पाकिस्तान में आटा खत्म! सिंध ने इस वजह से कराची समेत बाकी इलाकों का पेट भरने से किया मना
सिंध में जिस 32 हजार टन गेहूं की बात हो रही है, उसकी क्वालिटी खराब बताई जा रही है. इसके बावजूद सिंध सरकार वो गेहूं नहीं दे रही है. ऐसे में जब कैबिनेट में मामला उठा तो कहा गया कि क्या सिंध सरकार आम जनता को जानवरों से भी बदतर मानती है?
पेट भरने के लिए रोटियां नहीं
पाकिस्तान के सिंध राज्य के एक फैसले की वजह से देश के कई हिस्सों में आटे की कमी का संकट आने वाला है. सिंध राज्य ने पुराने गेहूं का स्टॉक देने के फैसले को रद्द कर दिया है. ये स्टॉक करीब 32 हजार टन का है. लेकिन अब ये गेहूं सिंध के पास ही रहेगा. ऐसे में कराची, लरकाना, शिकारपुर, कंबर-शाहबाबकोट, जकोबाबाद और काशमोर रीजन में आटे की कमी की वजह से इस साल फिर से लोगों को भरपेट खाना मिलने में दिक्कत हो सकती है. पिछले कई सालों से पाकिस्तान में ऐसे हालात बनते रहे हैं, जिसमें पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी के पास पेट भरने के लिए रोटियां नहीं मिल पाती. लोग कई गुना ज्यादा दामों में रोटियां-ब्रेड खरीदते हैं और कई बार कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति बन जाती है.
पहले दे रहा था गेहूं, फिर रद्द किया आदेश
सिंध राज्य के फूड डिपार्टमेंट ने 2 फरवरी को ये गेहूं देने की बात कही थी. लेकिन आटा मिल माफिया गिरोह के नाम पर 8 फरवरी को दूसरा आदेश जारी किया और अपने फैसले को रद्द कर दिया. सिंध राज्य के इस फैसले से केंद्र सरकार में भी काफी नाराजगी है और प्रधानमंत्री इमरान खान भी इस फैसले की वजह से काफी चिंतित हैं. इसी वजह से 10 अप्रैल को पाकिस्तान की कैबिनेट ने सिंध सरकार के इस फैसले का विरोध किया. और पूरे मामले पर काफी देर तक चर्चा हुई. सरकार को इस बात का डर है कि कहीं आम जनता रोटी की कमी की वजह से बगावत न कर दे.
कराची को मिलना था सबसे बड़ा हिस्सा
सिंध प्रांत के इस फैसले की वजह से सबसे ज्यादा असर कराची रीजन पर पड़ेगा. क्योंकि 32 हजार टन गेहूं में से 16 हजार टन गेहूं अकेले कराची को मिलना था. सिंध राज्य के फूड डिपार्टमेंट ने बयान जारी कर कहा कि हमें पुराना गेहूं नष्ट करना पड़े, तो हम कर देंगे. लेकिन फ्लोर मिल्स माफिया के हाथों में गेहूं नहीं पड़ने देंगे. वैसे भी सरकार की गेहूं रिलीज करने की पॉलिसी साल 2020-2021 की पॉलिसी में भी इस तरह का कोई जिक्र नहीं है. फूड डिपार्टमेंट ने कहा कि हमारा मकसद साफ है. हम स्कैम से बचना चाहते हैं, इसके लिए माफिया को फायदा कतई नहीं पहुंचाएंगे.
सिंध में घटी है पैदावार, किसानों को हुआ काफी नुकसान
सिंध राज्य साल 2012 से 2017 तक लगातार गेहूं की सप्लाई करता था. लेकिन 2018-19 में सरकार ने किसानों से गेहूं खरीदा ही नहीं था. वहीं, साल 2019-2020 में गेहूं की कम खरीदी हुई. जबकि किसानों को सरकार को सूचना देना जरूरी है कि वो कितना गेहूं उगा रहे हैं. पिछले साल सिंध सरकार की गेहूं खरीदी का टारगेट पूरा नहीं हो पाया था. इस साल सिंध सरकार 3700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गेहूं की नीलामी करेगी.
सिंध में गेहूं की हालत खराब, घटिया गेहूं भी बेचने को राजी नहीं?
सिंध में जिस 32 हजार टन गेहूं की बात हो रही है, उसकी क्वालिटी खराब बताई जा रही है. इसके बावजूद सिंध सरकार वो गेहूं नहीं दे रही है. ऐसे में जब कैबिनेट में मामला उठा तो कहा गया कि क्या सिंध सरकार आम जनता को जानवरों से भी बदतर मानती है? जो गेहूं लोगों को न देकर फैट्रियों के लिए दे रही है. यही नहीं, कैबिनेट ने आरोप लगाया कि पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान के अंदर खाद्यान्न पदार्थों का जो संकट बना है, वो भी सिंध की वजह से है. क्योंकि सिंध सरकार अपना डाटा केंद्रीय सरकार के साथ साझा ही नहीं कर रही है.
एक राज्य में आटा नहीं, दूसरे राज्य में सड़ रहा गेहूं!
कैबिनेट में इस बार पर जोर दिया गया कि कुछ समय पहले खैबर पख्तूनख्वा राज्य की सरकार ने सिंध सरकार से गेहूं देने की अपील की थी और एक पत्र भेजा था. लेकिन सिंध ने खैबर पख्तूनख्वा को गेहूं देने से मना कर दिया. जबकि उसके पास काफी स्टॉक जमा था. कैबिनेट ने इस बात से नाराजगी जताई है कि सिंध सरकार एक दम सड़ जाने की स्थिति तक गेहूं को रोककर रख रही है जोकि गलत है.