Mughal Emperor Aurangzeb: मुगलों ने भारत में करीब 300 साल तक राज किया. बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब होते हुए बहादुर शाह जफर तक पहुंचा. इतिहास में अकबर को उदार और औरंगजेब को मुगल इतिहास का सबसे कट्टरपंथी और क्रूर बादशाह बताया गया है. आज बात औरंगजेब की जो लंबी उम्र और सबसे ज्यादा समय तक राज करने के मामलों में सबसे आगे रहा. कहा जाता है कि अपने आखिरी समय में औरंगजेब की हेकड़ी निकल गई थी. कैसा था औरगंजेब की जिंदगी का आखिरी दिन, उसके आखिरी शब्द क्या थे, मरते समय उसने दिमाग में क्या चल रहा था और उसे कौन सी चिंता खाए जा रही थी, आइए बताते हैं.


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कहलाता था आलमगीर


औरंगजेब मुगल साम्राज्य का छठा बादशाह था जिसने 31 जुलाई 1658 से 3 मार्च 1707 तक अपनी मृत्यु तक राज किया. औरंगजेब को मुगल काल का अंतिम प्रभावी बादशाह माना जाता है. औरगंजेब खुद को आलमगीर यानी विश्व विजेता कहलाना पसंद करता था. औरंगजेब ने सत्ता हासिल करने के लिए पिता शाहजहां को कैद किया. भाई दारा शिकोह की हत्या कराई. हिंदुस्तान में उत्तर भारत के बाद दक्कन का रुख किया और वहां जीते गए हिस्सों में शरिया और इस्लामी कानून को लागू किया. इसके साथ ही उसने अकबर द्वारा खत्म किया गया गैर-मुस्लिमों पर लगने वाला जजिया कर वसूलना शुरू कर दिया था.


मरते समय औरंगजेब को था अफसोस


औरंगजेब दुनियावी चीजों से ज्यादा दीनी (मजहबी) बातों को पसंद करता था. यही वजह थी कि उसके हरम में सबसे कम महिलाएं थीं. इतिहासकारों के मुताबिक अपने आखिरी समय में औरंगजेब खुद से बातें कर रहा था. उसने कहा, 'अल्लाह ने मुझे जितनी सांसें बख़्शी थीं, उसका एक कतरा भी मैं अदा नहीं कर पाया. क्या मुंह दिखाऊंगा उन्हें?' ये कहते हुए उसने बोलना बंद कर दिया था, लेकिन होंठ कुछ बड़बड़ा रहे थे. उसके बेटे आज़म शाह ने जब गौर से पिता का चेहरा देखा तो हैरान रह गया. आजम ने झुककर अपने पिता की बात सुनने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा. उसने मुगल सल्तनत के सबसे ताकतवर और बूढ़े हाथों को अपने हथेलियों में जकड़ना चाहा, लेकिन औरंगजेब का शरीर ठंडा होने की वजह से वो ऐसा कर नहीं पाया.


मरते समय था खुद को कहा 'पापी'


रिपोर्ट्स के मुताबिक औरंगजेब ने उसी दौरान अपने छोटे बेटे कामबख़्श को बुलाकर अपनी चिंता जताई. उसने कहा, 'मेरे मरने के बाद मेरे लोगों से बुरा सलूक होगा. जो मैंने लोगों के साथ किया, वही मेरे अपनों के साथ होगा.' उसने अपने दूसरे और सबसे चहेते बेटे आजम शाह से कहा, 'बादशाह के तौर पर मैं नाकाम रहा. मेरा कीमती जीवन किसी काम नहीं आया. अल्लाह चारों ओर है, लेकिन मैं बदनसीब हूं कि जब उनसे मिलने की घड़ी आ रही है तब मैं उनकी मौजूदगी महसूस नहीं कर पा रहा. मैं पापी हूं. शायद मेरे गुनाह ऐसे नहीं, जिसे माफ किया जा सके.'


औरगंजेब का आखिर दिन


मौत करीब आ रही थी और वो परेशान था. बादशाह जिंदगी के आखिरी दिन बेबस था. वो कई दिनों से दुआओं में सुकून ढूंढ रहा था. अपनी मौत के दिन भी उसने सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लिया. बेटे आजम शाह को बुलाकर बात करते-करते सो गया. कुछ समय बाद नींद टूटी लेकिन आंखें सही  से नहीं खुल पा रही थीं. उसके आस-पास भीड़ थी. अंतिम वक्त आ गया था. एक आखिरी प्रार्थना हुई. उसकी आंखे बंद हो गईं और प्राण निकल गए.


औरंगजेब ने गद्दी हासिल करने के लिए पहले अपनों का खून बहाया फिर 50 साल तक राज करने के दौरान औरंगजेब ताउम्र लड़ता रहा. उसके सारे गुनाह आखिरी वक्त में परछाई बनकर उसके सामने आ गए थे. बीजापुर को फतह करने की सनक ने उसे 88 साल की उम्र में ऐसी जगह पहुंचा दिया था, जहां से उसने लाल किले को वापस देखने की उम्मीद छोड़ दी थी. यही वजह रही कि उसकी आखिरी इच्छा के मुताबिक (जहां मैं मरूं वहीं कहीं पास में दफना देना) औरंगजेब को औरंगाबाद में सुपुर्दे खाक कर दिया गया.