Desi Jugaad: बच्ची को शांत कराने के लिए पापा का `पत्तागोभी` वाला जुगाड़, फिर मजे से सोया
Desi Jugaad: यही तो हर जगह माता-पिता की परेशानी होती है, खासकर के सफर के दौरान बच्चों को कैसे व्यस्त रखा जाए, वो भी खासकर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट में. चीन में हाल ही में एक पिताजी को एक सस्ता और आसान उपाय सूझा, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट होने के बाद काफी वायरल हो गया और लोगों का मनोरंजन किया.
पापा ने लगाया देसी जुगाड़
अखबार दुशी शिबाओ की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग शहर से ये पिताजी अपनी बच्ची के साथ हाई-स्पीड ट्रेन में यात्रा कर रहे थे. बेटी को लंबे सफर में शांत रखने की चिंता हर पिता को होती है, खासकर के ट्रेन जैसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में. चीन के एक पिताजी ने हाल ही में एक शानदार जुगाड़ खोज निकाला.
बेटी को बिजी रखने के लिए किया ऐसा काम
उन्होंने अपनी छोटी बच्ची को व्यस्त रखने के लिए उसे छीलने के लिए एक पत्तागोभी दे दी. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में, छोटी बच्ची पत्तागोभी की परतें अलग-अलग तरीकों से छीलने में मस्त दिख रही है और छिलके को अपनी सामने वाली टेबल पर रख रही है.
पत्तागोभी छीलने के लिए दे दिया
कभी वो पापा की गोद में बैठती है, कभी अपनी सीट पर. इस बीच पापा थोड़ी देर सो भी लेते हैं या फोन पर गेम खेलते हैं. पूरे सफर में, दिन से रात तक वो गोभी छीलने में लगी रहती है. जिसने उन दोनों का वीडियो बनाया, "बच्ची बहुत शैतान और तेजी से खेलने वाली लगती है. इसलिए पापा ने उसे परेशान न करने के लिए गोभी दी. वो एक घंटे से भी ज्यादा समय तक गोभी छीलती रही."
लोगों को आइडिया बहुत पसंद आया
वीडियो में ये नहीं बताया गया कि ट्रेन कहां जा रही थी, लेकिन जाने से पहले बच्ची और उसके पापा ने गोभी के पत्तों को इकट्ठा किया और एक छोटे प्लास्टिक बैग में फेंक दिया, फिर अपनी सीट साफ की. इस पिताजी के गोभी वाले आइडिया को लोगों ने खूब पसंद किया है.
पोस्ट पर लोगों ने दी प्रतिक्रिया
एक शख्स ने कहा, "बच्ची इतनी देर तक गोभी छील रही है, ये उसकी एकाग्रता को दर्शाता है. ज़्यादातर बच्चे कुछ मिनटों में ही ऊब जायेंगे और कुछ और करने लगेंगे. ये तो शायद आगे चलकर बहुत अच्छी स्टूडेंट बने!" एक अन्य यूजर ने बताया, "जब मेरा बच्चा एक साल का था, तो मैं उसे ट्रेन में व्यस्त रखने के लिए एक बड़ी सी भाप वाली रोटी देता था. वो उसे धीरे-धीरे खाता रहता था और ट्रेन का खाना खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी."