न्यूयॉर्क: तमाम सक्रिय समूहों के विरोध के बावजूद चीन, रूस और क्यूबा संयुक्त राष्ट्र के प्रीमियर मानवाधिकार निकाय (UN Human Rights Body) में सीट जीतने में कामयाब रहे जबकि सऊदी अरब हार गया. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में सीट पाने के लिए रूस और क्यूबा का निर्विरोध चुनाव हुआ है जबकि चीन और सऊदी अरब के बीच टक्कर रही.


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इस चुनाव में चीन जीत भले ही गया लेकिन एशिया-प्रशांत समूह की सीटों के चार विजेताओं में से चीन को सबसे कम वोट मिले हैं. चीन में मानवाधिकारों के हनन का मामला छाया रहा. यूएन महासभा की 193 सदस्यीय समिति के गुप्त मतदान में पाकिस्तान को 169 मत मिले, उज्बेकिस्तान को 164, नेपाल को 150, चीन को 139 और सऊदी अरब को मात्र 90 मत मिले.


ह्यूमन राइट्स वॉच ने किया विरोध
सऊदी अरब द्वारा घोषित सुधार योजनाओं के बावजूद, ह्यूमन राइट्स वॉच और अन्य लोगों ने कड़ा विरोध करते हुए कहा कि मध्य पूर्व राष्ट्र (Middle East nation) मानवाधिकार रक्षकों, असंतुष्टों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाते हैं. बीते समय की ऐसी घटनाओं पर कोई सुधार भी नहीं हुआ है. इस दौरान वाशिंगटन पोस्ट के एक स्तंभकार की हत्या का भी जिक्र किया गया.


डेमोक्रेसी फॉर अरब वर्ल्ड की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सारा वर्ल्ड ने कहा कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन द्वारा पीआर पर करोड़ों डॉलर खर्च किए गए बावजूद इसके अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने कहा कि जब तक सऊदी अरब राजनीतिक कैदियों को रिहा करने, यमन में युद्ध को समाप्त करने और अपने नागरिकों को सार्थक राजनीतिक भागीदारी की अनुमति देने के लिए सुधार नहीं करता है, तब तक वैश्विक स्तर पर उसे स्वीकार्यता नहीं मिलेगी.


15 सदस्यों का निर्विरोध चुनाव
एशिया-पैसिफिक को छोड़कर, 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद में निर्विरोध होने की वजह से 15 सदस्यों का चुनाव पहले से तय कर लिया गया था. आइवरी कोस्ट, मलावी, गैबॉन और सेनेगल ने अफ्रीका की चार सीटें जीतीं. रूस और यूक्रेन ने दो पूर्व यूरोपीय सीटों पर जीत दर्ज की. लैटिन अमेरिकी और कैरेबियन समूह में मेक्सिको, क्यूबा और बोलीविया ने तीन सीटें जीतीं. ब्रिटेन और फ्रांस ने पश्चिमी यूरोपीय और अन्य समूह की दो सीटें जीतीं.


हार सकता था चीन
मानवाधिकार वॉच के संयुक्त निदेशक लुइस चारबोन्यू ने कहा कि मानवाधिकार परिषद में सीट जीतने में सऊदी अरब की विफलता संयुक्त राष्ट्र के चुनावों में और अधिक प्रतिस्पर्धा को साबित करता है जो स्वागत योग्य है. उन्होंने कहा कि चीन, क्यूबा और रूस भी हार सकते थे. उन्होंने कहा कि ‘अवांछनीय देशों’ के बावजूद परिषद पीड़ितों की आवाज उठाता रहेगा.


उधर चारबोन्यू ने पश्चिमी देशों सहित यूएन के सदस्य राज्यों की आलोचना करते हुए कहा, ‘वे प्रतिस्पर्धा नहीं चाहते हैं.’ पिछले सप्ताह यूरोप, संयुक्त राज्य और कनाडा के मानवाधिकार समूहों के गठबंधन ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से चीन, रूस, सऊदी अरब, क्यूबा, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के चुनाव का विरोध करने का आह्वान करते हुए कहा था कि उनके मानवाधिकार रिकॉर्ड उन्हें अयोग्य घोषित करते हैं. मानवाधिकार समूहों ने कहा था कि इन तानाशाही देशों का चुना जाना उचित नहीं है. ये एक आगजनी करने वालों का गिरोह बनाने जैसा है.


चीन को सबसे कम वोट मिले
ह्यूमन राइट्स वॉच ने 26 जून को 50 विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें चीन में मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए निर्णायक उपाय करने की बात कही गई थी. हांगकांग और तिब्बत में लगातार जन अधिकारों का हो रहा उल्लंघन. रिपोर्ट में शिनजियांग के चीनी प्रांत में ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट, पत्रकारों, वकीलों और सरकार के आलोचकों पर हमले के बारे में जिक्र था. ये सवाल उठाने वालों में 60 से अधिक देशों के 400 से अधिक सिविस सोसाइटी समूह शामिल थे. यही कारण है कि एशिया-प्रशांत समूह की सीटों के चार विजेताओं में से चीन को सबसे कम वोट मिले.


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