Bhishma Pledge: भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विरोध करने पर भीष्म पितामह ने चेदि नरेश शिशुपाल को लज्जित करते हुए कहा कि मैंने अपने विशाल जीवन में बड़े ज्ञानियों से सत्संग किया है और उनके मुख से सकल गुणों के आश्रय भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य गुणों को भी सुना है. युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आए हुए श्रेष्ठ पुरुषों की सम्मति भी मैंने जान ली है. इन्होंने अपने जन्म से लेकर अब तक जो कर्म किए हैं, उनके बारे में भी मैने श्रेष्ठ जनों से सुना है. उन्होंने शिशुपाल को संबोधित करते हुए कहा कि हम लोग स्वार्थ वश ही श्र कृष्ण को नहीं पूजते हैं, बल्कि हमारे द्वारा पूजा करने का कारण यह है कि श्रीकृष्ण का जीवन सभी के लिए हितकारी और सुखकारी है. यश, सूरता और विजय में कोई भी भगवान श्रीकृष्ण के समान नहीं है.


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भीष्म बोले- श्रीकृष्ण हमारे आचार्य, पिता और गुरु हैं


शांतनु नंदन भीष्म ने कहा कि श्रीकृष्ण हमारे लिए आचार्य, पिता और गुरु हैं. वह हमारे लिए सब कुछ हैं, इसलिए हमने उनकी अग्रपूजा की है, जो सर्वथा उचित है. इस कार्य में कोई गलती नहीं की गई है. वह तो जन्मने और मरने वाले समस्त पदार्थों से परे हैं, इसलिए सबसे बढ़कर पूजनीय हैं. बुद्धि, मन, महत्व, वायु, तेज, जल, आकाश, पृथ्वी और चारों प्रकार के समस्त प्राणि उनके आधार पर ही स्थित हैं. सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र, दिशा-विदिशा सब श्रीकृष्ण में ही स्थित हैं. उन्होंने कहा शिशुपाल तो अभी कल का बच्चा है. उसे अभी इस बात का ज्ञान नहीं कि श्रीकृष्ण सर्वथा, सर्वत्र और सब रूपों में विद्यमान हैं. इतना कहकर भीष्म पितामह चुप हो गए.


युधिष्ठिर से भीष्म ने कहा- तुम डरो नहीं निश्चिंत रहो


इधर इन सब बातों से शिशुपाल और भी उत्तेजित हो गया और उसने अन्य राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हुए कहा कि आप लोग उधेड़बुन में न पड़ें और मेरे नेतृत्व में युद्ध कर यादवों और पांडवों को समाप्त कर दें. राजाओं को तैयार होते देख धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म के पास पहुंचे और उनसे यज्ञ की निर्विघ्न समाप्ति का उपाय पूछा. भीष्म पितामह ने कहा कि बेटा डरने की कोई बात नहीं है. क्या कोई कुत्ता कभी किसी सिंह को मार सकता है. जैसे सिंह के सो जाने पर कुत्ते भोंकते हैं, उसी तरह श्रीकृष्ण के चुप हो रहने से ये चिल्ला रहे हैं. मूर्ख शिशुपाल व्यर्थ में ही राजाओं को यमपुरी भेजना चाहता है. तुम निश्चिंत रहो.


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