Maa Chamunda: चंड और मुंड नाम के महादैत्यों का वध होने से दैत्यों के राजा शुंभ का क्रोध और भी तेज हो गया. उसने क्रोध में अपनी पूरी सेना को युद्ध के लिए कूच करने का आदेश दिया. देवी से लड़ने के लिए इस दिन के युद्ध में उदायुध नाम के 86 दैत्य सेनापतियों को अपनी अपनी सेना के साथ भेजा. इतना ही नहीं महाबली कम्बु नाम के दैत्य को भी 84 सेना नायकों के साथ युद्ध कर देवी अंबिका को लाने के लिए भेजा. इनके अलावा दैत्य राज शुंभ ने और भी न जाने कितने अन्य दैत्य सेनापतियों को भी देवी चंडिका से युद्ध करने के लिए भेजा. 


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दैत्यों की विशाल और भयंकर सेना को आता देख उन्होंने धनुष की टंकार दी तो उनके वाहन सिंह ने भी गर्जना की. उनके घंटे की ध्वनि से सभी दिशाएं गूंजने लगीं. इसी बीच देवताओं के शरीरों से शक्तियां निकल कर चंडिका देवी के पास पहुंचीं. महादेव ने स्वयं देवी से कहा कि तुम शीघ्र ही इन असुरों का संहार करो.


इस पर देवी ने कहा कि हे देव आप शुंभ और निशुंभ के पास दूत बनकर जाएं और कहें कि जीवित रहना चाहते हो तो पाताल लौट जाओ और जो युद्ध की इच्छा रखते हो वह आगे आएं, क्योंकि मेरी योगिनियां तुम्हारे कच्चे मांस को खाना चाहती हैं. शिव जी के मुख से इतना सुनते ही सारे दैत्य उस ओर दौड़े, जहां देवी कात्यायनी मौजूद थीं. देवी ने भी अपनी शक्तियों से उनका संहार शुरु कर दिया, देवियों के विभिन्न रूपों के युद्ध कौशल के सामने दैत्य न टिक पाने पर भागने लगे. 


तभी महान असुर रक्तबीज युद्ध करने लगा, उसके शरीर से खून की एक बूंद गिरने पर उसके जैसा ही दूसरा महादैत्य पैदा हो जाता. इस दृश्य को देख देवता निराश होने लगे तभी चंडिका देवी ने काली से कहा कि चामुंडा, तुम अपना मुंह विशाल करके मेरे हमलों से गिरने से इस महादैत्य के रक्त और पैदा होने दूसरे दैत्यों को खा लो. ज्योंही चंडिका देवी ने अपने शूल से रक्तबीज को मारा, चामुंडा देवी ने उसके रक्त को पीते हुए खा लिया और इस तरह रक्तबीज का वध हो गया.


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