सांसारिक मोह त्याग हजारों बने संत, ऐसे दी जाती है नागाओं को दीक्षा
अपना और अपने परिवार सहित चौदह पीढ़ियों के पिंडदान के बाद साधुओं को नागा संत की दीक्षा दी जाती है.
प्रयागराज: सनातन परंपरा के सबसे शक्तिशाली अखाड़े श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े में लगभग एक हजार नए धर्म रक्षक नागा संतो को दीक्षा देने की परंपरा बुधवार को संगम के तट पर पूरी हुई. वर्षों पूर्व सन्यास धारण किए संतों को वैदिक विधि विधान और अखाड़ों की परंपरा के मुताबिक, आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि ने दीक्षा देने के साथ ही उन्हें पूर्णतया नागा संत बनाया. आपको बता दें कि मौनी अमावस्या के स्नान के पूर्व जूना अखाड़े में 1100 नागा संतों को दीक्षा दी गई थी. वहीं, आज लगभग एक हजार नए नागा संत बनाए गए, जिसमें सौ से ज्यादा महिला नागा संत भी शामिल है.
साधना कर बीताएंगे जीवन
सांसारिक मोह माया त्यागकर अपना और अपने परिवार सहित चौदह पीढ़ियों के पिंडदान के बाद साधुओं को नागा संत की दीक्षा दी जाती है. जूना अखाड़े के वरिष्ठ पदाधिकारी थानापति महंत सत्य चेतन पुरी महाराज ने बताया कि यह पूरे तौर पर अब नागा सन्यासी बन गए हैं. संसार की माया से अलग अपने इष्ट की साधना में अपना जीवन व्यतीत करेंगे.
तीन दिनों तक चलती है दीक्षा
नागा बनाने की दीक्षा परंपरा के मुताबिक, ये तीन दिनों तक चलती है. इसमें वैदिक क्रियाओं के मुताबिक, पहले दीक्षा दी जाती है. जूना अखाड़े के आचार्य पुरोहित दीक्षा देते हैं, जिसके पश्चात नागाओं की दस विधि स्नान कराकर उनकी शुद्धि की जाती है.
ऐसे होती है शुद्धि
शुद्धि के लिए पंचगव्य स्नान कराया जाता है, जिसमें गाय का गोबर, गोमूत्र, दही, भस्म, चंदन, हल्दी से स्नान पूरा कराया जाता है. दीक्षा की प्रक्रिया के तीसरे और अंतिम दिन सभी नागा संतों का उपनयन संस्कार कराया गया. संस्कार के बाद वो अपना और अपने परिजनों का पिंडदान करते हैं. इसके बाद आजीवन गुरु के शरण में रहने का संकल्प लेकर पूर्णता नागा साधु बन जाते हैं.