ज्योतिषाचार्य शशिशेखर त्रिपाठी: हिंदू धर्म का एकमात्र ऐसा त्योहार जो केवल एक दिन तक नहीं बल्कि 5 दिनों तक बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. वैसे तो त्योहार आने के कई दिन पहले से ही त्योहार की रौनक दिखाई देना शुरू हो जाती है लेकिन दीपावली का त्योहार कार्तिक कृष्ण मास की त्रयोदशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल मास की द्वितीया तिथि तक मनाया जाता है. हर एक दिन पौराणिक और धार्मिक महत्व रखता है. दीपावली के अगले दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का विधान है.


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गोवर्धन पूजा और गोवर्धन परिक्रमा का महत्व


गोवर्धन पूजा लीलाधर भगवान श्री कृष्ण की एक लीला का ही हिस्सा है. पूजन के समय स्वयं भगवान ने विशाल रूप धारण करके स्वयं को गोवर्धन घोषित किया. शास्त्र कहते हैं कि जो भक्त गिरिराज जी महाराज के दर्शन करता है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है, उसे कई तीर्थों और तप करने से भी हजारों गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है. गोवर्धन परिक्रमा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसे मनोकामनाओं की पूर्ति का एक महत्वपूर्ण साधन भी माना जाता है. भक्तों का विश्वास है कि जब वे श्रद्धा और भक्ति के साथ गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, तो भगवान श्री कृष्ण उनकी सभी इच्छाएं सुनते हैं और उन्हें पूरा करते हैं.


छप्पन भोग का नैवेद्य चढ़ाना होता है जरूरी


गोवर्धन पर्व के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजन किया जाता है साथ ही गौ माता की भी पूजा की जाती है. गोवर्धन पूजन के बाद भक्त भांति-भांति के पकवान बनाकर गोवर्धन पर्वत एवं भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग का नैवेद्य चढ़ाते हैं, बाद में इन छप्पन भोग को मिलाकर जो प्रसाद तैयार किया जाता है, उसे अन्नकूट कहा जाता है.


गाय दुहना है निषिद्ध


गोवर्धन पूजन के दिन गायों को दुहना निषिद्ध माना जाता है. इस अवसर पर गाय, बैल इत्यादि पशुओं को स्नान कराके, उनके पैर धोकर फूल, मालाओं और आभूषणों इत्यादि से सजाकर उनकी पूजा की जाती है.


इस दिन मनाया जाएगा गोवर्धन पर्व


कार्तिक अमावस्या के 31 अक्टूबर और 1 नवंबर दो दिनों तक रहने के कारण इस बार गोवर्धन पर्व, 02 नवंबर शनिवार के दिन मनाया जाएगा.


गोवर्धन पूजा की कथा


द्वापर युग में ब्रज के रहने वाले देवराज इंद्र की छप्पन भोगों से पूजा किया करते थे. तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत और गाय का महत्व बताते हुए कहा कि हमारी असली संपत्ति गाय और गोवर्धन पर्वत है, इन्हीं से हमारा जीवन चलता है, इसलिए इंद्र की पूजा के स्थान पर हमें उनकी पूजा करनी चाहिए. इंद्र इसे अपना अपमान समझकर क्रोधित हो गए और ब्रज में मूसलाधार वर्षा करनी शुरू कर दी, जब पूरा ब्रज पानी से डूबने लगा तब ब्रजवासी व्याकुल होकर श्री कृष्ण के पास पहुंचे और बोले कि अब तुम्ही बताओ हम क्या करें, कैसे बचें.


इस पर श्री कृष्ण ने अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया और सभी ब्रजवासियों को उसके नीचे आने के लिए कहा. ऐसा करके श्री कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप और अतिवृष्टि से होने वाली जन धन की हानि को भी रोकने का काम किया. इंद्र ने इसके बाद भी वर्षा जारी रखी किंतु जब देखा कि किसी का कोई नुकसान नहीं हो रहा है क्योंकि सभी ने श्री कृष्ण की शरण ले रखी है तो उनका अभिमान भी चूर चूर हो गया. इंद्र ने भी आकर श्री कृष्ण की शरण ली और अपनी गलती मानी और पूरे गांव में श्री कृष्ण का गुणगान किया. इस पर पूरे ब्रज में उत्सव मनाया गया.


गोवर्धन पूजा से मिलती है यह सीख


वास्तव में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा कर यह संदेश दिया कि अहंकार और दुराचार के अंत के लिए सबको मिलकर प्रयास करना होगा.