Corona से हुई 70 लाख मौतों का जिम्मेदार है चीन! रिसर्चर के दावे से कहीं छिड़ ना जाए Third World War
Coronavirus: दुनियाभर की रिसर्च इशारा करती रहीं कि कोरोना वायरस चीन की वुहान लैब से पूरी दुनिया में फैला है लेकिन चीन ने इस सच को छिपाने के लिए नए-नए झूठ गढ़े. लेकिन चाहे लाख छिपा लो, सच एक ना एक दिन बाहर आ ही जाता है.
China Coronavirus: दुनियाभर में 70 लाख लोगों की जान लेने वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन ने कभी भी सच कबूल नहीं किया. दुनियाभर की रिसर्च इशारा करती रहीं कि कोरोना वायरस चीन की वुहान लैब से पूरी दुनिया में फैला है लेकिन चीन ने इस सच को छिपाने के लिए नए-नए झूठ गढ़े. लेकिन चाहे लाख छिपा लो, सच एक ना एक दिन बाहर आ ही जाता है और अब जब कोरोना वायरस का प्रकोप खत्म हो चुका है तब चीन का सच बाहर आ चुका है.
सच ये है कि चीन ने जानबूझकर पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलाया था. सच ये है कि कोरोना वायरस को वुहान लैब में ही इंजीनियर्ड किया गया था यानी इंसानों में संक्रमण के लिए उसमें बदलाव किए थे. सच ये है कि चीन ने जान-बूझकर कोरोना वायरस से लोगों को संक्रमित करवाया. सच ये है कि कोरोना वायरस को चीन ने बायो-वेपन यानी जैविक हथियार के तौर पर तैयार किया था.
इस सच को झुठला पाना अब चीन के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योंकि ये खुलासा करने वाला कोई और नहीं बल्कि चीन की वुहान लैब में करने वाला एक रिसर्चर है जिसका नाम चाओ शाओ है. जिन्होंने इंटरनेशनल प्रेस एसोसियेशन की सदस्य और मानवाधिकार कार्यकर्ता जेनिफर जेंग को इंटरव्यू दिया है.
इस इंटरव्यू में चाओ शाओ ने कौन-कौन से बड़े खुलासे किये हैं, आपको बताते हैं...
रिसर्चर चाओ शाओ के एक साथी शान चाओ को कोरोना वायरस के 4 स्ट्रेन्स जांच के लिए दिए गए थे. इस जांच का मकसद ये जानना था कि चारों में से कौन सा स्ट्रेन सबसे ज्यादा और सबसे प्रभावी तरह से संक्रमण फैला रहा है. साथ ही इस जांच से ये भी पता लगाना था कि कोरोना वायरस का कौन सा स्ट्रेन इंसानों पर सबसे ज्यादा असरदार है.
यानी चीन की वुहान लैब में कोरोना वायरस तैयार किया गया था और उसकी जांच के लिए भी वुहान लैब में ही प्लानिंग की गई थी. वुहान लैब के रिसर्चर रह चुके चाओ शाओ ने इंटरव्यू में ये भी बताया है कि कोरोना वायरस के स्ट्रेन्स की जांच कैसे की गई. चाओ शाओ के मुताबिक, रिसर्चर्स वर्ष 2019 में वुहान में हुए मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स में वायरस फैलाने गए थे.
चाओ शाओ ने बताया कि 2019 के मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स के दौरान वुहान लैब के कुछ रिसर्चर्स लापता हो गए थे. इन रिसर्चर्स को अलग-अलग देशों से आए खिलाड़ियों की हाइजीन कंडीशन्स चेक करने के लिए होटल भेजा गया था. दरअसल हेल्थ चेकअप के बहाने रिसर्चर्स ने विदेशी खिलाड़ियों को कोरोना वायरस से संक्रमित किया था.
यानी चीन ने जानबूझकर मिलिट्री वर्ल्ड गेम्स को कोरोना वायरस स्ट्रेन्स की जांच का जरिया बना लिया. आपको शायद याद होगा कि कोरोना महामारी की शुरुआत भी इन गेम्स के बाद वापस अपने-अपने देश लौटे खिलाड़ियों से होने की थ्योरी भी सामने आई थी. अब इस खुलासे ने इस थ्योरी को सर्टिफाई कर दिया है. वुहान लैब के पूर्व रिसर्चर चाओ शाओ ने इंटरव्यू में एक और खुलासा किया है.
चाओ शांग ने बताया है कि अप्रैल 2020 में उनके एक साथी को शिनजियांग प्रांत में उइगर लोगों पर कोरोना वायरस स्टेन्स चेक करने भेजा गया था. चाओ के मुताबिक उनके साथियों ने उइगर मुसलमानों के डिटेंशन कैंप में लोगों के हेल्थ चेकअप के बहाने कोरोना वायरस के टेस्ट किए थे. चाओ शांग ने आशंका जताई कि उनके साथी को असल में या तो कोरोना फैलाने या फिर इंसानों पर इस वायरस के रियेक्शन को देखने के लिए भेजा गया था.
कुछ लोग कह सकते हैं कि कोरोना महामारी चली ही गई है तो अब इस तरह के खुलासों का क्या मतलब है लेकिन हमारा मानना है कि दुनियाभर में 70 लाख लोगों की जान लेने का मुजरिम पकड़ा जाना चाहिए. अगर कोरोना वायरस वुहान लैब से फैला है तो ये सच सामने आना ही चाहिए और इसके आधार पर चीन को कटघरे में खड़ा भी किया ही जाना चाहिए.
फिर भले ही चीन कहता रहे कि कोरोना वायरस के फैलने में उसकी कोई भूमिका नहीं है लेकिन सारे सबूत और गवाह इस तरफ ही इशारा करते आए हैं कि कोरोना महामारी चीन से फैली और चीन के द्वारा ही फैलाई गई. चीन की वुहान लैब के पूर्व रिसर्चर ने जो दावे किए हैं उन दावों की पुष्टि चीन की सेना PLA द्वारा तैयार किए गए एक रिसर्च पेपर से भी होती है.
ये रिसर्च पेपर ऑस्ट्रेलिया के एक अख़बार द्वारा वर्ष 2021 में प्रकाशित किया गया था और इसमें ये बताया गया था कि कोरोना वायरस को जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की चर्चा चीन में 2015 में ही शुरू हो गई थी.
चीन के उस रिसर्च पेपर का शीर्षक था ''The Unnatural Origin of SARS and New Species of Man-Made Viruses as Genetic Bio-weapons.'' हिन्दी में इसका अर्थ है इंसानों द्वारा विकसित किए गए वायरस की अप्राकृतिक उत्पत्ति यानी वर्ष 2020 में जब कोरोना वायरस का पहला मामला चीन के वुहान शहर में सामने आया, उससे 5 साल पहले ही इस पर एक रिसर्च पेपर तैयार हो गया था और इसे तैयार करने वाले चीन की सेना के वैज्ञानिक और उसके बड़े स्वास्थ्य अधिकारी थे.
इस रिसर्च पेपर में तब चीन के वैज्ञानिकों ने कहा था कि Corona Virus Biological Weapons के नए युग की शुरुआत कर सकता है क्योंकि उनका मानना था कि अगर इसमें बदलाव किए गए तो ये वायरस इंसानों में बड़े पैमाने पर बीमारी फैला सकता है. इसी रिसर्च पेपर में चीन के वैज्ञानिक ये भी लिखते हैं कि अगर कोरोना वायरस को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया तो पूरी दुनिया में ये वायरस इस कदर फैलेगा कि इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होगा और जैसा चीन के वैज्ञानिकों ने 2015 में सोचा था वैसा ही दुनिया में हुआ.
जब चीन की People’s Liberation Army के वैज्ञानिक 2015 में इस पर शोध कर रहे थे तब उनका मानना था कि तीसरा विश्व युद्ध Biological Weapons के आधार पर लड़ा जाएगा क्योंकि दुनिया पहले दो विश्व युद्ध में Chemical और परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर चुकी है और इनसे बचने के लिए कई बड़े देशों ने आधुनिक तकनीक भी विकसित कर ली है.
यानी 2015 में ही चीन ये समझ गया था कि अगर वो दूसरे देशों का मुक़ाबला करना चाहता है तो उसे वायरस को हथियार के रूप में विकसित करना होगा क्योंकि दुनिया के किसी भी देश के पास वायरस से बचने की तकनीक नहीं है. इस रिसर्च पेपर की सबसे बड़ी बात ये है कि चीन ने आज से 6 वर्ष पहले ही ये मान लिया था कि कोरोना वायरस को युद्ध में भी इस्तेमाल किया जा सकता है और इसे लम्बे समय तक ज़िन्दा रखने की क्षमता भी चीन के पास है.
और अब वुहान लैब के रिसर्चर ने जो खुलासे किये हैं वो चीन की सेना के 2015 वाले रिसर्च पेपर में दर्ज बातों से मैच करते हैं. और सबसे अहम खुलासा ये है कि चीन कोरोना वायरस को जैविक हथियार के रूप में विकसित कर रहा था और उसी ने ये वायरस इंसानों के बीच फैलाया. लेकिन चीन ने कभी भी नहीं माना कि कोरोना वायरस उसकी वजह से पूरी दुनिया में फैला.