये थे:


  • कोई अपनी पत्नी को नहीं पीटेगा.

  • अगर पत्नी है तो कोई दूसरी शादी नहीं करेगा.

  • कोई पत्नी से ज्यादा वक्त तक दूर नहीं रहेगा. इस अवधि में उसको पत्नी के गुजारे का बंदोबस्त करना होगा.

  • कोई पुरुष पत्नी के रूप में दासी को नहीं रखेगा.


 अगर पहली तीन शर्तें टूटती हैं तो निकाह को खत्म किया जा सकता है. ये चारों शर्तें या नियम अकबर से औरंगजेब के समय के दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि चौथी शर्त में यह हक पत्नी के पास होता था कि वह दासी को बेच दे या आजाद कर दे. या फिर जो शौहर से मेहर की राशि मिलती है, उसके बदले यह रकम रख ले.