Lok Sabha Election: तब रुझान आने में भी शाम हो जाती थी... आओ देखें लोकसभा चुनाव की यादगार तस्वीरें
Chunavi Pictures: 4 जून को काउंटिंग शुरू होने के 1-2 घंटे बाद ही लोकसभा चुनाव के रुझान मिलने शुरू हो जाएंगे. 2 बजे तक तस्वीर साफ हो जाएगी कि किसकी सरकार बनने जा रही है लेकिन पहले ऐसा नहीं था. तब बैलट पेपर से चुनाव कराए जाते थे. आज की पीढ़ी शायद इस सफर से रोमांचित महसूस करेगी. आइए उस दौर में चलते हैं.
पहले आम चुनाव की दुर्लभ तस्वीर
जी हां, यह 1952 में हमारे देश का पहला आम चुनाव था. उस समय वोटिंग के लिए अलग-अलग पार्टियों के बक्से रखे जाते थे. वोटर को अपने कैंडिडेट का सिंबल देखकर बैलट पेपर डालना होता था. यह मतदाता अपनी पसंद का सिंबल देख रहा था जब तस्वीर क्लिक की गई. (Photo Division)
15 पैसे का पोस्टल स्टैंप
आज की पीढ़ी ने 5 पैसे, 2 पैसे, 10 पैसे के सिक्के शायद न देखे हों. यह एक पोस्टल स्टैंप की तस्वीर है. यह 15 पैसे का था और इसमें 1967 के आम चुनाव की प्रक्रिया दिखाई देती है. लोग कतार में लगकर मतदान के लिए खड़े दिखाई देते हैं.
उंगली पर स्याही
यह तस्वीर 1967 के आम चुनाव की है. लोकसभा चुनाव में महिला एक बूथ पर वोटिंग के लिए आई थी और उसकी उंगली पर स्याही लगाई जा रही थी. इस चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी. यहीं से इंदिरा गांधी का दौर शुरू हुआ.
काउंटिंग की सरगर्मी
1967 के लोकसभा चुनाव के बाद अब काउंटिंग की बारी थी. फरवरी में चुनाव कराए गए थे. हल्की ठंड थी. कुछ लोग हाफ स्वेटर पहने भी दिखाई देते हैं. कुछ इसी तरह की सरगर्मी काउंटिंग के समय तब हॉल में हुआ करती थी.
इनकी भी जिम्मेदारी बड़ी थी
1967 के आम चुनाव के दौरान कई पार्टियों के पोलिंग एजेंट.
ना ये कोई रेसिपी नहीं है
1970 की यह तस्वीर देखने में ज्यादा स्पष्ट नहीं है. कुछ लोगों को ऐसा लग सकता है जैसे कोई रेसिपी तैयार हो रही है. नहीं, ऐसा नहीं है. मिलाने का काम जरूर हो रहा है लेकिन यह चुनाव में काउंटिंग शुरू करने से पहले प्रक्रिया होती थी. बैलट पेपर को मिक्स कर दिया जाता था.
बैलट पेपर गिनना होता था
1971 के लोकसभा चुनाव की काउंटिंग का एक दृश्य. सब कुछ कागज के बैलट पेपर से तय होता था. पूरी तल्लीनता के साथ काउंटिंग में लगी टीम को अपना काम करना होता था. कोई मशीनी सहयोग नहीं था. बैलट पेपर के कई बंडल गिनने होते थे.
कुछ ऐसे होता था चुनाव प्रचार
आज की तरह तब सोशल मीडिया नहीं था. चुनाव प्रचार के सीमित साधन थे. नेता ज्यादा से ज्यादा जमीनी प्रचार करते थे. पोस्टर और जरूर यहां-वहां चिपके दिखाई दे थे. 1971 के लोकसभा चुनाव की यह तस्वीर पूरा हाल बयां करती है.