BHISHMA VACHAN: विराट नगर में गायों को चुराने पर कौरव सेना के सामने मत्स्य नरेश के युवराज उत्तर के साथ अर्जुन के आने पर सेना के सभी महारथी चौंक गए. भीष्म पितामाह द्वारा यह बताने पर कि पांडवों के वनवास का समय तेरह वर्ष से पांच महीने और 12  दिन अधिक हो गया है. इस पर व्यूह रचना बनाई गई और उसके अनुसार ही अर्जुन से मुकाबले के लिए कौरव महारथी अपनी अपनी पोजीशन पर खड़े हो गए. व्यूह रचना में सबसे आगे कर्ण के होने से सबसे पहले अर्जुन का कर्ण से ही युद्ध हुआ. इस युद्ध में अर्जुन ने कर्ण को पराजित कर दिया.


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कर्ण पर विजय पाने के बाद अर्जुन भीष्म की ओर चले


कर्ण पर विजय पाने के बाद अर्जुन ने रथ चला रहे विराट नगर के राजकुमार उत्तर से कहा कि अब रथ वहां ले चले जिस रथ की ध्वजा पर स्वर्णमय ताड़ का निशान दिखाई दे रहा है. उस रथ पर मेरे पितामह भीष्म विराजमान हैं जो देखने में देवताओं के समान जान पड़ते हैं और मेरे साथ युद्ध करना चाहते हैं. उत्तर ने कहा कि हे वीर अब मेरे शरीर में शक्ति नहीं है, बाणों से मेरा शरीर बिध चुका है और अब मैं वीरों का सिंहनाद, हाथियों की चिग्घाड़, बिजली की गड़गड़ाहट के समान धनुषों की टंकार सुन कर कान बहरे हो चुके हैं. अब मुझमें चाबुक और रथ की बागडोर संभालने की शक्ति नहीं है. इस पर अर्जुन ने उसे धीरज बंधाया कि तुम वीर हो और तुमने बड़े बड़े युद्ध जीते हैं, यहां भी तुम्हारे रथ संचालन के कारण ही मैं आगे बढ़ सका हूं. इतना सुन कर उत्तर में हिम्मत आई और वह रथ लेकर भीष्म की ओर चला.


भीष्म के रथ की ध्वजा काटने पर अर्जुन को घेर लिया


कुशलता पूर्वक रथ चलाते हुए उत्तर सीधे भीष्म के रथ के निकट पहुंचा. कौरवों पर विजय पाने की इच्छा से अर्जुन को अपनी ओर आता देख कर निष्ठुर पराक्रम दिखाने वाले गंगानंदन भीष्म ने धीरतापूर्वक उसकी गति रोक दी. इस नजारे को देख अर्जुन ने ऐसी बाण वर्षा की कि भीष्म के रथ की ध्वजा जड़  से कट कर नीचे भूमि पर गिर गई. इसी समय दुशासन, विकर्ण दुसह और विविंशति ने अर्जुन को घेर लिया किंतु अर्जुन ने एक एक कर सबको जान बचाने को मजबूर कर दिया. 


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