Bhagwan Parshuram Jayanti 2023: स्कंद पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार, वैशाख शुक्ल तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम के रूप में जन्म लिया था. वह जमदग्नि ऋषि की संतान हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार, परशुराम की मां रेणुका और महर्षि विश्वामित्र की माता ने एक साथ पूजन किया और प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद की अदला-बदली कर दी. इस अदला-बदली के प्रभाव के अनुसार, परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और विश्वामित्र क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी ब्रह्मर्षि कहलाए. 


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भगवान परशुराम का यह नाम अपने साथ फरसा अर्थात परशु रखने के कारण पड़ा. धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय शिवजी का धनुष टूटने के कारण उनके अनन्य भक्त परशुराम स्वयंवर स्थल पर पहुंचे और धनुष टूटने पर अपनी तीखी नाराजगी भी जाहिर की, किंतु जैसे ही उन्हें श्रीराम की वास्तविकता का आभास हुआ, वह अपना धनुष बाण उन्हें समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने चले गए. 


दक्षिण भारत में कोंकण और चिपलून में भगवान परशुराम के कई मंदिर हैं. इन मंदिरों में वैशाख शुक्ल तृतीया को परशुराम जयंती बहुत ही धूमधाम से मनायी जाती है और उनके जन्म की कथा को भी सुना जाता है. इस दिन परशुराम जी की पूजा कर उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा ही अधिक महत्व है. 


त्रेतायुग 


इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों अपनी उच्च राशि में होते हैं. अतः मन और आत्मा दोनों से व्यक्ति बलवान रहता है, इसलिए इस दिन आप जो भी कार्य करते हैं, वह मन एवं आत्मा से जुड़ा हुआ रहता है. ऐसे में अक्षय तृतीया के दिन किया गया पूजा-पाठ और दान-पुण्य बहुत ही महत्वपूर्ण तथा प्रभावी होते हैं. इसी तिथि को नर नारायण, परशुराम, हयग्रीव के अवतार हुए थे और इसी दिन त्रेतायुग का आरंभ हुआ था.


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