Railway Track vs Metro Track: आपने कभी न कभी ट्रेन से सफर किया होगा, आपने देखा होगा कि रेलवे के ट्रैक पर पत्‍थर होते हैं. वहीं अगर आपने दिल्‍ली, मुंबई या ऐसे शहरों में सफर किया है जहां मेट्रो ट्रेन है तो आपने कुछ अंतर महसूस किया होगा. वह अंतर रेलवे ट्रैक का रहता है. दरअसल, मेट्रो ट्रैक पर पत्‍थर नहीं बिछाए जाते हैं. इसके पीछे क्‍या वजह हो सकती है? क्‍या मेट्रो अपनी कॉस्‍ट कटिंग की वजह से ऐसा करता है? इसके अलावा आपने एक बात और नोटिस की होगी कि मेट्रो के ट्रैक कांक्रीट के बने होते हैं. इन सब प्रश्‍नों के बारे में जानते हैं.       


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रेलवे ट्रैक्स पर पत्थर क्‍यों? 


मेट्रो ट्रैक्स पर पत्थर नहीं डाले जाते हैं, इसके बारे में जानने से पहले हमें यह समझना जरूरी है कि रेलवे ट्रैक्स पर पत्थर क्यों डाले जाते हैं. रेलवे ट्रैक पर जो पत्थर बिछे होते हैं उसे बैलेस्ट कहा जाता है. जब ट्रेन इस ट्रैक पर चलती है तो उस जगह पर तेजी से कंपन होता है और शोर भी बहुत होता है. ट्रैक पर डाली गई गिट्टियां इस शोर को कम कर देती हैं और कंपन की वजह से ट्रैक के नीचे की पट्टी, जिसे स्लीपर्स कहा जाता है, उसे फैलने से रोकती है. आपने देखा होगा इन गिट्टियों का रख रखाव भी किया जाता है. जिसमें काफी खर्चा होता है. कई बार देखा गया है कि इस रख-रखाव की वजह से रेलवे ट्रैक को ब्लॉक करना पड़ता है. 


मेट्रो ट्रैक पर पत्थर क्‍यों नहीं?


मेट्रो ट्रैक्स बहुत बिजी रहता है, इसीलिए इन ट्रैक को बार-बार ब्लॉक करना संभव नहीं होता है. इसीलिए इन ट्रैक्स को बिना बैलेस्ट के तैयार किया जाता है. इसके अलावा मेट्रो के ट्रैक जमीन से ऊपर बने होते हैं या जमीन के नीचे. इस वजह से भी इनका मेंटेनेंस करना सम्भव नहीं होता है. यहां हर 5 से 10 मिनट में मेट्रो आती है. इस वजह से इन ट्रैक्स को ब्लॉक करने से आम लोगों को परेशानी हो सकती है. इसीलिए इन ट्रैक्स को बिना गिट्टी के रखा जाता है. हालांकि इस पर कांक्रीट कर दिया जाता है. 


मेट्रो ट्रैक होता है महंगा 


मेट्रो ट्रैक कांक्रीट का बना होता है, इस वजह से इसे बनाने में खर्चा भी ज्यादा होता है, लेकिन इनका मेंटेनेंस बिल्कुल न के बराबर रहता है. इन ट्रैक्स को कंपन से बचाने के लिए अलग-अलग तरह से डिजाइन किया जाता है. 


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