China: दक्षिण एशियाई देशों में इस तरह चीन बुन रहा नया `मकड़जाल`, वजह है बेहद खास

China News: चीन की विस्तारवादी साजिश दुनिया समझ चुकी है. मदद के नाम पर कर्ज के जाल में फंसा लेने जैसी साजिश पुरानी पड़ चुकी है. चीन की नीयत में खोट है. जो देश ये सच्चाई जान गए हैं वो बीजिंग की बनाई राह पर चलने से इनकार करते हुए पीछे हट रहे हैं. एक ओर चीन वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट जिसपर शी जिनपिंग खरबों रुपये फूंक चुके हैं पर अड़ा है. दूसरी ओर चीन दक्षिण पूर्व एशिया को हाई-स्पीड रेल से जोड़ने की कोशिश कर रहा है. क्या ये `ड्रैगन` की कोई नई साजिश है, आखिर क्या है माजरा आइए जानते हैं.

श्वेतांक रत्नाम्बर Wed, 27 Mar 2024-12:25 pm,
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चीन अपने वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को मजबूती देने के लिए लगाकार नई-नई कोशिशें कर रहा है. इस कड़ी में बीजिंग ने दक्षिण पूर्व एशिया को हाई-स्पीड रेल से जोड़ने का काम अभूतपूर्व रफ्तार से शुरू किया है. सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण-पश्चिमी चीन के किसी शहर से सिंगापुर पहुंचने में अब करीब 24 घंटे का वक्त लग रहा है, जबकि वहां की दूरी करीब 3200 से 3500 किलोमीटर से ज्यादा है. 2021 में Laos-China Railway सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन की शुरुआत हुई. ये ट्रैक दक्षिण-पश्चिमी चीनी वाणिज्यिक केंद्र कुनमिंग को लाओटियन राजधानी वियनतियाने से जोड़ता है. चीन का दावा है इससे दोनों देशों को बहुत फायदा हुआ. खासकर लाओस के स्थानीय विक्रेताओं और कारोबारियों का बिजनेस बढ़ाने में इसने काफी मदद की.

 

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वहीं रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीन साउथ-ईस्ट एशिया को लेकर पजेसिव है. इसलिए आक्रामक रुप से इस क्षेत्र के देशों को अपने साथ मिलाने के लिए उन्हें तरह-करह के ऑफर्स दिए जा रहे हैं. इसी वजह से चीन ने कई देशों के लिए बीते कुछ सालों में अपने रेलवे प्रोजेक्ट शुरू किए हैं. हालांकि कूटनीति के जानकारों का कहना है कि चीन अपने इस रेल प्रोजेक्ट के जरिए थाईलैंड जैसे छोटे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है.

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चीन की मदद से, दक्षिण पूर्व एशिया की पहली बुलेट ट्रेन कई सालों की असफलताओं और देरी के बाद आखिरकार अक्टूबर 2023 में शुरू हुई. ये ट्रेन इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता को पश्चिमी जावा के बांडुंग से जोड़ती है, जो देश के सबसे बड़े शहरों में से एक और एक महत्वपूर्ण कला और सांस्कृतिक केंद्र है. वहीं इसी बीच, थाईलैंड में चीन की दूसरी हाई-स्पीड रेल परियोजना चल रही है, जिसका मकसद लाओस-चीन रेलवे को बैंकॉक से जोड़ना है. लेकिन अब इसमें और देरी और बढ़ती निर्माण लागत का सामना करना पड़ रहा है. कई चरणों में लॉन्च हुए, इस प्रोजेक्ट की डेड लाइन की बात करें तो थाईलैंड की सरकार को 2028 तक ये पूरी लाइन चालू होने की उम्मीद है.  हालांकि चीनी सरकार ने कोई समयसीमा नहीं बताई है. जब ये लाइन पूरी हो जाएगी, तो इस  रूट को आगे उत्तरी मलेशिया तक बढ़ाया जाएगा. जहां ये सेमी बुलेट ट्रेन राजधानी कुआलालंपुर से जुड़ेगी और आखिर में 350 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में सिंगापुर में समाप्त होगी.

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टूरिज्म एंड चेक-इन एशिया के फाउंडर और विश्लेषक गैरी बोवरमैन का कहना है कि जनवरी 2024 में  इस आकर्षक परियोजना के लिए स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय संघों द्वारा बोलियां लगाई गईं. लेकिन ईस्ट जापान रेलवे कंपनी समेत कई जापानी कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिया कि मलेशियाई सरकार से आधिकारिक वित्तीय सहायता के बिना इस पर आगे बढ़ना एक जोखिमभरा फैसला होगा. जबकि चीन पहले से ही दुनिया के सबसे बड़े हाई-स्पीड रेलवे नेटवर्क से अपने रेलवे नेटवर्क के बेहतर होने का दावा करता है. यही वजह है कि चीनी कंपनियां लंबे समय से वहां के प्रौद्योगिकी ढांचे को मजबूत करने के नाम पर छोटे देशों में एक्टिव है. बोवेरमैन कहते हैं कि चीन से निकटता की वजह उसके आकर्षक ऑफर हैं. 

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चीन  के प्रमुख शहरों को लाओस और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (लाइन के नीचे) से सीधे ट्रेन से जोड़ने से चीन और चीनी नागरिकों को भी बड़ा फायदा होगा, खासकर उन लोगों को जो लंबे समय तक लंबी दूरी की यात्रा नहीं करना चाहते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि लाओस में प्राचीन मंदिरों और थाईलैंड में प्राचीन समुद्र तटों से लेकर मलेशिया, दक्षिण पूर्व एशिया में हरे-भरे वर्षावनों और इको-टूर तक सब कुछ लंबे समय से चीनी यात्रियों के लिए एक बड़ा आकर्षण रहा है. ऐसे में इन देशों में अपनी पहुंच बढ़ाकर चीन दूरगामी हित साधना चाहता है. ये कुछ ऐसा है जिसे बहुत से देश श्रीलंका और पाकिस्तान का हाल देखने के बावजूद समझ नहीं पा रहे हैं. 

 

 

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वहीं अमेरिका में बेंटले विश्वविद्यालय में वैश्विक अध्ययन के सहायक प्रोफेसर और राजनीतिक अर्थशास्त्री पोन सौवन्नासेंग का कहना है कि कई देशों की चीन के साथ लगती सीमाएं उसका पक्ष मजबूत करती हैं. बेशक, चीन दक्षिण पूर्व एशिया को निर्यात के लिए एक प्रमुख बाजार के साथ-साथ अपनी सुरक्षा के लिए एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में देखता है. वो आखिरकार दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को अपने भू-राजनीतिक प्रभाव के क्षेत्र में दबाकर रखना चाहता है.

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विशेषज्ञों का कहना है कि मलेशिया में पेनांग, मलक्का और मंदिरों और वास्तुकला वाले फुकेत ओल्ड टाउन जैसे शहर चीनी प्रवासियों द्वारा बनाए और बसाए गए थे. इसलिए अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की दुहाई देते हुए चीन उन देशों में अंधाधुंध पैसे का निवेश कर रहा है. हालांकि चीन इसकी वजह ये बताता है कि ये सभी देश चीनी पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं. जानकारों का मानना है कि हवाई सफर की अपनी अलग चुनौतियां हैं. इन देशों में फ्लाइट की जगह बुलेट ट्रेन से सफर कहीं सस्ता और आरामदायक है. लोगों को रास्ते में बहुत सारे सुंदर दृश्य मिलते हैं. चीन के लोग इस प्रोजेक्ट में खूब दिलचस्पी ले रहे हैं. चीनी विश्वविद्यालय के छात्र चीनी सोशल मीडिया ऐप डॉयिन (चीन का टिकटॉक वर्जन) और यूकू, चीनी यूट्यूब पर खूब पॉपुलर हो रहे हैं.

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