Ramdhari Singh Dinkar: जीवन में कम से कम एक बार जरूर पढ़ें द‍िनकर की ये 5 क‍िताबें

Ramdhari Singh Dinkar Books in Hindi: रामधारी स‍िंंह द‍िनकर को आप अच्‍छी तरह पहचानते होंगे. देश के सबसे बड़े लेखकों में से एक, ज‍िन्‍होंने अपने वीर रस की कव‍िताओं से दुन‍िया को झकझोर द‍िया. स्‍कूल में आपने रामधारी स‍िंह की ये कव‍िता- क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो. उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो... जरूर पढ़ी होगी और उस वक्‍त जो जोश आपने अपने भीतर महसूस क‍िया होगा, उसका कोई मुकाबला नहीं है. द‍िनकर को संस्‍कार की भाषा और भाषा में संस्‍कार के ल‍िए जाना जाता है. उनका जन्‍म 23 स‍ितंबर 1908 को हुआ था. उनके जन्‍म द‍िवस के मौके पर आइये आपको द‍िनकर की 5 ऐसी क‍िताबों के बारे में बताते हैं, ज‍िन्‍हें कम से कम एक बार जीवन में जरूर पढ़ना चाह‍िए.

वन्‍दना भारती Mon, 23 Sep 2024-10:55 am,
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कौन थे रामधारी स‍िंह द‍िनकर

रामधारी स‍िंह द‍िनकर क‍िसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. स्‍कूल में पढ़ने वाले बच्‍चे से लेकर बुजुर्ग तक उन्‍हें जानते हैं. रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय ज‍िले में हुआ. उनके गांव का नाम सिमरिया था. वे एक क‍िसान के पर‍िवार में जन्‍मे थे. स्कूल जाने के लिए भी उन्‍हें गंगा घाट तक पैदाल जाना होता था और फिर गंगा के पार उतरकर दोबारा पैदल चलना था. स्‍कूल पास करने के बाद उन्‍होंने पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा पास की और फ‍िर श‍िक्षक बन गए ताक‍ि अपना खर्च चला सकें. फिर बिहार सरकार में सब-रजिस्टार की नौकरी की. द‍िनकर अंग्रेज सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में भी रहे और उनके ख‍िलाफ ही कविताएं लिखते रहे. 

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रामधारी स‍िंह द‍िनकर की क‍िताबें

अपने जीवन काल के दौरान द‍िनकर ने बहुत सी कव‍िताएं और गद्य ल‍िखें और इनमें से हर एक जबरदस्‍त हैं. द‍िनकर को वैसे तो वीर रस का कव‍ि कहा जाता था लेक‍िन उन्‍होंने ओज, विद्रोह, आक्रोश के साथ ही कोमल शृंगारिक भावनाओं वाले रचनाएं भी कीं. इनकी ये 5 क‍िताबें हर व्‍यक्‍त‍ि को जरूर पढ़नी चाह‍िए.  

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रश्‍म‍िरथी

रश्मिरथी, जिसका अर्थ "सूर्यकिरण रूपी रथ का सवार" है, हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है. यह 1952 में प्रकाशित हुआ था. इसमें 7 सर्ग हैं. इसमें कर्ण के चरित्र के सभी पक्षों का सजीव चित्रण किया गया है. 

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उर्वशी

उर्वशी रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित काव्य नाटक है. १९६१ ई. में प्रकाशित इस काव्य में दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है. अन्य रचनाओं से इतर उर्वशी राष्ट्रवाद और वीर रस प्रधान रचना है. इसके लिए १९७२ में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया. 

 

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संस्कृति के चार अध्याय

संस्कृति के चार अध्याय हिन्दी के विख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित एक भारतीय संस्कृति का सर्वेक्षण है जिसके लिये उन्हें सन् 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 

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परशुराम की प्रतीक्षा

परशुराम की प्रतीक्षा सामाजिक विषय पर आधारित रामधारी सिंह 'दिनकर' जी द्वारा रचित कविता संग्रह और खण्डकाव्य है. इस कविता संग्रह में लगभग अठारह कविताएं शामिल हैं. इस खण्डकाव्य की रचना उन्होंने 1962-63 के आसपास की. 

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हुंकार

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ करुणा को जीने, विषमताओं पर चोट करने, भाग्‍यवाद को तोड़ने और क्रान्ति में विश्‍वास करनेवाले कवि थे. यही कारण है कि पराधीन भारत की बात हो या स्‍वाधीन भारत की, वे अपने विज़न और वितान में एक अलग ही ऊँचाई पर दिखते हैं. और इस बात की मिसाल है उनका यह संग्रह ‘हुंकार’. ‘हुंकार’ में इस शीर्षक से कोई कविता नहीं है, लेकिन हर कविता एक हुंकार है. 

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