पुरुषों के सामने उतारने पड़े थे कपड़े, न्यूड परेड और सेक्स जांच, ओलंपिक में महिलाओं को इन टेस्ट से गुजरना पड़ा

Paris Olympics 2024: ओलंपिक में महिलाओं की भागीदारी के साथ ही लिंग जांच (सेक्स टेस्ट) का मुद्दा भी उभर कर सामने आया है. यह जांच महिला एथलीटों के लिंग की पुष्टि करने के लिए किया जाता था. हालांकि, यह प्रक्रिया अत्यंत अपमानजनक था. महिलाओं को ओलंपिक में पहली बार 1928 में रनिंग ट्रैक पर दौड़ने की अनुमति थी. उससे पहले महिलाएं ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में हिस्सा नहीं लेती थी. उन्हें स्विमिंग और टेनिस जैसे खेलों के लायक ही समझा जाता था...

रोहित राज Sat, 03 Aug 2024-7:41 pm,
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महिलाओं के साथ दोहरा रवैया

जब महिलाओं ने ट्रैक एंड फील्ड में भी कमाल दिखाना शुरू किया तो उन पर कई तरह के सवाल उठाए हैं. यहां तक कि यह भी कहा गया कि कुछ पुरुष महिलाओं की वेश में ओलंपिक में हिस्सा ले रहे हैं और उनकी सेक्स टेस्ट होनी चाहिए. महिलाओं के साथ ओलंपिक इतिहास में दोहरा रवैया अपनाया गया है.

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बॉक्सिंग रिंग में विवाद

हाल ही में अल्जीरिया की बॉक्सर इमान खेलीफ को लेकर विवाद हुआ. उनके खिलाफ उतरने वाली इटली की बॉक्सर एंजेल कारिनी ने खेलीफ पर गंभीर आरोप लगाए थे. खेलीफ ने 30 सेकंड के अंदर ही कारिनी को एक जोरदार पंच से हिला दिया. 46 सेकंड के अंदर कारिनी ने रिंग को छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा था कि मेरा मुकाबला एक पुरुष से हो रहा था.

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सेक्स डेवलपमेंट डिसऑर्डर की शिकार खेलीफ

अल्जीरिया की खेलीफ के साथ हाल ही में जो हुआ, उसने जेंडर के मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया. खेलीफ पर ट्रांसजेंडर होने का आरोप लगाया गया, क्योंकि उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी को एक शक्तिशाली प्रहार किया था. हालांकि, बाद में पता चला कि खेलीफ एक ट्रांसजेंडर नहीं हैं, बल्कि उनमें सेक्स डेवलपमेंट डिसऑर्डर है. इस घटना ने एक बार फिर लिंग परीक्षणों की प्रासंगिकता और उनके नकारात्मक प्रभावों पर सवाल उठाए हैं. 

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जब महिलाओं को न्यूड परेड में लेना होता था भाग

जब महिलाओं को पहली बार ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति मिली, तो उन्हें केवल कुछ ही खेलों में भाग लेने दिया जाता था. यह माना जाता था कि महिलाएं कठिन खेलों के लिए नहीं बनी हैं. 1960 के दशक में महिला एथलीटों के लिंग की पुष्टि करने के लिए लिंग परीक्षण शुरू किए गए. इन परीक्षणों में महिला एथलीटों को नग्न होकर एक पैनल के सामने खड़ा होना पड़ता था. इस पैनल में अधिकांश पुरुष होते थे. तब यह तय किया जाता था कि एथलीट की बॉडी महिलाओं जैसी है या नहीं.

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महिला एथलीट हुईं डिप्रेशन की शिकार

सेक्स टेस्ट को सबसे पहले इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन ने जरूरी कर दिया. 1966 में यह माना जाता था कि सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप की कुछ महिला एथलीट वास्तव में पुरुष हैं. इसके बाद 1968 में ओलंपिक ने इस टेस्ट को अपना लिया. इन परीक्षणों ने कई महिला एथलीटों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला. कई ने डिप्रेशन जैसी समस्याओं का सामना किया.

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