पाकिस्तान की एक हाईकोर्ट ने अंग्रेजों के समय के राजद्रोह कानून को खत्म कर दिया है. गुरुवार को औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह कानून संविधान के खिलाफ है. दरअसल, इस कानून के तहत केंद्र और राज्य की सरकारों के खिलाफ बोलने पर मनाही थी. पाकिस्तान में अगर कोई व्यक्ति संघ या प्रांत की सरकारों की आलोचना करता था तो उसे इस कानून के तहत जेल जाना होता था और उसे सजा दी जाती थी.


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हाई कोर्ट ने कहा कि यह कानून पूर्ण रूप से संविधान के खिलाफ है इसलिए इसे रद्द किया जाता है. ‘डॉन’ न्यूज के मुताबिक, लाहौर हाईकोर्ट के जज शाहिद करीम ने राजद्रोह से संबंधित पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) की धारा 124-ए को रद्द कर दिया. राजद्रोह कानून को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति करीम ने यह फैसला सुनाया.


चीफ जस्टिस से छिन जाएगी स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति


पाकिस्तान में एक और बड़ा बदलाव देखने को मिला जिसके तहत संसद ने प्रधान न्यायाधीश (चीफ जस्टिस) के स्वत: संज्ञान लेने और संवैधानिक पीठ गठित करने संबंधी अधिकारों में कटौती के लिए बिल पास किया गया. हालांकि, विपक्ष ने इसके खिलाफ नारेबाजी की लेकिन गुरुवार को विधेयक को मंजूरी मिल गई.


नेशनल असेंबली में पारित होने के बाद कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने इस विधेयक को सीनेट में पेश किया. इस विधेयक के पक्ष में 60 और विरोध में 19 मत पड़े. इसके बाद इस विधेयक को मंजूरी मिल गई. अब इस विधेयक को राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के पास भेजा जाएगा. अगर, वो 10 दिन में इसे मंजूरी दे देते हैं तो चीफ जस्टिस की शक्तियां छिन जाएगी.


पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी ने इसका विरोध किया. संसद में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सांसदों ने कहा कि यह संविधान का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मामलों में कोई भी बदलाव संविधान संशोधन के जरिये किया जाना चाहिए और उसे दो तिहाई बहुमत से पारित कराया जाना चाहिए.