Explainer: डार्क मैटर की खोज से बस 10 सेकंड दूर हैं हम? नई रिसर्च से बड़ा खुलासा!

Dark Matter Discovery: डार्क मैटर ब्रह्मांड का वह रहस्यमय हिस्सा है, जो अदृश्य होते हुए भी गुरुत्वाकर्षण के जरिए अपनी मौजूदगी का अहसास कराता है. लेकिन अभी तक डार्क मैटर को सीधे तौर पर देखा नहीं जा सका. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के वैज्ञानिकों की मानें तो डार्क मैटर की खोज सिर्फ 10 सेकंड में हो सकती है! उनका कहना है कि अगले नजदीकी सुपरनोवा (Supernova) विस्फोट के पहले 10 सेकंड के भीतर, हम डार्क मैटर के संभावित कणों, जिन्हें `एक्सियॉन्स` कहा जाता है, का पता लगा सकते हैं. (Photos : NASA)

दीपक वर्मा Dec 27, 2024, 21:07 PM IST
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सुपरनोवा से कैसे चलेगा डार्क मैटर का पता?

सुपरनोवा तब होता है जब एक विशाल तारा अपने जीवन के अंत में भयानक विस्फोट के साथ फटता है. इससे अत्यधिक ऊर्जा और कण निकलते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रक्रिया के दौरान, बड़ी संख्या में एक्सियॉन्स उत्पन्न हो सकते हैं. अगर हमारे पास सही उपकरण हों और वे सही दिशा में देख रहे हों, तो हम इन एक्सियॉन्स का पता लगा सकते हैं.

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डार्क मैटर: एक्सियॉन्स क्या होते हैं?

एक्सियॉन्स, 1970 के दशक में फिजिक्स की समस्या, जिसे 'स्ट्रॉन्ग सीपी प्रॉब्लम' कहा जाता है, के हल के रूप में प्रस्तावित किए गए थे. बाद में, यह समझा गया कि ये कण डार्क मैटर के अच्छे उम्मीदवार हो सकते हैं, क्योंकि वे बेहद हल्के, विद्युत आवेश रहित होते हैं और ब्रह्मांड में प्रचुर मात्रा में पाए जा सकते हैं.

एक्सियॉन्स की एक खासियत यह है कि वे मजबूत चुंबकीय क्षेत्रों में फोटॉन्स (प्रकाश कणों) में बदल सकते हैं, जिससे उनका पता लगाना संभव हो सकता है.

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हमें एक्सियॉन्स का पता कैसे चलेगा?

हमारे पास 'फर्मी स्पेस टेलीस्कोप' जैसी चीज है, जो गामा-रे (हाई एनर्जी वाला प्रकाश) पकड़ता है, लेकिन इसकी नजर सीमित है. इस वजह से, किसी नजदीकी सुपरनोवा के समय एक्सियॉन्स का पता लगाने की संभावना केवल 10% है.

तभी तो वैज्ञानिक 'गैलेक्सिस' (GALAXIS) नामक गामा-रे सैटेलाइट्स के एक समूह को लॉन्च करने का प्रस्ताव कर रहे हैं, ताकि पूरे आसमान पर लगातार नजर रखी जा सके. इससे हम सुपरनोवा के दौरान पैदा होने वाले एक्सियॉन्स का पता लगाने में सक्षम हो सकते हैं. (Photo : Fermilab)

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खोज जो बदल सकती है फिजिक्स की दुनिया

अगर हम एक्सियॉन्स का पता लगाने में सफल होते हैं, तो यह खोज खगोल विज्ञान में मील का पत्थर साबित होगी. ऐसी खोज डार्क मैटर की प्रकृति को समझने में अहम भूमिका निभाएगी. यह खोज न केवल डार्क मैटर के रहस्य को सुलझाने में मदद करेगी, बल्कि भौतिकी की अन्य समस्याओं, जैसे 'स्ट्रॉन्ग सीपी प्रॉब्लम', 'स्ट्रिंग थ्योरी', और 'मैटर/एंटीमैटर असंतुलन' को समझने में भी मददगार होगी.

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दुर्लभ है सुपरनोवा, कहीं मौका चूक न जाएं हम!

यह ऐतिहासिक खोज तभी संभव है जब अगले सुपरनोवा के समय हमारे पास सही उपकरण, सही दिशा में हों. वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कहीं अगली सुपरनोवा हमारे उपकरणों के तैयार होने से पहले न हो जाए, क्योंकि ऐसी घटनाएं दुर्लभ होती हैं. एक बार मौका चूक जाने पर हमें दशकों तक इंतजार करना पड़ सकता है. (Photo : Pacific Northwest National Laboratory)

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