Shiv Parvati Vivah Katha: शिवजी से विवाह के संबंध में पार्वती जी का मन टटोलने और शिवजी के प्रति समर्पण की बात सुनकर सप्तऋषि हृदय से प्रसन्न हुए. अब सप्तऋषि खुशी-खुशी पर्वतराज हिमाचल के पास पहुंचे और अब तक का सारा घटनाक्रम बताया तो कामदेव के भस्म होने की बात सुनकर उन्हें दुख हुआ, किंतु रति के वरदान की बात सुनकर उनका दुख खत्म हो गया. सप्तऋषियों के जाने के बाद हिमाचल ने श्रेष्ठ मुनियों को आदरपूर्वक बुला कर उनसे शुभ दिन शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी का विचार करने के बाद वेद विधि के अनुसार शीघ्र ही लग्न का निश्चय कर लिखवा लिया. 


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लग्न पत्रिका लिखवाने के बाद पर्वतराज ने उसे सप्तऋषियों को थमाते हुए उनके चरण पकड़ लिए. उनसे विनती करते हुए हिमाचल ने कहा कि अब आगे का काम आपको करना होगा. सप्तऋषियों ने वह लग्न पत्रिका ले जाकर सीधे ब्रह्मा जी को दी तो वह अपनी जिज्ञासा नहीं रोक सके और उसे बांचने लगे. पत्रिका पढ़ते हुए उनकी मानसिक प्रसन्नता उनके चेहरे से दिख रही थी. 


ब्रह्मा जी द्वारा लग्न पत्रिका पढ़कर सबको सुनाने के साथ ही देवताओं का पूरा समाज हर्षित हो गया और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी. बाजे स्वतः बजने लगे,दसो दिशाओं में मंगल कलश सजा दिए गए. सभी देवता अपने वाहनों और विमानों को सजाने लगे. इसके साथ ही सबका कल्याण करने वाले मंगल शकुन होने लगे और अप्सराएं भी प्रसन्नता में गाने लगीं. 


इधर शिवजी के गण उनका श्रृंगार करने लगे. जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर सर्पों का मौर सजाया गया. शिवजी ने सांपों के कुंडल पहने तथा शरीर पर विभूति लगाई तथा वस्त्रों के नाम पर बाघम्बर को लपेट लिया. शिवजी के विशाल मस्तक पर चंद्रमा, सिर पर गंगा जी, तीन नेत्र और सांपों का जनेऊ गले में विष और छाती पर नरमुंडों की माला थी. एक हाथ में त्रिशूल तो दूसरे हाथ में डमरू था. शिवजी ने दूल्हा बनकर बैल पर सवार हुए तो देवांगनाएं बोलीं कि इतने सुंदर वर के योग्य दुल्हन इस संसार में कहीं नहीं है.


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