UNSC Membership: चीन कैसे बना UNSC का स्थाई सदस्य? सीट थी ताइवान की पर `ड्रैगन` को मिल गई
UNSC VETO: चीन (China) की खोटी नीयत का गवाह दुनिया कई बार बन चुकी है. कुछ मामलों में तो `ड्रैगन` का इतिहास बेहद काला रहा है. अब सुरक्षा परिषद की सीट की ही बात ले लीजिए, अपने वीटो से दुनिया के दुर्दांत आतंकवादियों को बचाने वाले चीन के UNSC का स्थाई सदस्य बनने की कहानी भी आपको हैरान कर देगी.
Chian UNSC Membership: चीन (China), संयुक्त राष्ट्र (UN) में लंबे समय से अपने छोटे भाई 'पाकिस्तान' (Pakistan) के पाले आतंकवादियों को वैश्विक आतंकी घोषित होने से बचाकर पूरी मानवता को शर्मसार कर रहा है. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में आतंकी साजिद मीर को 'ग्लोबल टेररिस्ट' घोषित करने का जो प्रस्ताव आया, उसे चीन ने अपने वीटो से गिरा दिया. चीन की ऐसी हरकतों का लंबा इतिहास रहा है. चीन का वीटो इतना ताकतवर कैसे है कि हर बार सुरक्षा परिषद में लाए गए प्रस्ताव को गिरा देता है. इसे जानने से पहले ये जानना जरूरी होगा कि आखिर चीन को संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट कब और कैसे मिली? जिसका वो बड़ी बेशर्मी से इस्तेमाल करता है.
'सुरक्षा परिषद की सीट ताइवान की थी पर चीन को मिल गई'
चीन की यूएनएसी में एंट्री की कहानी भी दिलचस्प है. इसे ताइवान की खराब किस्मत कहिए या समय की विडंबना कि सुरक्षा परिषद की सीट जो ताइवान को मिलनी थी वो चीन को मिल गई. सुरक्षा परिषद की ये वो सच्चाई है जो आपके होश उड़ा देगी. दरअसल साल 1945 में संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य रहा ताइवान 1971 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी पीआरसी (PRC) से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अपनी सीट गंवा बैठा था.
चीन कैसे बना UNSC का सदस्य?
ताइवान कैसे इस सीन से आउट और चीन इन हुआ इसकी सबसे बड़ी वजह 'वन चाइना पॉलिसी' रही. संयुक्त राष्ट्र (UN) के चार्टर को UNSC का मौलिक दस्तावेज माना जाता है और चूंकि 'वन चाइना' पॉलिसी को UN ने आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया था. इसके बाद यहां ताइवान की सदस्यता पर ही ग्रहण लग गया. वन चाइना पॉलिसी का मतलब ये हुआ कि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना चीन की वैध सरकार है और ताइवान उसका अभिन्न अंग है. इस वजह से सीट उसके हाथ से निकल गई.
'74 साल पहले चीन ने किया ये खेल'
दिसंबर 1949 में चीन और ताइवान दोंनो ने खुद को अलग-अलग राष्ट्र घोषित कर दिया. ताइवान के तत्कालीन शक्तिशाली नेता चिआंग काई-शेक ने 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' (ROC)नाम रख दिया. दूसरी ओर चीन में माओ त्से तुंग ने बीजिंग में 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' यानी PRC का राज होने का ऐलान किया. तब ये तय हुआ था कि जो पीआरसी से संबंध रखना चाहते हैं उन्हें आरओसी से संबंध तोड़ना होगा. दोनों 'वन चाइना पॉलिसी' का पालन करते थे. ऐसे में राजनयिक संबंधों में बाकी देशों के लिए काफी मुश्किल स्थिति बन गई थी. ऐसी हालत में संयुक्त राष्ट्र के लिए भी मुश्किल होने लगा. तब यह सवाल सबसे अहम था कि कौन सी सरकार चीन का वास्तविक प्रतिनिधित्व करती है? इस बीच दुनिया में बीजिंग का दखल बढ़ता गया.
कैसे सिमट गया ताइवान?
रिपब्लिक ऑफ चीन सरकार के च्यांग काई-शेक ने UN में असली चीन होने का दावा किया लेकिन कामयाबी नहीं मिली. वक्त बीतने के साथ उन देशों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई जिन्होंने बीजिंग को मान्यता देना शुरू कर दिया और इस तरह ताइपे के प्रति दुनिया के देशों का रुझान कम होता गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि ताइवान खुद में सिमट गया.
फिर 1971 में चीन की कम्युनिस्ट सरकार को ही असली सरकार मान लिया गया. जिसके बाद UN ने 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' की बजाय 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' को मान्यता दी. इस तरह से संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सीट भी ताइवान की जगह चीन को मिल गई. तब बीजिंग ने UNSC की स्थायी सदस्यता को लेकर कहा था कि एक ही संगठन में उसके हिस्से के लिए कोई अलग से सीट नहीं हो सकती. अब ताइवान की जगह चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट दी गई, इसलिए वीटो पावर भी उसके पास ही चला गया.
क्या है वीटो पावर?
UNSC में वीटो पावर सिर्फ 5 स्थायी सदस्य देशों के पास है. वीटो पावर किसी भी प्रस्ताव को वीटो (नामंजूर) करने का अधिकार देती है. वीटो पावर इसलिए ताकतवर है क्योंकि किसी एक भी सदस्य ने इसका इस्तेमाल कर लिया तो कोई भी प्रस्ताव खारिज हो जाता है. अगर किसी प्रस्ताव को वीटो लगाकर गिरा दिया गया तो कम से कम 6 महीने तक उस प्रस्ताव को दोबारा नहीं लाया जा सकता है. चीन अपनी इसी ताकत का दुरुपयोग करके पाकिस्तानी के पाले पोसे आतंकवादियों को बचा लेता है.