Bhishma Panchak Vrat: महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह ने पांच दिनों तक पांडवों को राजधर्म और नीति का उपदेश दिया था. इसका प्रारंभ कार्तिक शुक्ल एकादशी को हुआ और पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुई. इसलिए इन पांच दिनों को भीष्म पंचक का नाम दिया गया. इस बार भीष्म पंचक 23 नवंबर को एकादशी से प्रारंभ होगा और उसकी पूर्णता 27 नवंबर सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा जिसे कतकी भी कहा जाता है, को होगी.


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कैसे रखें भीष्म पंचक उपवास
इस दिन स्नान आदि करने के बाद पापों का नाश करते हुए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के व्रत का संकल्प करना चाहिए. घर के आंगन पर चार दरवाजों वाला मंडप बना कर उसे गोबर से लीपना चाहिए. बाद में वेदी बनाकर उसमें तिल भर कर कलश की स्थापना करें. ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र से भगवान वासुदेव की पूजा कर पांच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलाएं और मौन हो कर मंत्र का जाप करें. पांच दिनों तक काम क्रोध आदि को भुलाकर ब्रह्मचर्य, क्षमा, दया और उदारता धारण करना चाहिए. 


यह है व्रत का महत्व 
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद उत्तरायण सूर्य का इंतजार भीष्म पितामह शरशैया पर कर रहे थे. तभी भगवान श्री कृष्ण पांडवों को लेकर उनके पास पहुंचे तो धर्मराज युधिष्ठिर ने उनसे उपदेश देने का आग्रह किया तो पांच दिनों तक धर्म नीति आदि विषयों पर उन्होंने ज्ञान दिया. उनका उपदेश सुनकर वासुदेव श्री कृष्ण बहुत संतुष्ट हुए और बोले कि आपने कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पांच दिनों में राजधर्म संबंधी जो उपदेश दिए हैं उससे मैं बहुत ही प्रसन्न हूं. इसकी स्मृति में इन पांच दिनों को भीष्म पंचक व्रत के रूप में स्थापित करता हूं. जो लोग इसका पालन करेंगे वह संसार के कष्टों से मुक्त हो जाएंगे. उन्हें पुत्र पौत्र और धन धान्य की कोई कमी नहीं रहेगी. जीवन के सभी सुख भोग कर वह मोक्ष को प्राप्त होंगे.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)