Shri Nirmohi Ani Akhada: ठाकुर जी की सेवा में कर देते हैं पूरा जीवन अर्पण, सुबह से शाम तक भक्ति में लीन; जानें श्री निर्मोही अणि अखाड़े के बारे में
Shri Nirmohi Ani Akhara Mathura History: प्रयागराज में 13 जनवरी से होने वाले महाकुंभ में मथुरा का श्री निर्मोही अणि अखाड़ा भी भाग लेने जा रहा है. यह अखाड़ा ठाकुर जी यानी भगवान श्रीकृष्ण और राधा देवी की सेवा में हमेशा लीन रहता है.
Shri Nirmohi Ani Akhara Mathura Traditions: यूपी के प्रयागराज में होने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े इस बार भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र रहने वाले हैं. इनमें से जूना अखाड़ा महाकुंभ में प्रवेश कर चुका है, जबकि बाकी अखाड़े भी छावनी प्रवेश की तैयारी कर रहे हैं. इन्हीं 13 में से एक प्रमुख अखाड़ा है- श्री निर्मोही अणि अखाड़ा (मथुरा). इसमें अणि का अर्थ होता है समूह यानी संतों का समूह.
श्री निर्मोही अणि अखाड़े से जुड़े संत
श्री निर्मोही अणि अखाड़ा (मथुरा) का मुख्य आश्रम वृंदावन में वृंदावन गोविंद जी मंदिर के पास है. इस अखाड़े के महंत सुंदर दास महाराज हैं. वे बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व बालानंद महाराज ने इस अखाड़े की स्थापना की थी. उनकी गद्दी जयपुर में है. इस निर्मोही अखाड़े के अंतर्गत 9 अखाड़े आते हैं. इनमें श्री पंच हरिहर व्यास निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच रामानंद निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच स्वामी विष्णु हरि निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच झाड़ियां निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच मालधारी निर्मोही अखाड़ा और श्री पंच राधा बल्लवी निर्मोही अखाड़ा भी शामिल हैं.
निर्मोही अखाड़े के उद्देश्य
महंत सुंदर दास महाराज के अनुसार, अखाड़े की स्थापना के समय साधु-संतों को शस्त्र और शास्त्रों का प्रशिक्षण दिया जाता था. यह उस समय की परिस्थितियों के लिहाज से सही थी. अखाड़े के संतों ने देश को एकसूत्र में बांधने के साथ ही मुगलों और अंग्रेजों से लड़ाइयां भी लड़ीं. राष्ट्र के स्वतंत्र होने के बाद अखाड़े ने सैन्य चरित्र त्याग दिया और पूरी तरह भक्तिरस में डूब गया है.
कैसे बनाए जा सकते हैं सदस्य?
महंत बताते हैं कि श्री निर्मोही अणि अखाड़े में संत बनने के लिए व्यक्ति का संन्यासी होना अनिवार्य है. उसका परिवार के प्रति कोई मोह न हो. वह अखाड़े के सभी नियमों का पालन करता हो और उस पर अपनी पूरी निर्भरता रखता हो. संत बनने के बाद उनकी अखाड़े के प्रति निष्ठा को देखते हुए उन्हें पद दिए जाते हैं. निर्मोही परंपरा से जुड़े कुछ अखाड़ों में 12 वर्ष बाद पदाधिकारी बदल दिए जाते हैं, जबकि कुछ में यह पद आजीवन दिए जाते हैं.
क्या होती है संतों की दिनचर्या?
अखाड़े के संत बताते हैं कि आश्रम में संतों की सुबह से शाम की दिनचर्या तय हैं. सभी साधु-संत ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले बिस्तर छोड़ देते हैं. इसके बाद नित्य क्रिया और स्नानादि के बाद वे आश्रम में बने मंदिर में पहुंच जाते हैं. जहां पर ठाकुर जी की पूजा और सेवा करते हैं. इसके बाद सभी साधु-संत प्रभु के भजन-कीर्तन में लग जाते हैं. सुबह 7 बजे अखाड़े में पंगत होती है, जिसमें एक बड़े हॉल में सभी साधु-संत साथ में बैठकर भोजन करते हैं.
अखाड़े के साधुओं के अनुसार, पंगत के बाद साधु-संत फिर एकत्र होते हैं, जहां वे महाराज जी के प्रवचन सुनते हैं. साथ ही गुरू मंत्र का जाप भी करते हैं. वे योग-ध्यान भी करते हैं. इसके बाद वे कुछ देर आराम करते हैं. शाम को वे फिर ठाकुर जी की पूजा-आराधना करते हैं. इसके बाद शयनभोग करने के बाद वे विश्राम करने चले जाते हैं.
कई शहरों में फैली हैं अखाड़े की शाखाएं
निर्मोही अखाड़े के महंत सुंदर जी महाराज बताते हैं कि अखाड़े की कई शाखाएं हैं. ये गुजरात, देहरादून, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक शहर में बनी हैं. इन शाखाओं में भी बहुत सारे साधु-संत शामिल हैं. वे कहते हैं कि सभी साधु-संत समय-समय पर बैठक कर धर्म-संस्कृति पर चर्चा करते हैं. अखाड़े का उद्देश्य निस्वार्थ भाव रखकर हिंदुओं को अपनी संस्कृति और ठाकुर जी की भक्ति के प्रति जागृत करना है. जिसमें सभी साधु ले रहते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)