Tabla: पहली बार कब बजा तबला.. किसने की इसकी खोज, कैसे बना भारतीय संगीत का अनमोल हिस्सा?

Tabla Origin: तबला.. भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक अनमोल वाद्य यंत्र, जिसकी धुनें हर प्रस्तुति को जीवंत बना देती हैं. इसकी खोज से लेकर आज तक का सफर उतना ही रोचक है जितना इसका स्वर. पखावज के टूटने से तबले के बनने की किंवदंती, इसके पीछे की अनसुनी कहानियां और इसे वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने वाले महान कलाकारों का योगदान.. यह सब तबले की विरासत को और भी खास बनाता है. इस गैलरी में हम आपको तबले की कहानी के अलग-अलग पहलुओं से रूबरू कराएंगे. आइए, इस अद्भुत वाद्य की यात्रा को करीब से जानें.

गुणातीत ओझा Dec 16, 2024, 23:33 PM IST
1/6

तबले की उत्पत्ति की किंवदंती

तबले की उत्पत्ति को लेकर एक प्रचलित कहानी है कि 18वीं शताब्दी में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के दरबार में पखावज वादकों की प्रतियोगिता हुई. हारने वाले वादक ने गुस्से में अपना पखावज तोड़ दिया. इसके दो हिस्सों को इस तरह बजाया गया कि वह आज के तबले जैसा लगने लगा.

2/6

‘तब भी बोला से ‘तबला तक का सफर

किंवदंती के अनुसार, पखावज के दो हिस्सों को बजाते समय लोगों ने कहा, "तब भी बोला," जो धीरे-धीरे 'तब्बोला' और फिर 'तबला' बन गया. हालांकि, यह कहानी पूरी तरह प्रमाणित नहीं है, लेकिन इसे तबले की उत्पत्ति का एक दिलचस्प पहलू माना जाता है.

3/6

तबले के आविष्कार के अन्य दावे

कुछ लोग तबले का श्रेय अमीर खुसरो खान नामक ढोलकिया को देते हैं. माना जाता है कि उन्हें 'ख्याल' संगीत शैली के लिए एक मधुर और परिष्कृत ताल वाद्य विकसित करने का काम सौंपा गया था. तबला इसी प्रयास का परिणाम हो सकता है.

4/6

तबले का भारतीय शास्त्रीय संगीत में स्थान

शुरुआत में तबला केवल संगत के लिए इस्तेमाल होता था. लेकिन पंडित समता प्रसाद, पंडित किशन महाराज और उस्ताद अल्ला रक्खा खान जैसे कलाकारों ने इसे मुख्य वाद्य के रूप में पहचान दिलाई. आज तबला भारतीय संगीत का एक अभिन्न हिस्सा है.

5/6

जाकिर हुसैन और तबले की वैश्विक पहचान

उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे जाकिर हुसैन ने तबले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. उन्होंने जॉन मैकलॉघलिन, यो-यो मा और बीटल्स के जॉर्ज हैरिसन जैसे पश्चिमी कलाकारों के साथ प्रदर्शन किया और तबले की ध्वनि को विश्व मंच पर पहुंचाया.

6/6

तबला घरानों की परंपरा

तबले की परंपरा में कई घराने विकसित हुए, जैसे दिल्ली, बनारस, लखनऊ, फर्रुखाबाद और पंजाब. ये घराने तबले की शैली और तकनीक को परिभाषित करते हैं. 20वीं सदी में आधुनिक तबला वादकों ने इन परंपराओं को आगे बढ़ाया और नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. तबला आज न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत बल्कि फ्यूजन और पॉप संगीत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसकी ध्वनियों की विविधता इसे वाद्य यंत्रों की दुनिया में अनोखा बनाती है.

ZEENEWS TRENDING STORIES

By continuing to use the site, you agree to the use of cookies. You can find out more by Tapping this link