राष्ट्रपति भवन से पहले उस जमीन पर क्या था? किसके पास था मालिकाना हक
President House of India: भारत के राष्ट्रपति भवन की खूबसूरत तस्वीरें तो आपने कई बार देखी होंगी. आज हम आपको इस शानदार इमारत के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी देने जा रहे हैं. पहले इस भवन को वायसराय हाउस के नाम जाना जाता था. 1911 में ब्रिटिश साम्राज्य ने दिल्ली दरबार में यह ऐलान किया था कि भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित की जाएगी. इस जगह को ब्रिटिश साम्राज्य ने मुख्यालय बनाने के तौर पर स्थापित करने के लिए चुना गया था.
राष्ट्रपति भवन जिस जमीन पर बना है उसे पहले रायसीना पहाड़ी कहा जाता था. 1911 से पहले यह इलाका स्थानीय निवासियों के छोटे-छोटे गांवों का हिस्सा था. यहां पर पहले खेती और पशुपालन करने वाले करीब 300 परिवार बसे हुए थे. दिल्ली को ऐतिहासिक और भौगोलिक वजहों के चलते राजधानी बनाने का फैसला लिया गया था.
कहा जाता है कि जिस समय इस जमीन पर यह इमारत बनाने का फैसला लिया तो जमीन का मालिकाना हक जयपुर के महाराजा के पास था. इस इमारत में सबसे आगे एक स्तंभ लगाया गया था, जिसे 'जयपुर स्तंभ' कहा जाता है. एक जानकारी के मुताबिक यह जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह ने गिफ्ट किया था.
हालांकि कुछ वर्ष पहले कुछ लोग यह दावा करते हुए सामने आए थे कि वे लुटियंस जोन के मूल मालिक हैं, जिसमें वह जमीन भी शामिल है जहां शानदार राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लैक और साउथ ब्लॉक मौजूद हैं. लुटियंस जोन सरकारी अधिकारियों और उनके प्रशासनिक कार्यालयों के लिए बंगलों वाला इलाका है.
किसने किया था डिजाइन?
ब्रिटिश साम्राज्य ने रायसीना पहाड़ी पर मुख्यलय बनाने के तौर चुना था. क्योंकि यह ऊंचाई पर मौजूद थी. राष्ट्रपति भवन, जिसे ब्रिटिश भारत के वायसराय का आधिकारिक निवास बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था का निर्माण 1912 से 1929 के बीच हुआ. यह भवन सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर के ज़रिए डिज़ाइन किया गया था.
पहाड़ी गिराने के लिए किए गए धमाके
अब क्योंकि यह पहाड़ी इलाका था तो ऐसे में रायसीना पहाड़ी को निर्माण के लिए तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर खुदाई और समतलीकरण का काम किया गया. जमीन को समतल बनाने के लिए धमाके भी किए गए थे. निर्माण के लिए भारी मात्रा में पत्थरों और मिट्टी को स्थानांतरित करना पड़ा.
रेलवे लाइन बिछाई गई
पहाड़ी इलाका होने की वजह से यहां भारी मात्रा में सामान इधर से उधर करना मुश्किल काम था. ऐसे में इस काम के लिए रेलवे लाइन बिछाई गई थी. इस रेलवे लाइन के ज़रिए राजस्थान और अन्य जगहों से संगमरमर, बलुआ पत्थर और अन्य सामान लाया जाता था.
17 साल में बना था राष्ट्रपति भवन
राष्ट्रपति भवन भारतीय और पश्चिमी स्थापत्य शैली का मिश्रण है. भवन में 340 कमरे, एक विशाल दरबार हॉल और सुंदर बगीचे हैं. कहा जाता है कि इसे बनने में 4 साल के समय की उम्मीद थी लेकिन 17 वर्ष लगे थे. राष्ट्रपति भवन को बनने में लागत की बात करें तो कहा जाता है कि उस समय लगभग 1 करोड़ 38 लाख रुपये से ज्यादा खर्च हुए थे.
आजादी के बादला गया नाम
1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद इस भवन को वायसराय हाउस से बदलकर राष्ट्रपति भवन का नाम दिया गया. यह अब भारत के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास है और भारतीय गणराज्य के प्रशासन का प्रतीक है.