भारतीय एक्सपर्ट्स ने क्यों कहा- गहराते आर्थिक-राजनीतिक संकट के बीच PAK के लिए आगे की राह मुश्किल
Pakistan`s Deepening Economic Crisis: पाकिस्तानी रुपये में बीते एक साल में करीब 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है और सोमवार को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 260 पाकिस्तानी रुपये रही.
Pakistan Economic Crisis: भीषण आर्थिक संकट के बीच पिछले एक साल में पाकिस्तानी रूपये में भारी गिरावट के चलते पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय कर्जा चुकाना बेहद मुश्किल कर दिया है. इंडियन एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे क्षेत्र के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं. पाकिस्तानी रुपये में बीते एक साल में करीब 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है और सोमवार को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 260 पाकिस्तानी रुपये रही.
एक्सपर्ट्स ने कहा कि आर्थिक संकट के बीच शहबाज शरीफ सरकार मंगलवार को एक सहायता पैकेज के लिए वॉशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ अहम वार्ता शुरू करेगी. उन्होंने कहा कि इसमें (बातचीत में) मुश्किल और ‘संभवतः राजनीतिक रूप से जोखिम भर’ पूर्व-शर्तें जुड़ी हो सकती हैं जो एक बड़े राजनीतिक संकट को जन्म दे सकती है.
भारत के लिए जोखिम केवल क्षेत्र में बढ़ते चरमपंथ के साथ पाकिस्तान में अस्थिरता ही नहीं होगी बल्कि अप्रत्याशित कार्रवाई भी होगी जिसमें बाहरी दुश्मन पर ध्यान केंद्रित करके घरेलू जनता का ध्यान हटाने की कोशिशें शामिल हो सकती हैं.
पाकिस्तान में बढ़ रहा है राजनीतिक संकट
पाकिस्तान में भारत के पूर्व दूत रहे टीसीए राघवन ने कहा, ‘मौजूदा आर्थिक संकट चल रहे राजनीतिक संकट को बढ़ा रहा है (जहां इमरान खान की अगुआई वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने नए चुनाव कराने के लिए दो प्रांतीय विधानसभाओं को भंग कर दिया है)...आईएमएफ द्वारा धन जारी करने के लिए जिन शर्तों को लागू करने की संभावना है, वे निश्चित रूप से अल्पकालिक मुश्किलों का एक बड़ा कारण बनेंगी, जिसका राजनीतिक असर हो सकता है.’
पाकिस्तान के सात बिलियन डॉलर के आईएमएफ ‘बेल-आउट’ (स्वतंत्रता के बाद से 23वां) पैकेज के वितरण को पिछले नवंबर में रोक दिया गया था क्योंकि अंतिम उपाय के वैश्विक ऋणदाता ने महसूस किया था कि देश ने अर्थव्यवस्था को सही आकार देने के लिए राजकोषीय और आर्थिक सुधारों की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं.
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार घटा
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 4.34 अरब डॉलर (एक साल पहले के 16.6 अरब डॉलर से) रह गया है, जो मुश्किल से तीन सप्ताह की आयात जरूरतों के लिए पर्याप्त है. जबकि उसका दीर्घावधि कर्ज बढ़कर 274 अरब डॉलर हो गया है, जिसमें इस तिमाही में करीब आठ अरब डॉलर का पुनर्भुगतान किया जाना भी बाकी है.
गेहूं और तेल के आयात पर देश निर्भर करता है जिसके साथ मुद्रास्फीति 24 प्रतिशत तक बढ़ गई है. चीनी फर्मों समेत विदेशी निवेशक जिन्होंने आर्थिक गलियारे में कारखाने स्थापित करने में रुचि दिखाई थी वे भी एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों को देखते हुए अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं.
दिल्ली स्थित विचारक संस्था (थिंक टैक) ‘रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज’ के पूर्व महानिदेशक व आईआईएफटी में ‘सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्टडीज’ के प्रमुख प्रोफेसर विश्वजीत धर कहते हैं, ‘उच्च ऊर्जा और खाद्य कीमतों, बढ़ती बेरोजगारी, नकारात्मक निर्यात आय, निवेशकों के बाहर जाने तथा उनकी कमी के चलते पाकिस्तान के लिए ‘बेल-आउट’ (सहायता) बहुत जरूरी है....’ उन्होंने कहा कि इन हालात ने इसे (पाकिस्तान को) अंतरराष्ट्रीय कर्ज न चुका पाने की स्थिति में पहुंचा दिया है जिसकी आशंका हेनरी किसिंजर (पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री) ने कभी बांग्लादेश को लेकर जाहिर की थी.
(इनपुट - भाषा)
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