अंदर ही अंदर जल रही धरती, कभी भी हालात हो सकते हैं आउट ऑफ कंट्रोल; नई स्टडी में खौफनाक दावे

Resons for Increasing Earth Temperature: धरती पर रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ रही है. 2023 में वह अब तक के सबसे ऊंची स्तर पर पहुंच गई, जिसमें हर रिकॉर्ड तोड़ने वाली गर्मी का 92 प्रतिशत कारण इंसान थे. साइंटिस्ट्स ने यह कैलकुलेशन की है. दुनिया भर के 57 वैज्ञानिकों के एक ग्रुप ने पिछले साल की बहुत ज्यादा गर्मी के पीछे के कारण जानने और इसकी जांच करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के बताए तरीकों का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि पारा तेजी से बढ़ने के बावजूद उन्हें जीवाश्म ईंधन के जलने की तुलना में मनुष्यों के कारण क्लाइमेट चेंज में ज्यादा तेजी के सबूत नहीं दिखते.

रचित कुमार Wed, 05 Jun 2024-5:50 pm,
1/10

पिछले साल के रिकॉर्ड तापमान इतने असामान्य थे कि वैज्ञानिक इस बात पर बहस कर रहे हैं कि इसके इतना अधिक बढ़ने के पीछे क्या कारण था और क्या जलवायु परिवर्तन में तेजी आ रही है या अन्य फैक्टर्स इसमें भूमिका निभा रहे हैं. 

2/10

लीड्स यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट साइंटिस्ट और स्टडी के चीफ राइटर पियर्स फोर्स्टर ने कहा, 'टेंपरेचर बढ़ रहा है और चीजें ठीक उसी तरह से बदतर होती जा रही हैं जैसा हमने अनुमान लगाया था.' उन्होंने और उनके एक को-राइटर ने कहा कि फॉसिल फ्यूल के बढ़ते इस्तेमाल से कार्बन डाइऑक्साइड बनने से इसकी काफी हद तक पुष्टि की जा सकती है.

 

3/10

फोर्स्टर ने कहा, पिछले साल, तापमान में इजाफे की दर प्रति दशक 0.26 डिग्री सेल्सियस रही जो इसके पहले के साल में 0.25 डिग्री सेल्सियस थी. यह कोई बड़ा अंतर नहीं है, हालांकि इससे साल की तापमान वृद्धि दर अब तक की सबसे अधिक हो गई है.

4/10

बावजूद इसके, इस समूह के अलावा अन्य वैज्ञानिकों ने कहा कि यह रिपोर्ट एक और भी अधिक भयावह स्थिति के बारे में बता रही है. विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी की जलवायु वैज्ञानिक एंड्रिया डटन (जो इस इंटरनेशनल स्टडी ग्रुप का हिस्सा नहीं थीं) ने कहा, 'जलवायु को लेकर कदम उठाने का ऑप्शन चुनना एक राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है, लेकिन यह रिपोर्ट लोगों को याद दिलाती है कि असल में यह मूल रूप से मानव जीवन को बचाने का विकल्प है.'

 

5/10

उन्होंने कहा, 'मेरे लिए यह ऐसी चीज है जिसके लिए लड़ना चाहिए.' लेखकों की टीम को हर सात से आठ साल के अहम संयुक्त राष्ट्र वैज्ञानिक आकलन के बीच वार्षिक वैज्ञानिक अपडेट देने के लिए बनाया गया था. इस टीम ने पाया कि पिछला साल 1850 से 1900 के औसत से 1.43 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था.

6/10

इसमें से 1.31 डिग्री सेल्सियस का इजाफा इंसानी गतिविधियों के कारण और बाकी 8 प्रतिशत तापमान में इजाफा मुख्य रूप से अल नीनो प्रभाव के कारण थी. मैगजीन अर्थ सिस्टम साइंस डेटा में छपी रिपोर्ट में पाया गया कि 10 साल की समयावधि में (जिसे वैज्ञानिक एकल वर्ष के रूप में गिनते हैं) वर्ल्ड प्री-इंडस्ट्रियल पीरियड से लगभग 1.19 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुका है. 

7/10

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जब तक दुनिया में कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल होता रहेगा, पृथ्वी 4.5 वर्षों में उस पॉइंट पर पहुंच जाएगी जहां यह तापमान में इजाफे के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सीमा (1.5 डिग्री सेल्सियस) को पार करने से बच नहीं सकती.

8/10

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर तापमान में वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गई तो इससे दुनिया या मानवता का अंत नहीं होगा, लेकिन यह काफी चिंताजनक होगा. संयुक्त राष्ट्र के पिछले अध्ययनों से पता चलता है कि धरती के पारिस्थितिकी तंत्र में बड़े पैमाने पर परिवर्तन (1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि) हो सकता है. 

9/10

स्विस यूनिवर्सिटी ईटीएच ज्यूरिख में भूमि-जलवायु गतिशीलता की चीफ और स्टडी की को-राइटर सोनिया सेनेविरत्ने ने कहा कि पिछले साल तापमान में इजाफा सिर्फ एक छोटी सी बढ़ोतरी से कहीं ज़्यादा थी. सितंबर में यह खास तौर से असामान्य था. सेनेविरत्ने ने कहा, 'अगर यह तेजी से बढ़ता है तो यह और भी बुरा होगा, जैसे वैश्विक अंतिम बिंदु पर पहुंचना, यह शायद सबसे खराब परिदृश्य होगा.'

 

10/10

उन्होंने कहा, "लेकिन जो हो रहा है वह पहले से ही बहुत बुरा है और इसका पहले से ही बड़ा प्रभाव पड़ रहा है. हम संकट के बीच में हैं." टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक और ‘नेचर कंजर्वेंसी’ के मुख्य वैज्ञानिक कैथरीन हेहो ने कहा, "भविष्य हमारे हाथों में है. फिजिक्स नहीं, बल्कि इंसान यह तय करेगा कि दुनिया कितनी तेजी से और कितनी गर्म होगी".

 

ZEENEWS TRENDING STORIES

By continuing to use the site, you agree to the use of cookies. You can find out more by Tapping this link