Anant Chaturdashi 2023: अनंत चतुर्दशी व्रत की महिमा है अनंत, भगवान श्री कृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने किया था यह व्रत
Anant Chaturdashi 2023: अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इस दिन व्रत रखने से अनन्त भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है. अनंत चतुर्दशी पर लोग अनंत सप्तमी व्रत का पारण करते हैं और इस दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है. यह त्योहार विशेष रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में धूमधाम से मनाया जाता है.
Anant Chaturdashi 2023: स्कंद, ब्रह्म एवं भविष्य आदि पुराणों के अनुसार, यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी व्रत किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की कथा होती है जिसमें उदय व्यापिनी तिथि ली जाती है. इस दिन वेद ग्रंथों का पाठ करके प्रभु भक्ति की स्मृति में डोरा बांधा जाता है, जिसे अनंत भी कहा जाता है. आपको बता दें, इस वर्ष यह तिथि 28 सितंबर को पड़ रही है.
पूजा-विधि
इस दिन व्रत करने वाले प्रातः स्नान आदि करके कलश की स्थापना करते हैं. कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना की जाती है. इसके बाद कुमकुम, केसर या हल्दी से रंगा हुआ चौदह गांठों वाला अनंत भी रखा जाता है. कुश के अनंत की वंदना करके उसमें भगवान विष्णु का आह्वान करते हुए ध्यान करते हैं और गंध, पुष्प, धूप तथा नैवेद्य से पूजन किया जाता है. इसके पश्चात अनंत देव का ध्यान करते हुए शुद्ध अनंत को दाहिनी भुजा पर कंधे के नीचे और कोहनी के ऊपर बांधा जाता है. इस दिन नवीन सूत्र के अनंत को धारण कर पुराने सूत्र का त्याग कर देना चाहिए.
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया व्रत का महत्व
जुए में सब कुछ गंवाने के बाद 12 वर्ष के वनवास के दौरान एक बार तमाम तरह के परेशानियों से व्याकुल होकर युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न किया, हे भगवन, सबके मना करने के बाद भी मैने दुर्योधन के द्यूत क्रीड़ा के निमंत्रण को स्वीकार किया और अपना सब कुछ बर्बाद कर दिया, मेरे कारण ही पूरा परिवार परेशान होकर जंगल में भटक रहा है. इस दुख से कैसे निकला जा सकता है. इस पर श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत देव का व्रत करने का सुझाव देते हुए कहा कि वही आपके दुखों को दूर करेंगे और हारा हुआ राज्य भी वापस दिला देंगे. श्री कृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया और महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त कर चिरकाल तक निष्कंटक राज्य किया.