Live-in Relationship: भारत में शादी के बिना साथ रह रहे महिला और पुरुष को लोग अलग ही निगाह से देखते हैं. लिव इन के विषय पर यहां अक्सर ही बहस होती है. लिव इन में रहना कोई गुनाह नहीं है, लेकिन फिर भी लोग इसका सपोर्ट नहीं करते और कहते हैं कि ये उनकी सभ्यता के खिलाफ है. लिव इन में रहना महिला-पुरुष का बेहद निजी मामला है और इसे सुप्रीम कोर्ट से भी मान्यता मिल चुकी है. लिव इन में रह रहे लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नियम तय किए है, जानें वो क्या है?


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दोनों वयस्क होने चाहिए
लिव इन रिलेशनशिप में रह रहें दोनों लोग वयस्क होने चाहिए. अगर दोनों में से कोई एक भी नाबालिग पाया जाता है तो उनका संबंध अवैध माना जाएगा. 


लिव इन की कोई समय सीमा नहीं
जब लड़का और लड़की पति-पत्नी की तरह एक साथ रह रहे हों तभी लिव इन रिलेशन मान्य होगा. साथ रहने के कोई समय सीमा नहीं है. हालांकि, लड़का और लड़की कभी साथ रहें और कभी अलग-अलग तो ऐसे संबंध को लिव नहीं माना जाएगा.


महिला को भरण पोषण का अधिकार
लिव इन में रह रही महिला के पास अपने साथी पुरुष से भरण पोषण की मांग करने का अधिकार है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि महिला को भरण पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. 


बच्चे का माता-पिता की संपत्ती पर अधिकार
लिव इन के दौरान अगर कपल का कोई संतान पैदा होता है तो उसे माता-पिता की संपत्ति में पूरा अधिकार मिलेगा. 


धोखा देने पर हो सकती है कार्रवाई
लिव इन में अगर कोई एक दूसरे से शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाकर उसे छोड़ देता है तो यह अपराध माना जाएगा. इस मामले में पीड़ित केस भी दर्ज करा सकता है.


क्या शादीशुदा होते हुए भी लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं?
कुछ समय पहले हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर असहमति जताई थी, जिसमें उसने एक विवाहित व्यक्ति के लिव इन रिलेशनशिप को अपराध माना था. पंजाब हाईकोर्ट ने कहा था कि दो बालिग लोग आपसी सहमति से एक साथ रह सकते हैं.


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