नई दिल्ली: केंद्र की मोदी टीडीपी और कांग्रेस सहित विपक्षी दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का मुकाबला करने की तैयारी कर रही है, लेकिन इस बीच उसके ही सहयोगी दल शिवसेना ने सरकार के खिलाफ अपने तीखे तेवर बरकरार रखे हैं और साथ ही कहा है कि अविश्वास प्रस्ताव के बारे में अंतिम निर्णय पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे करेंगे. शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने कहा, 'लोकतंत्र में सबसे पहले विपक्ष की आवाज सुनी जानी चाहिए, भले ही वो आवाज सिर्फ एक व्यक्ति की हो.'


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राउत ने आगे कहा, 'जब जरूरी होगा हम (शिवसेना) भी बोलेंगे. वोटिंग के दौरान जैसे हमें उद्धव ठाकरे निर्देश देंगे, हम वैसा करेंगे.' इससे साफ है कि अविश्वास प्रस्ताव की बहस के दौरान शिव सेना सरकार की आलोचना करने में पीछे नहीं रहेगी. माना जा रहा है कि बहस के दौरान शिव सेना सरकार के खिलाफ स्टैंड लेगी, लेकिन वो विपक्षी दलों के साथ जाकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट नहीं करेगी. इस बारे में अंतिम निर्णय उद्धव ठाकरे ही करेंगे.



शिवसेना पहले भी केंद्र की मोदी सरकार और महाराष्ट्र में राज्य सरकार की आलोचना करती रही है. हालांकि दोनों ही जगह पार्टी सरकार में साझेदार है. केंद्र में बीजेपी के पास पर्याप्त संख्या बल है, लेकिन सहयोगी दलों का साथ उनके लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना पार्टी के पास मामूली बहुमत रह जाएगा. ऐसे में यदि भाजपा शिवसेना से समर्थन के लिए संपर्क साधती है तो आगामी लोकसभा चुनावों के लिए शिवसेना मोलतोल करने की बेहतर स्थिति में आ जाएगी. यही शिवसेना की रणनीति भी है.


लोकसभा में शिवसेना के 18 सांसद हैं. इस संख्या से जीत-हार के आंकड़े पर ज्यादा फर्क होता नहीं दिख रहा, लेकिन सरकार और विपक्षी दलों के मनोबल के लिहाज से ये संख्या पर्याप्त है. यदि शिवसेना अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देती है तो सरकार की किरकिरी होगी और विपक्ष की हिम्मत बढ़ेगी. जबकि यदि पार्टी सरकार के साथ रही तो सरकार की ताकत बढ़ेगी और अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी तथा शिवसेना के बीच गठबंधन की गुंजाइश भी बनी रहेगी.