Badrinath Kapat Closing Date 2024: दुनिया के पालनहार और त्रिलोकों के स्वामी भगवान बदरी विशाल के मंदिर के कपाट आज शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे. बदरीनाथ मंदिर में इसके लिए 13 नवंबर से विभिन्न पूजाओं और अर्चनों का दौर जारी था, जो आज कपाट बंद होने के साथ ही संपन्न हो जाएगा. हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में आज मंदिर के मुख्य रावल और पुजारी बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद करने की पूजा शुरू करेंगे और रात 9 बजकर 7 मिनट पर उन्हें शीतकाल के लिए बंद कर दिया जाएगा. इसके साथ ही आज के दिन ही तुंगनाथ धाम के कपाट भी बंद हो जाएंगे. 


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जोशीमठ में होगी बदरी विशाल की पूजा


बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (BKTC) के मुताबिक बदरीनाथ धाम हर साल महज 6 माह के लिए श्रद्धालुओं के लिए खुलता है. इसके कपाट अप्रैल-मई के महीने में खुलते हैं और नवंबर के तीसरे सप्ताह में सर्दियों के लिए बंद कर दिए जाते हैं. इस तरह यह मंदिर प्रत्येक वर्ष 6 महीने के लिए बंद रहता है. इस दौरान बदरी विशाल की डोली को नीचे जोशीमठ ले जाया जाता है, जहां पर नरसिंह मंदिर में उनकी पूजा सर्दियों में भी जारी रहती है. 


नर-नारायण ने की थी तपस्या


बदरीनाथ धाम उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है. इसे भगवान विष्णु का वास माना जाता है. इस धाम को दूसरा बैकुंठ भी कहा जाता है. मान्यता है कि यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी. वे आज भी नर-नारायण नामक दो पर्वतों के रूप में यहां मौजूद हैं. 


धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना अलकनंदा के किनारे बदरीनाथ धाम में ही की थी. इसी धाम के पास सरस्वती नदी का उद्गम स्रोत भी है, जो कुछ दूर बहने के बाद फिर जमीन में कहां लुप्त हो जाती है, इसका किसी को कुछ पता ही नहीं चलता. 


पुराणों में भी है बदरीधाम का वर्णन


पुराणों की मानें तो बदरीनाथ धाम को कई नामों से जाना जाता है. स्कन्दपुराण में बदरी क्षेत्र को मुक्तिप्रदा कहा गया है. वहीं त्रेता युग में भगवान नारायण ने इस बद्रीनाथ धाम को योग सिद्ध कहा. द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे विशाला तीर्थ या मणिभद्र आश्रम कहा गया है. इस मंदिर में 1 मीटर लंबी शालिग्राम से निर्मित बदरी नारायण की प्रतिमा विराजमान है. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)