Baikunth Chaturdashi 2024: बैकुंठ चतुर्दशी पर एक साथ करें इन दो भगवानों का पूजन; सौभाग्य वृद्धि के साथ जीवन पूर्णता के बाद मिलेगा वैकुंठ धाम
Baikunth Chaturdashi 2024: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को वैकुंठ चतुर्दशी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी दोनों का ही विधि विधान से पूजन करना चाहिए. पंडित शशिशेखर त्रिपाठी से इस बारे में विस्तार से जानिए.
Baikunth Chaturdashi 2024 Kab Hai: मान्यता है कि ऐसा करने वाले भक्तों को इन दोनों ही भगवानों के साथ माता लक्ष्मी जी और मां पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है. जीवन में सभी तरह के सुख समृद्धि ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा सौभाग्य बना रहता है. इतना ही नहीं जीवन की पूर्णता के बाद भक्त को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. इस वर्ष यह तिथि 14 नवंबर को है.
इस तरह करें पूजन
कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करने के लिए प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जागकर स्नानादि से निवृत्त होकर वैकुंठ चतुर्दशी व्रत करने का संकल्प लें. वैसे तो भगवान विष्णु को कमल का फूल और शिव जी को बेलपत्र पसंद है किंतु इस दिन की पूजा में आपको इस बात का ध्यान रखना है कि विष्णु जी को बेलपत्र और शिवजी को कमल के पुष्प साथ में ही चढ़ाएं.
विष्णु जी के लिए ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः और भोलेनाथ के लिए ओम नमः शिवाय मंत्रों का जाप करना चाहिए. पूजन के बाद यथाशक्ति दान दक्षिणा का कार्य भी करना चाहिए. इस दिन शाम के समय गंगा या किसी भी पवित्र नदी के किनारे अथवा घर पर ही मुख्य द्वार के बाहर की तरफ या फिर बालकनी में 11, 21, 51 या 101 दीप जलाने चाहिए.
अद्भुत है दोनों भगवानों की संयुक्त पूजा
इस पर्व की यह अद्भुत विशेषता है कि शैव और वैष्णव दोनों ही उपासक समान रूप से मनाते हैं. भगवान विष्णु के भक्त निशीथ काल में तो शिव भक्त ब्रह्म मुहूर्त में पूजन करते हैं. बताते हैं कि इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि दोनों ही भगवानों ने एक दूसरे का पूजन कर उन्हें प्रसन्न किया था.
वैकुंठ चतुर्दशी व्रत की कथा
एक बार देवर्षि नारद भगवान श्री विष्णु हरि के पास पहुंचे और भक्ति कर मुक्ति पाने का सरल रास्ता पूछा. उन्होंने कहा कि जो लोग वैकुंठ चतुर्दशी के दिन व्रत रखते हैं, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं. प्रचलित कथा के अनुसार एक बार श्री विष्णु देवाधिदेव शंकर जी का पूजन करने के लिए काशी पहुंचे. मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल पुष्प से भगवान शंकर के पूजन करने का संकल्प लिया.
भगवान विष्णु पूजन कर ही रहे तो शंकर जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए कमल का एक फूल कम कर दिया. 999 पुष्प अर्पित करने के बाद अंतिम पुष्प न देख वे परेशान हो गए. फिर उन्हें विचार आया कि उन्हें पुंडरीकाक्ष और कमल नयन तो इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी आंखें कमल जैसी हैं. इसके बाद जैसे ही विष्णु जी अपनी आंख निकालने लगे, भगवान शिव प्रसन्न होकर वहां प्रकट हुए और बोले, हे विष्णु संसार में तुम्हारे समान मेरा कोई भक्त नहीं है. इसलिए मैं वचन देता हूं कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन जो भी तुम्हारी पूजा करेगा उसे वैकुंठ लोक प्राप्त होगा.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)