Israel Attacks Gaza: गाजा में बिजली-पानी बंद, भूख से तड़पते लोग; इजरायल-हमास जंग में कहां फिट होता है इंटरनेशनल लॉ?
Hamas-Israel War: इजराइल-फलस्तीन जंग के बारे में सोचना कभी आसान नहीं होता. लेकिन घोषणाओं की बढ़ती तादाद यह बताती है कि लागू कानून के तहत स्थिति का आकलन करने में शामिल फैक्टर्स पर सोच-विचार करना कितना अहम है. किसी भी युद्ध का समाधान राजनीतिक होता है, लेकिन सबसे जरूरी फैक्ट यह है कि युद्ध का हल अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून को हालांकि कभी-कभी कम प्रभावी माना जाता है, हमें इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि इसको लागू करना यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक जीवन सुरक्षित रहे. आइए आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.
लावल यूनिवर्सिटी की लॉ फैकल्टी में प्रोफेसर और इंस्टीट्यूट डी रीचर्चे स्ट्रैटेजिक डे ल'इकोले मिलिटेयर ने लिखा, अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून में कोई भी कानूनी विश्लेषण करने से पहले उठाया जाने वाला पहला कदम स्थिति को कैटेगराइज करना है. 2012 में इजराइली सैनिकों की एकतरफा वापसी के बावजूद, गाजा पट्टी का क्षेत्र इजराइल के कब्जे में रहा.
दरअसल, जब 2004 में इंटरनेशनल कोर्ट ने कहा कि इजराइल इस क्षेत्र में सत्ता पर काबिज होने की स्थिति के आधार पर अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून लागू करने के लिए बाध्य है, तो इजराइल ने 2005 में गाजा से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया.
हमास और इजराइल के बीच 2005 के बाद से नियमित आधार पर झड़पें और टकराव होते रहे हैं. 7 अक्टूबर की संघर्ष की घटनाओं के बाद इस आकलन के बदलने की संभावना नहीं है. संघर्ष को चाहे किसी भी तरीके से पेश किया जाए, यह कहने की जरूरत नहीं है कि जानबूझकर नागरिकों को निशाना बनाने और बंधक बनाने की गतिविधियों की इजाजत नहीं होनी चाहिए.
इसी तरह, चाहे संघर्ष को कितना भी जायज क्यों न ठहराया जाए, यह देखना मुश्किल है कि गाजा पट्टी की पूरी घेराबंदी की घोषणा अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के मुताबिक कैसे हो सकती है. 'घेराबंदी' एक ऐसी धारणा नहीं है, जिसका जिक्र अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून में बड़े स्तर पर किया गया है. हालांकि, घेराबंदी बैन नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के उल्लंघन का कारण बनते हैं.
उदाहरण के लिए, भोजन उपलब्ध कराने या पानी की सप्लाई रोकने से क्षेत्र में रहने वाली आबादी भूख से मर सकती है. अकाल को युद्ध की एक विधि के रूप में इस्तेमाल करना बैन है. इसी तरह लोगों की आवाजाही को बैन करने या रोकने का मतलब है कि मानवीय कर्मी प्रभावित क्षेत्र में अपना राहत काम नहीं कर सकते हैं.
मानवीय संगठनों को हालांकि नागरिक आबादी को सहायता पहुंचाने की इजाजत दी जानी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के अनुसार, संघर्ष में शामिल पक्षों को उनके मार्ग को आसान बनाना चाहिए.
ऐसी स्थिति में यह वैध सवाल खड़ा होता है कि अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून कितना प्रभावी है. इस संबंध में याद रखने की बात यह है कि तीसरे देश, यानी वे देश, जो इस सशस्त्र संघर्ष के पक्षकार नहीं हैं, उनकी जिम्मेदारी है कि वे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के प्रति सम्मान सुनिश्चित करें.